भारत बंद: दलितों के कंधे पर बंदूक रखकर मोदी के सीने पर गोली चलाने की विपक्ष की कोशिश
दलितों के कंधे पर बंदुक रखकर संपूर्ण विपक्ष ने जो सीधे-सीधे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सीने पर जो आज गोली दागने की कोशिश की हैं, उनका निशाना मोदी बने या नहीं, इस पर संपूर्ण विपक्ष को देर रात जब सोने जाये, तो आत्ममंथन जरुर करना चाहिए, कि वे जिस प्रकार की राजनीति कर रहे हैं, उससे देश को वे क्या देने जा रहे हैं या क्या भला होने जा रहा हैं, विपक्षी दलों और दलितों को यह नहीं भूलना चाहिए कि जब देश रहेगा तभी वे अपनी लाभ की रोटी सेंक सकते हैं या मनमर्जी चला सकते हैं, पर जब देश ही नहीं रहेगा तो फिर उनकी भी वहीं हालत होगी, जो मुगल सम्राट के अंतिम बादशाह कहलानेवाले बहादुर शाह जफर की हुई।
उधर चीन भारत की सीमा को छोटा करने पर लगा हैं और यहा का विपक्ष भारत को अंदर से कमजोर करने पर लगा हैं
एक तरफ चीन उत्तर में आपकी सीमाओं का पर कतरने के लिए तैयार हैं, और आप अभी भी उन चीजों के लिए आंदोलन कर रहे हैं, जिसका कोई औचित्य ही नहीं है, छोटा सा नेपाल आपको आंख तरेर रहा है, जिस बांगलादेश को आपने ही स्वतंत्र कराया पर वहीं का विपक्ष आपको खा जाने को तैयार हैं, पाकिस्तान तो अपने जन्म के समय से ही आपको औकात दिखाने को तैयार हैं और परोक्ष युद्ध के द्वारा आपकी कमर तोड़ने की सारी हिमाकत कर रहा हैं, पर आप दलितों के कंधे पर बंदूक रखकर राजनीति कर रहे हैं, जबकि सच्चाई यह है कि इसका कोई फायदा आप नहीं उठाने जा रहे, क्योंकि मोदी आपसे बेहतर राजनीति करना जानता है और इस दलित राजनीति पर उसने वो राजनीति कर भी दी और सर्वोच्च न्यायालय में आज जो केन्द्र सरकार द्वारा इस मुद्दे पर कदम बढ़ाना चाहिए था, वो बढ़ा चुकी, लीजिये आप राजनीति करते रहिये।
क्या एससीएसटी ऐक्ट का दुरुपयोग नहीं होता हैं?
अब सवाल उठता है कि कोई भी कानून जो पूर्व में बना हो, और उसका दुरुपयोग बड़े पैमाने पर हो रहा है, तो उस पर चर्चा क्यों नहीं होना चाहिए? उसमें सुधार क्यों नहीं होना चाहिए? क्या वो कानून ब्रह्मा का लकीर हो गया, कि उसमें सुधार की गुंजाइश नहीं हो सकती? कांग्रेस संविधान में संशोधन पर संशोधन करती चली जाये और जब दूसरे लोग कहें कि संविधान में किसी मुद्दे पर संशोधन होना चाहिए तो आप आग उगलेंगे कि बाबा साहेब अंबेडकर के लिखे संविधान को संशोधित नहीं कर सकते, कमाल हो गया? क्या आप मृत देश में रहते हैं, कि आप इस तरह की बात करते हैं? आज जो भारत बंद हुआ है, उसका आधार क्या है?
क्या सर्वोच्च न्यायालय ने एससीएसटी ऐक्ट खत्म कर दिया? उसने तो सिर्फ यहीं कहा न, कि शिकायत आने के बाद, तुरन्त गिरफ्तारी नहीं होगी, इसमें गलत क्या है? आप किसी के खिलाफ झूठी शिकायत कर दें और उस व्यक्ति का जीवन लीला समाप्त कर दें? पहले सत्यता की जांच हो और तब गिरफ्तारी हो, इसमें गलत क्या है? क्या देश में अंग्रेजों का शासन है, कि न अधिवक्ता, न दलील, जब चाहो गिरफ्तार करा दो और किसी की इज्जत से खेल लो? क्या भारत में रहनेवाले सारे के सारे दलित सही ही शिकायत दर्ज कराते हैं? आप ब्राह्मणों को सभा कर खूलेआम गाली दो, आप पर कोई कार्रवाई नहीं, और आप को किसी ने अनुचित शब्द कह दिया तो आप आसमान उठा लो, संविधान न्याय के लिए बना है, या अन्याय के लिए। यह देश सभी का है या दलित विशेष का है, इस पर विचार तो करना ही होगा? याद रखिये, किसी को इतना भी मत दबाइये कि वह क्रांति का मार्ग पकड़ लें, आज जिस प्रकार दलितों के नाम पर विपक्षियों ने देश के कुछ भागों में कानून को अपने हाथ में लिया, अंधेरगर्दी मचाई या गुंडागर्दी की, उसकी जितनी निन्दा की जाय कम है।
पटना में भारत बंद की एक न्यूज पोर्टल ने ऐसी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जैसे वह समाचार कम, दहशत ज्यादा फैला रहा हो
पटना में तो एक न्यूज पोर्टल ने तीन दिन पहले से ही इस भारत बंद की ऐसी प्रचार कर दहशत फैलाने की कोशिश की, कि जिसकी जितनी निंदा की जाय कम है, उस न्यूज पोर्टल ने आज भी दहशत फैलाई, जबकि बिहार में ऐसी दहशत कहीं नही दिखी, ये दहशत किस राजनीतिक दल के कहने पर फैलाई गई, वह सबको मालूम है, ऐसे न्यूज पोर्टल पर तो कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, पर ऐसे लोगों पर कार्रवाई होगी कैसे, ये लोग तो राजनीतिक दलों के गलेहार हैं और जब सरकारे शपथ लेती है तो इन्हें शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित कर अग्रिम पंक्तियों में बैठाने का प्रयास किया जाता है, धिक्कार है ऐसे पोर्टल और ऐसे कथित पत्रकारों पर।
दलितों और विपक्षी दलों ने भारत बंद को लेकर काटा बवाल, मध्यप्रदेश में तीन मरे, झारखण्ड में भी पुलिस और आंदोलनकारियों के बीच हिंसक झड़प, कई घायल
ऐसे आज के बंद पर दलितों और विपक्षी दलों ने खुब बवाल काटा हैं, मध्यप्रदेश के ग्वालियर और मुरैना में हुई हिंसा में 3 लोगों की मौत हो गई हैं। ग्वालियर के कुछ इलाकों में कर्फ्यू भी लगा दिया गया है। राजस्थान के बाड़मेर एवं उत्तरप्रदेश के मेरठ में प्रदर्शनकारियों ने कई गाड़ियों में आग लगा दी है। यहीं नहीं दिल्ली-देहरादून हाइवे एवं उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ में भी बस में आग लगा दी गई। मुजफ्फरनगर में पुलिस चौकी पर हमले की भी खबर है। इधर केन्द्र सरकार ने एससीएसटी ऐक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर कर दी हैं, फिर भी दलितों और विपक्षी दलों के आज के बंद ने आम आदमी को तंग करने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी थी। ऐसा लग रहा था कि आज भारत बंद के दौरान इन दलितों और विपक्षी दलों को खुलकर आगजनी करने, हिंसक प्रदर्शन करने की छूट मिली हो।
कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने दलितों के इस हिंसक आंदोलन पर राजनीतिक रोटी सेंकी
इधर राहुल गांधी ने भी दलितों के इस हिंसक आंदोलन को और भड़काने का काम किया, शायद उन्हें लगता है कि ऐसा करने से उन्हें दलितों का वोट प्राप्त होगा, उन्होंने कहा कि दलितों को भारतीय समाज के सबसे निचले पायदान पर रखना आरएसएस और बीजेपी के डीएनए में हैं, जैसे लगता है कि इनके खानदान के लोगों ने पूरे देश के दलितों की इस प्रकार सेवा कर दी, कि जैसे यहां के दलितों का इन्होंने उद्धार कर दिया।
इधर झारखण्ड में भी आज के भारत बंद में खूब हिंसा देखने को मिला। रांची में पुलिस और दलित छात्र आपस में भिड़े, बंद समर्थकों ने पुलिस पर ईट पत्थरों से हमला किया, पुलिस ने भी लाठियां बरसायी और आंसू गैस के गोले छोड़े, जबकि दूसरी ओर रांची में बंद का कोई असर नहीं दिखा, जमशेदपुर, कोडरमा, हजारीबाग, साहेबगंज, धनबाद में बंद समर्थक सड़कों पर दीखे, पर स्थिति सामान्य रही। कुल मिलाकर पूरे बिहार-झारखण्ड में स्थिति बिगाड़ने-माहौल को खराब करने की पुरजोर कोशिश की गई, पर राज्य सरकार द्वारा पहले से ही की गई अच्छी व्यवस्था से माहौल बिगड़ने नहीं दिया गया, और आज का दिन शांतिपूर्वक गुजर गया।
पूरे देश में भारत बंद का कहीं असर तो कहीं बंद बेअसर, झारखण्ड की राजधानी रांची समेत धनबाद, जमशेदपुर में नहीं दिखा बंद का असर
आज का भारत बंद, दलितों और विपक्षियों पार्टियों द्वारा केन्द्र सरकार के नाक में दम करने का एक अभुतपूर्व प्रयास ही माना जायेगा, पर सरकार के उपर इस बंद का क्या असर पड़ा, वो तो वक्त बतायेगा, पर इतना तय है कि भारत अपने लक्ष्य से भटक रहा है, और इसके लिए इस देश की सभी राजनीतिक दलों के नेता, जिम्मेवार है, अगर यहीं हाल रहा तो चीन जो पहले से ही हमारी अर्थव्यवस्था को चौपट कर रखा हैं, हमारी आपसी लड़ाई का फायदा उठाकर आराम से जैसे कश्मीर का एक हिस्सा 1962 से अपने पास लेकर रखा हैं, अरुणाचल और सिक्किम भी हम गवां चुके होंगे और फिर बाद में झक-झूमर गायेंगे, कि हम अपनी एक-एक इंच की जमीन लेकर रहेंगे और यही कहते-कहते श्मशान या कब्रिस्तान पहुंच जायेंगे। तो भारत के राजनीतिक दलों और दलितों अपने हक के लिए तब तक लड़ते रहो, बस – ट्रक जलाते रहो और रायफल तानते रहो, पुलिस थाने फूंकते रहो, भारत का गर्दन पकड़ लो, जब तक भारत समाप्त न हो जाये, जब तक भारत 1947 के पूर्व की स्थिति में न आ जाये, ऐसे भी भारत तो हमेशा से गुलाम ही रहा हैं, एक बार और गुलाम हो जायेगा तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा? ऐसे भी हमारे बाप-दादाओं ने गुलामी देखी, हमलोगों ने गुलामी नहीं देखी, क्यों न इस प्रकार की हरकतों को और बढ़ाया जाये कि भारत पल भर में ही ऐसी स्थिति में पहुंच जाये, जिसका सपना हम सब ने देख रखा हैं, क्यों कैसी रही?
बेहतरीन खबर के लिए बहुत-बहुत बधाई