भगवान परशुराम का परशु और उनके पद चिह्न देखने के लिए झारखण्ड पधारें
आज भगवान परशुराम जयंती है, पर बहुत कम लोगों को मालूम है कि भगवान परशुराम का संपर्क झारखण्ड से भी हैं। झारखण्ड की राजधानी रांची से करीब 160 किलोमीटर दूर हैं, टांगीनाथ धाम। दरअसल झारखण्ड में परशु यानी फरसे को टांगी कहा जाता है और लोगों का मानना है कि टांगीनाथ धाम में जो टांगी हैं, वह भगवान परशुराम का है और यहां भगवान परशुराम के पदचिह्न भी हैं।
बताया जाता है कि इसी इलाके में भगवान परशुराम ने घनघोर तपस्या की थी। लोग कहते है कि जब भगवान श्रीराम ने शिव धनुष तोड़ा, तब उस वक्त भगवान परशुराम जनकपुर पहुंचकर, श्रीराम से खुब बहस की थी, पर जैसे ही उन्हें यह पता चला कि श्रीराम भगवान विष्णु के ही अंश है, उन्होंने श्रीराम को प्रणाम कर, इसी स्थान पर चले आये, और शिवलिंग की स्थापना कर, पास में ही अपना टांगी (फरसा या परशु) गाड़ दिया, तथा तपस्या में लीन हो गये।
कहां जाता है कि भगवान परशुराम का टांगी आज भी टांगीनाथ धाम में सुरक्षित हैं। आम तौर पर माना जाता है, या देखा जाता है कि लोहे का फरसा जंग लग जाता है, पर यहां हजारों वर्षों से खूले आकाश के नीचे पड़े रहने के बावजूद इस टांगी में कहीं से भी जंग नहीं लगा है। कुछ लोग बताते है कि एक बार इस टांगी को प्राप्त करने के लिए, कुछ लोगों ने चोरी करने का मन बनाया, कोशिश भी की, पर इसमें वे सफल नहीं हो सके और इसकी भारी कीमत उन्हें चुकानी पड़ी, इस टांगीनाथ धाम में प्राचीन शिवलिंग और विभिन्न प्रतिमाएं आज भी यहां देखने को मिल जायेंगी, पर राज्य सरकार आज तक इसकी देखभाल और इसके सौंदर्य-रख रखाव पर विशेष ध्यान नहीं देती।
बताया जाता है कि करीब 1989-90 के आसपास पुरातत्व विभाग ने यहां खुदाई की थी, जिसमें कीमती सामग्रियां प्राप्त हुई थी, पर उसके बाद कभी यहां खुदाई नहीं हुई, अगर खुदाई होती तो इसके बारे में और भी जानकारी मिलती, फिर भी इन सभी सारी चीजों से दूर यहां के आदिवासी समुदाय अपने टांगीनाथ पर आज भी उतनी ही श्रद्धा लुटाते हैं, जितनी कल लुटाते थे।