तो क्या रघुवर सरकार ने मान लिया कि उपद्रवी, दंगाई, तिलक लगानेवाले, भगवाधारी होते हैं?
जमशेदपुर में जिस प्रकार पुलिस ने मॉक ड्रिल में पुलिस अधिकारियों के सामने आंदोलनकारियों का स्वरुप पेश किया, वह पूरे राज्य में चर्चा का विषय बना हुआ है। इस खबर को राज्य के कई अखबारों ने प्रमुखता से भी प्रकाशित किया है, जो सोशल साइट पर भी चर्चा का विषय बना हुआ है। आम तौर पर मॉक ड्रिल में इस प्रकार के दृश्यों को पेश करने से बचना चाहिए, क्योंकि दंगाई कोई भी हो सकता है, उसका न तो किसी धर्म से और न किसी रंग से कोई वास्ता होता है, पर देश व राज्य की राजनीति जो न कराएं।
पिछले 9 मई को जमशेदपुर के गोलमुरी पुलिस लाइन में पुलिसकर्मियों ने मॉक ड्रिल किया। इस मॉक ड्रिल में जो प्रदर्शनकारी का नेतृत्वकर्ता था, वह भगवा कलर का कपड़े पहने था, उसके माथे पर तिलक भी लगा था, उसके साथ बच्चे भी थे, और ये प्रदर्शनकारी जवानों पर अंडे और बोतलों से हमले कर रहे थे, जिसके जवाब में जवानों ने इन पर गोल दागे, आंसू गैस भी छोड़े। करीब दो घंटे तक इस प्रकार का प्रदर्शन चलता रहा।
जब यह मॉक ड्रिल चल रहा था तब उस समय सिटी एसपी प्रभात कुमार, एडीएम सुबोध कुमार सहित शहर के सभी डीएसपी, सार्जेट मेजर तथा कई थानों के थाना प्रभारियों का समूह भी वहां उपस्थित थे। जमशेदपुर के इस घटना पर संघ (आरएसएस) और संघ से जुड़े कई वरीय अधिकारियों में नाराजगी देखी जा रही है, जबकि संघ में ही एक ऐसा भी गुट है, जो सरकार के विभिन्न योजनाओं का भरपूर लाभ ले रहा है, उसको इस घटना से कोई फर्क नहीं पड़ रहा, वह आज भी मुख्यमंत्री रघुवर दास के साथ चट्टानी एकता प्रदर्शित कर रहा है, हाल ही में रांची में आयोजित प्रज्ञा प्रवाह के एक कार्यक्रम में ऐसे लोगों का मुख्यमंत्री रघुवर दास की प्रशंसा करना उदाहरण के तौर पर देखा जा रहा है, जबकि पूर्व में ऐसा कभी नहीं देखा जाता था, संघ अपना और सरकार अपना काम करती थी।