सावधान! इस रास्ते में मस्जिद हैं, आप इस रास्ते से कलश यात्रा नहीं निकाल सकते…
मुख्यमंत्री रघुवर दास को यह बताना चाहिए और उन्हें बताना ही होगा कि क्या भारत एक इस्लामिक देश बन गया है या धर्मनिरपेक्ष देश है? क्या भारत के संविधान में यह लिखा है कि जिस गली या सड़क पर मस्जिद होगा, उस रास्ते से कोई अन्य धर्म (इस्लाम छोड़कर) के लोग धार्मिक जुलूस लेकर, उधर से नहीं निकल सकते? क्या सिर्फ इस्लाम धर्म के माननेवाले जिधर से चाहे, उधर से अपनी धार्मिक जुलूस को ले जा सकते हैं, पर उनका कोई विरोध नहीं कर सकता? क्या भारत के संविधान में लिखा है कि देश अथवा राज्य का प्रशासनिक अधिकारी किसी की धार्मिक स्वतंत्रता पर कुठाराघात कर सकता है? क्या भारत के संविधान ने यहां के प्रशासनिक अधिकारियों को इजाजत दे दी हैं कि वे हिन्दूओं के धार्मिक जुलूस अथवा कार्यों पर धर्माचार्यों की तरह फतवा दें कि उन्हें किस मार्ग से धार्मिक जुलूस ले जाना और किस मार्ग से नहीं ले जाना हैं? अगर ऐसा नहीं हैं तो फिर राज्य के प्रशासनिक अधिकारियों का दल, अपनी बचकाना हरकतों के कारण आम आदमी को सांप्रदायिकता की आग में क्यों झोंक रहा हैं?
इन दिनों मैं देख रहा हूं कि देश के अन्य जगहों की तरह, झारखण्ड में सांप्रदायिकता की हवा तेजी से फैलाई जा रही हैं, और इसमें प्रशासनिक अधिकारियों की भूमिका महत्वपूर्ण है। सवाल है कि जब भारत धर्मनिरपेक्ष देश है, तब ऐसे में कोई भी व्यक्ति या संस्थाएं से भी धार्मिक जुलूस ले जाएं, क्या फर्क पड़ता है, क्या इस्लाम धर्मावलंबी अपने धार्मिक जुलूस लेकर निकलते हैं तो आज तक किसी भी हिन्दू धर्मावलम्बी ने उनका विरोध किया, क्या किसी भी हिन्दू ने यह कहा कि रास्ते में मंदिर पड़ता हैं, इसलिए इस रास्ते से इस्लामिक जुलूस नहीं निकाला जा सकता? और अगर इसी का प्रतिवाद हिन्दूओं ने शुरु कर दिया तो फिर क्या इस्लाम धर्मावलम्बी अपने धार्मिक कार्यों को संपन्न कर पायेंगे? इस पर विचार करने की जरुरत हैं।
मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि हर हिन्दू या हर मुसलमान की सोच घटियास्तर की नहीं होती, कुछ ही लोग ऐसे होते हैं, जो समाज में विषमता व कटुता की बीज बोते हैं, जिसका शिकार पूरा समाज हो जाता है और प्रशासनिक अधिकारी अपनी मूर्खता के कारण ऐसे लोगों की बातों में आकर वो काम कर जाते हैं, जिसकी इजाजत संविधान नहीं देता। अब जरा रांची के बुढ़मू इलाके को देखिये। वहां कलश यात्रा के दौरान रास्ते को लेकर विवाद हो गया, पुलिस ने लाठी चार्ज कर दी, हवाई फायरिंग भी की गई, कई जख्मी भी हो गये।
जरा देखिये, यहां विवाद कैसे हुआ? विवाद मामूली है, कलश यात्रा निकलनी है, ये कलश यात्रा एक ऐसे रास्ते से निकलनी है, जिस रास्ते में एक मस्जिद है, कलश यात्रा में आम तौर पर महिलाएं होती हैं। प्रशासन का कहना है कि, एसडीओ रांची अंजलि यादव चाहती थी कि इस रास्ते से कलश यात्रा नहीं निकले, शायद उन्हें किसी अंदेशे की आशंका थी, अब सवाल उठता है कि कलश यात्रा सिर्फ इसलिए उस रास्ते से नहीं निकले, कि उस रास्ते में एक मस्जिद है, ये बात तो पचनेवाली नहीं। अंजलि यादव जी, आपको उनलोगों को समझाना होगा, और जो गलत करते हैं, उन्हें कानून की भाषा समझानी होगी, उन्हें बताना होगा कि भारत इस्लामिक देश नहीं, बल्कि धर्मनिरपेक्ष हैं, सभी को मिल-जुलकर यहां रहना होगा और एक दूसरे के धर्म की इज्जत करनी होगी, और अगर ऐसा नहीं करेंगे तो चाहे, वे किसी भी धर्म के क्यों न हो? उनके साथ कानून अपना काम करेगा, पर आपने किया क्या कानून को ताखे पर रख दिया? और वह काम करना प्रारंभ किया जिसकी इजाजत न तो संविधान देता है और न ही आपका प्रशासनिक धर्म।
आजकल जिसे देखिये कानून का मजाक बना दिया है। रास्ते में मस्जिद हो गया, आप उस रास्ते से केवल इस्लामिक जुलूस ही ले जा सकते हैं, और बाकी नहीं। ये क्या मजाक हैं? और वे चाहे तो जहां पाये, उधर से अपनी जुलूस लेकर हाय-तौबा मचा सकते हैं, हमारा तो स्पष्ट विचार है कि अगर किसी को धार्मिक जुलूस पर ऐतराज होता हैं, तो वह भी संकल्प करें कि उसके लोग भी कभी इस्लामिक जुलूस लेकर, उस रास्ते से नहीं निकलेंगे, जिस रास्ते में मंदिर आता हो, क्योंकि मंदिर में भी रहनेवाले भगवान को, उनके जुलूस से दिक्कत हो जाया करती है।
जरा देखिये, एसडीओ अंजलि यादव का बयान एक अखबार में आया है। क्या बोलती हैं? कलश यात्रा के दौरान महिलाएं आक्रोशित हो गई थी, भाई जब आप उन्हे उनके संवैधानिक अधिकारों पर पाबंदी लगायेंगी तो आक्रोशित होंगी ही। अंजलि यादव का कहना था कि 151 महिलाओं को जाने की अनुमति दी गई थी, भाई आप यह कैसे डिसाइड कर लेंगी कि 151 जायेंगे तो मामला शांत रहेगा और ज्यादा जायेंगी तो दिक्कत हो जायेगा, क्या 151 महिलाओं के जाने से मस्जिद वाली सड़क पर शांति स्थापित हो जाती है? अंजलि यादव ने कहा कि इन्हें रोकने का प्रयास किया गया, तो ग्रामीण उग्र हो गये, भाई किसी की धार्मिक भावना से खेंलेंगे, उसकी संवैधानिक अधिकारों को रोकेंगे तो वे तो उग्र होंगे ही।
इस देश का दुर्भाग्य देखिये। भारत स्वतंत्र हो चुका है। भारत धर्म के आधार पर ही दो टुकड़े में बंटा। एक भारत बना, दूसरा पाकिस्तान बना। 1971 में बांगलादेश बना। धार्मिक आधार पर बंटवारे के बाद लगा था कि भारत में शांति होगी, अब यहां कम से कम धर्म के नाम पर कोई घटियास्तर का सोच देखने को नहीं मिलेगा, अब लोग रामनवमी, जन्माष्टमी धूम धाम से मनायेंगे, पर जरा देख लीजिये, स्थिति क्या है?
एक मामूली कलश यात्रा को लेकर भी लोगों का विरोध शुरु हो जाता हैं, और प्रशासन के लोग उनके विरोध को अमलीजामा पहनाते हुए, सुरक्षा व्यवस्था पर ध्यान देने के बजाय, धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों को अमलीजामा पहनाने के बजाय, धार्मिक जुलूस पर ही रोक लगाने की सारी व्यवस्था कर लेते हैं, यह कहकर कि रास्ते में मस्जिद पड़ती हैं, आप उस रास्ते सें धार्मिक जुलूस नहीं ले जा सकते या सीमित मात्रा में उधर से जा सकते हैं, अब सवाल उठता है कि अभी जो स्थिति हैं सो हैं, अगर इसी तरह मस्जिद हर रास्ते में बन गये तो फिर तो लगता है कि रामनवमी और जन्माष्टमी मनाना ही हम भूल ही जाये, तब तो अंजलि यादव जैसी अधिकारी कहेंगी कि भाई, अब तो चारों और मस्जिद ही मस्जिद है, इसलिए रामनवमी और जन्माष्टमी मना ही नहीं सकते।
सही अर्थ में समस्या समाज और इसके समाधान में प्रशाशनिक संवैधानिक चूक की सृंखलाबद्ध परंपरा और इसके पापस्वरूप पनपे घोरभ्रस्टवाद के अंधेरे पक्ष पर लेखनी प्रकाशित करने हेतु आपको , प्रणाम.