विपक्ष को ये समझना होगा कि उनकी लड़ाई आडवाणी-वाजपेयी जैसे भाजपाइयों से नहीं बल्कि…
झारखण्ड के नगर निकाय चुनाव परिणाम आ गये। भाजपा की दसों अगूंलियां, पैर, माथे, यानी सब कुछ घी के डब्बे में हैं। सभी प्रसन्न हैं। मुख्यमंत्री, मंत्री से लेकर कार्यकर्ता, संतरी तक, क्योंकि रिजल्ट ऐसा आया है, जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती, उनके द्वारा किया गया साम-दाम-दंड-भेद की राजनीति आज सफल हो गई, ईवीएम ने वहीं उगला, जो उसने निगला था, बेचारी झामुमो-कांग्रेस के लोग, यहां तक की भाजपा के कार्यकर्ता भी हैरान है कि ये कैसे हो सकता है कि जहां से जिनका हारना निश्चित है, वहां से भी वे जीत रहे हैं? इसका मतलब है कि सचमुच ईवीएम देवता इधर भाजपा से ज्यादा ही प्रसन्न हैं। अब तो चुनाव जीतने की आशा रखनेवाले, तो ये भी कहने लगे है कि भाई अगर जीत सुनिश्चित करनी है, तो भाजपा से खड़े हो जाओ, ईवीएम की कृपा तुम पर जरुर बरसेगी, तुम जीतोगे, नहीं तो कहीं भाजपा से इतर किसी अन्य पार्टी की राह पकड़ी तो सात जनम तक हाड़ में हरदी लगवाने के लिए तरस जाओगे।
पिछले कई दिनों से भाजपा की हार सुनिश्चित माननेवाले भाजपा कार्यकर्ताओं की एक टीम आज हैरान और परेशान है, कि जहां से भाजपा को एक वोट नहीं मिलना है, वहां पर भी भारी जीत भाजपा का कैसे हो सकता है? ये सब ईवीएम की ही कृपा है। विपक्षी दल के नेता व कार्यकर्ता अगर हैरान है तो उसकी बात ही अलग है। एक समय था, जब चुनाव मतपत्र से होते थे, तब मतपत्र की पेटी ही बदल दिया जाता था, पर क्या आज संभव नहीं कि ईवीएम मशीन का ही ऐसा कोई उपाय कर दिया जाय कि इसे चुनाव के दिन कुछ भी खिलाया जाय पर जब इसे निगलने की बारी आये तो वही निगले, जो इससे निगलवाना हो। इस पर विचार आज के विपक्षी दलों के प्रमुख नेताओं की करना चाहिए, नहीं तो किसी जिंदगी में यहां वे शासन नहीं कर पायेंगे, हमेशा भाजपा का ही राज रहेगा, हालांकि कहनेवाले, ये भी कहेंगे, कि अगर ऐसा ही है, तो विधानसभा के चुनाव में पंजाब में क्यों नहीं हुआ? उसका उत्तर साफ है कि कहीं – कहीं दिखलाने के लिए हाथी की तरह खाने और दिखाने के दांत अलग-अलग की तरह, ये प्रयोग किया जा रहा है, जिसे समझने की जरुरत हैं।
और अब इन सबसे अलग, मैं आपको आज एक कहानी सुनाता हूं। कहानी यह है कि रमेश और उमेश दोनों भाई मैट्रिक की परीक्षा में प्रथम श्रेणी से उतीर्ण हो गये। रमेश और उमेश के पिताजी और मां दोनों बहुत प्रसन्न थे, क्योंकि उनका दोनों बेटा 96 प्रतिशत अंक लाकर प्रथम श्रेणी में उतीर्ण हुआ, पर जिस स्कूल में रमेश और उमेश पढ़ा करते थे, उस विद्यालय के शिक्षक हैरान थे कि ये कैसे हो सकता है कि, एक मूर्ख लड़का, जो किसी भी प्रकार से एक प्रश्न ठीक ढंग से नहीं हल कर सकता? वो प्रथम श्रेणी से उतीर्ण कर जाये, एक बार एक शिक्षक ने इन दोनों विद्यार्थियों से पूछ ही लिया कि रमेश-उमेश बताओ, ये कैसे हो गया कि तुम प्रथम श्रेणी से उतीर्ण हो गये? दोनों ने बताया कि ये सब ईश्वरीय कृपा है, क्योंकि वो बार-बार अपने मां-पिताजी से यहीं सुना करता था कि ईश्वरीय कृपा से सब कुछ हो जाता है, वह भी हो जाता है, जो असंभव है।
रमेश-उमेश के इस उत्तर से हैरान, विद्यालय के शिक्षक ने उसके माता-पिता से पूछा तब, उसके माता-पिता ने जवाब दिया कि शिक्षक महोदय, हम तो अपने बच्चों के ज्ञान के बारे में सब कुछ जानते है, हमने तो बस इतना ही किया, कि जहां परीक्षा की कॉपी जांची जा रही थी, और जहां टेबलेटिंग हो रहे थे, वहां पर अपनी कुबेर दृष्टि फैला दी, जो जिस प्रकार से उपकृत होना चाहते थे, उपकृत किया, मेरे दोनों बेटे प्रथम श्रेणी से उतीर्ण हो गये, और क्या करना है, सच्चाई तो यह है कि हमारे बेटे किसी जिंदगी में मैट्रिक की परीक्षा पास ही न कर सकें।
बस इस कहानी को झारखण्ड नगर निकाय चुनाव में आप समायोजित करके देखिये। उसका उदाहरण है – पांचों नगर निगम में भाजपा का कब्जा होना। भाजपा अच्छी तरह जानती थी कि उसकी लहर पूरी तरह समाप्त है, जनता उससे नाराज है, सीएनटी-एसपीटी एक्ट हो, या स्थानीय नीति-नियोजन नीति, उससे पूरा समाज नाराज है, फिर भी जीत गये, मतलब समझिये।
राज्य के प्रमुख विपक्षी दलों को इस पर आत्ममंथन करना चाहिए, वे जो ये सोच रहे है कि जनता तो उनके साथ है, जीत हो जायेगी, अब ये असंभव है, अब जनता आपके साथ रहेगी पर इवीएम साथ नहीं देगी तो फिर आप जिंदगी पर विपक्ष में बैठकर मसाला पीसते रह जायेंगे, और भाजपा जैसी पार्टियां आपकी छाती पर मूंग दलेगी। राज्य में विपक्षी दलों का हार का कारण बस वहीं रमेश-उमेश की कहानी है, जिसे आप इवीएम मशीन पर लाकर फिट कीजिये। देखिये बड़ी ही सुनियोजित ढंग से विपक्षी दलो को पहले लीडिंग कराया जाता है, ताकि आप ईवीएम मशीन पर अंगूली नहीं उठाये, और जैसे ही आप कन्फर्म हो जाते है, वैसे ही ईवीएम मशीन अपना रंग दिखाना शुरु करती है, और कई सीटों पर भाजपा हारते-हारते भारी मतों से जीत जाती है।
ये कैसे हो सकता है कि जहां का आदिवासी, अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक समाज जिस पार्टी से नाराज हैं, जहां बलात्कार सामान्य सी बात है, जहां लोग भूख से मर रहे हो, जहां कानून-व्यवस्था और विकासात्मक कार्य सभी ठप है, जिस पार्टी पर घिनौने आरोप है, और वह पार्टी पांच की पांच नगर निगम की सीट पर कब्जा कर लेता है।
विपक्षी दलों को चाहिए कि पहले तो वह एकजुट हो, दूसरा ईवीएम के खेल को बंद कर मतपत्रों के सहारे वोटिंग कराये, तीसरा चुनाव कार्य में लगे भाजपा समर्थक अधिकारियों की एक सूची तैयार कराये और उन पर नजर रखे, चौथा जनता को जागरुक करें कि वह भी चुनाव प्रक्रिया में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अपनी जिम्मेदारी निभायें, नहीं तो समझ लीजिये, अगर यहीं हाल रहा तो नोटबंदी, बलात्कार, ठप होती अर्थव्यवस्था, कराहती जनता, नौकरी के लिए तबाह होते युवा, प्रदर्शन करते किसान के बावजूद 2019 में भाजपा आ जायेगी।
हम कभी विश्वास नहीं कर सकते, जिस राज्य में एक बलात्कार की शिकार बेटी के पिता को सरेआम एक मुख्यमंत्री भरी सभा में बेइज्जत करता हो, वहां की जनता उसे वोट देगी। जिस राज्य में सीएनटी-एसपीटी को लेकर पूरा आदिवासी समुदाय आंदोलित हो, वहां की जनता इसे वोट देगी। जिस राज्य में किसान बड़े पैमाने पर आत्महत्या किया हो, वहां की जनता इसे वोट देगी। जिस राज्य में एक जाति समुदाय को यहां का मुख्यमंत्री अपमानित करता हो, वह समुदाय ऐसी पार्टी में शामिल रहनेवाले मुख्यमंत्री तथा उसकी समर्थित पार्टी को वोट देगा। जिस राज्य मे कौशल विकास के नाम पर लूट मची हो, जहां विकास के नाम पर ठेकेदारों और आईएएस अधिकारियों को मालामाल कर दिया जाता हो, वहां की जनता ऐसे लोगो को वोट करेगी, इसलिए विपक्षी दलों चिन्तन करों, और उससे मुकाबला करो, आपकी लड़ाई कोई अटल बिहारी वाजपेयी या लालकृष्ण आडवाणी जैसे सिद्धांतवादी व्यक्ति विशेष से नहीं बल्कि अमित शाह और नरेन्द्र मोदी जैसे चालाक लोगों से भी हैं, जो बूथ मैनेजमेंट के नाम पर कुछ और ही मैनेज कर लेते हैं, लड़ना होगा, ऐसे लोगों से, और इसके लिए एक व्यूहरचना करनी होगी, क्या आप तैयार है इसके लिए, अगर तैयार नहीं है, तो फिर समझ लीजिये 2019 में आप हाथ मलते रह जायेंगे और ईवीएम फिर वहीं उगलेगा, जो उसे उगलवाने के लिए कहा जायेगा।