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HC के नये भवन निर्माण में राज्य सरकार के अधिकारियों ने रामकृपाल कंस्ट्रक्शन पर कृपा लूटाए

बेचारे इंजीनियर क्या करेंगे? वो तो हुकुम के गुलाम है, जो हुकुम कहेंगे, बेचारे करते जायेंगे, झारखण्ड के हुकुम कौन है? ये बताने के लिए जरुरत भी नहीं, सभी जानते हैं कि यहां शासन कहां से चलता है और कौन चलाता है? अगर कोई विभागीय इंजीनियर जिसे रांची या बड़े शहरों में रहना है, अच्छी कमाई करनी है, अपनी पत्नी को विदेश का दौरा कराना हैं तो क्या करेगा? वो तो हां में हां, ही मिलायेगा और जब फंसेगा तो उसे इतना विश्वास तो जरुर है कि जिसके इशारे पर गलत कर रहा हैं, वो उसे बचा ही लेगा, क्योंकि इस कुकर्म में अकेले वह ही भागीदारी थोड़े ही हैं।

खबर आ रही है कि महालेखाकार की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ कि हाई कोर्ट के निर्माण के टेंडर में इंजीनियरों ने गड़बड़ी कर, रामकृपाल कंस्ट्रक्शन को अनुचित लाभ पहुंचाया और जब इस संबंध में कार्यपालक अभियंता से पूछा गया तब उसका कहना था कि मामला उच्च स्तर से संबंधित हैं। भाई कार्यपालक अभियंता के इस उच्च स्तर के बयान से ही सब कुछ स्पष्ट हो जाता हैं, कि ये उच्चस्तर में कौन- कौन लोग होंगे?

जो भी ठेकेदार या कंपनियां, जो झारखण्ड में काम करती है, क्या वो नहीं जानती कि जो ठेका उन्हें मिलता हैं, वह किनकी कृपा से और कहां – कहां कृपा लुटाने से प्राप्त होता है? झारखण्ड में तो कई विभाग ऐसे है, जहां काम शुरु हो जाता हैं और टेंडर बाद में निकलता हैं, क्या इससे यह नहीं पता लग जाता कि सारी चीजें पहले से ही तय हो जाती हैं और बाद में टेंडर निकाल कर उसकी खाना पूर्ति कर दी जाती हैं, जो काम करनेवाला ठेकेदार या कंपनियां हैं, वो तो राज्य में काम करनेवाले उच्चाधिकारियों तथा शासन में रह रही सत्ताधारी दल के नेताओं पर इतना विश्वास करती हैं कि उतना विश्वास एक व्यक्ति, ईमानदार आदमी पर नहीं कर सकता।

क्या जब यह काम शुरु हुआ या जिस ठेकेदार को दिया गया? सीएम रघुवर दास या पूर्व सचिव राजबाला वर्मा को हिम्मत था कि रामकृपाल कंस्ट्रक्शन को नाराज कर दें, नाराज करने के लिए नैतिक बल की आवश्यकता होती है, जो इन दोनों में किसी के पास न तो कल था और न ही आज है। लीजिए महालेखाकार ने तो अपनी रिपोर्ट में गड़बड़ियां बता दी, क्या इन गड़बड़ियों की ठीक करने की हिम्मत राज्य के सीएम रघुवर दास को है, या नये-नये बने आज के मुख्य सचिव सुधीर त्रिपाठी को है, उत्तर होगा – एकदम नहीं।

झारखण्ड में जितने भी विभाग हैं, जहां भी इस प्रकार के टेंडर निकलते हैं, वहां की कमोबेश स्थिति यही हैं, ये पहली बार हुआ है कि रामकृपाल कंस्ट्रक्शन के खिलाफ न्यूज भी बाजार में दिखा, नहीं तो कितने अखबार और चैनल के लोग तो इस कंपनी से भी उपकृत होकर, सम्मान प्राप्त करने में अपनी शान समझते हैं।

जरा देखिये हाईकोर्ट निर्माण के टेंडर में रामकृपाल कंस्ट्रक्शन को टेंडर दिलाने के लिए उच्चाधिकारियों और सत्ता में शामिल नेताओं के इशारे पर कैसे बड़ी-बड़ी कंपनियों को ठिकाने लगाकर, राज्य में चल रही रामकृपाल कंस्ट्रक्शन कंपनी को ठेके दे दिये जाते है, यहीं नहीं गलत तरीके से उसका भुगतान भी किया जाता हैं, और सारे के सारे लोग चुप्पी भी साध लेते है।

रांची से प्रकाशित अखबार ‘प्रभात खबर’ ने तो साफ लिख दिया कि झारखण्ड के नये भवन के टेंडर में इंजीनियरों ने भारी गड़बड़ी की है। टेक्निक्ल बिड में ही गलत तथ्यों व छोटी-छोटी बातों के आधार पर ओमान के सुल्तान का शाही महल व लखनऊ हाईकोर्ट का भवन बनाने वाली कंपनियों सहित आठ को टेंडर प्रक्रिया से ही बाहर कर दिया गया। यहीं नहीं इन कंपनियों की गुडविल और वित्तीय स्थिति तक को नजरदांज कर दिया गया। इसके बाद चार कंपनियों को फाइनेंशियल बिड में शामिल कर, सुनियोजित तरीके से रामकृपाल कंस्ट्रक्शन कंपनी को 264.58 करोड़ की लागत से बननेवाली झारखण्ड हाईकोर्ट भवन बनाने का काम दे दिया गया।

महालेखाकार ने अपने रिपोर्ट में कंपनी को एडवांस दिये जाने पर भी सवाल उठाया है। ठेकेदार को मोबलाइजेशन एडवांस के रुप में 26.40 करोड़ का भुगतान किया गया है। मशीन व उपकरण खरीदने के लिए दस करोड़ का एडवांस दिया गया। जबकि ऑडिट होने पर देखा गया कि ठेकेदार ने मशीन व उपकरण खरीदने के नाम पर मात्र 1.13 करोड़ की लागत से मशीन व उपकरण खरीदने का बिल उपलब्ध कराया, इसका मतलब है कि बाकी की मशीन व उपकरण उसके पास मौजूद था।

कुल मिलाकर देखा जाय, तो महालेखाकार की इस रिपोर्ट ने राज्य सरकार में चल रही विकास योजनाओं और सरकार की ढपोरशंखी जीरो परसेंट टोलरेंस और पारदर्शिता का पोल खोलकर रख दिया और जनाब सीएम रघुवर दास अभी भी स्वयं को ईमानदार और काम करनेवाली सरकार का खुद को तमगा लगाकर जनता को बरगलाये जा रहे है?