अच्छा इन्सान बनने के लिए भक्तिमार्ग अपनाएं, श्रीमद्भागवत कथा सुने और सुनाएं
रांची के चुटिया स्थित वृंदावनधाम में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के चौथे दिन वामन अवतार और भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव की धूम रही। महाराष्ट्र से पधारे भागवताचार्य संत मणीषभाई जी ने भगवान वामन एवं भगवान श्रीराम के जीवन के माध्यम से बताया कि आखिर श्रीमद्भागवत एक सामान्य व्यक्ति से कहना क्या चाहता है। उन्होंने बड़े ही सरल शब्दों में कहा भागवत सिर्फ यहीं कहता है कि जब आप भक्तियोग में रमते हैं तो आप पर ईश्वरीय कृपा होती है, आप एक अच्छे इंसान बनते हैं और इससे केवल अपना ही नहीं, बल्कि आप अपने परिवार, घर, समाज और देश को भी बेहतर स्थिति में ले आते हैं।
उन्होंने कहा कि आप डाक्टर बने, इंजीनियर बने, अधिकारी बने या और कुछ बन जाये, पर जब तक आप अच्छे इन्सान नहीं बनेंगे, आप बेहतर सेवा नहीं दे पायेंगे, अच्छा इन्सान बनने के लिए जरुरी है कि आप भक्तिमार्ग अपनाएं, श्रीमद्भागवत के संदेश को सुने और सुनाये।उन्होंने कहा कि भक्ति में भाव को प्रस्फुटित कीजिये, भगवान से भय मत खाइये, वो आनन्द प्रदान करनेवाले है। उनसे प्रेम करना सीखिये, जब आप प्रेम करेंगे, तभी भक्ति का आनन्द प्राप्त करेंगे, क्योंकि भाव एक ऐसा नौका है, जहां सत्ता भगवान की नहीं, भक्त की चलती है, यहीं कारण है कि भगवान कृष्ण सदैव गोपियों के प्रेम में वशीभूत होकर, उनके ही होकर रह गये।
उन्होंने कहा कि भक्ति कैसी होना चाहिए, ये जानना हैं तो महान संत वल्लभाचार्य को जानिये, संत नामदेव को जानिये, जो सभी जगह भगवान को देखते है, संत नामदेव जब भोजन कर रहे थे तो एक कुत्ते ने उनके थाली से एक रोटी लेकर भागने की कोशिश की, और संत नामदेव उसे कुत्ते में भी भगवान को देख, घी की कटोरी लेकर पीछे भाग रहे है कि प्रभु वो सुखी रोटी है, उसे घी में लगाकर खाइये, आनन्द आयेगा, ऐसी होती हैं भाव और ऐसी होती है भक्ति तब जाकर भगवान की प्राप्ति होती है। उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत कहता है कि परस्परेदेवो भव, सभी एक दूसरे में भगवान को देखे, प्रार्थना, सत्संग, सेवा, दया, कीर्तन ये ऐसे भाव है, जो आपको भगवान के निकट लाते है, उन्होंने कहा कि आप कुछ बने या न बने, पर भगवान के भक्त अवश्य बने, क्योंकि इसके बिना आपका कल्याण संभव नहीं। उन्होंने नारायण के मस्त्य अवतार, कच्छप अवतार की भी कथा सुनाई। समुद्रमंथन का भी विस्तार से वर्णन किया।
उन्होंने कहा कि भगवान नरसिंह को अवतरित करने में प्रह्लाद की महती भूमिका थी, प्रह्लाद ने ही अपनी भक्ति से भगवान को एक खंभे में प्रकट करा दिया और यहीं प्रह्लाद के बेटे वीरोचन के घर में बलि का जन्म हुआ, जिनकी दानवीरता की कहानियां पूरे आर्यावर्त में चर्चित है। बलि महालक्ष्मी के परमभक्त थे, वे हमेशा दान किया करते, क्योंकि उनका मानना था कि उनके पास जो भी कुछ आ रहा है, वह महालक्ष्मी की कृपा से आ रहा है, इसमें उनका कुछ नहीं। इधर बलि के ऐश्वर्य और उसके भय से तीनों लोकों में हड़कंप मचा, देवताओं को अभय दान देने के लिए भगवान ने वामन का रुप धारण किया तथा दान में तीन पग भूमि मांग ली, इधर वामन ने तीन पग भूमि मांगी, और वामन ने दो पग में ही संपूर्ण लोक नाप लिये और तीसरे पग बलि के सर पर रखा और इस प्रकार बलि ने अपनी दानवीरता की सर्वोच्चता को सिद्ध किया। इधर बलि की दानवीरता से प्रभावित वामन ने बलि से वर मांगने को कहा। बलि ने वर में यहीं मांगा कि वह जब भी आये-जाये, भगवान का दर्शन होता रहे, फिर क्या था, भगवान को बलि के यहां द्वारपाल बनना पड़ा।
बलि के घर द्वारपाल बनने का संदेश यह बताता है कि एक भक्त चाहे तो भगवान को किस स्थिति में लाकर खड़ा कर सकता है, इसे आप समझिये। आपको भगवान से डर लगता है, पर भगवान तो अपने भक्तों से भय खाते हैं, प्रमाण आपके सामने हैं। इधर लक्ष्मी, अपने प्रिय भक्त बलि के पास जाती है और रक्षासूत्र बांधकर अपने नारायण को मांग लेती है, फिर भी नारायण और लक्ष्मी की कृपा बलि पर ऐसी हुई कि आज बलि की यश-कीर्ति अमर हैं। उन्होंने सभी से कहा कि अगर आप लक्ष्मी की कामना करते हैं तो नारायण की सेवा करना नहीं भूले, क्योंकि बिना नारायण की सेवा के लक्ष्मी कभी प्रसन्न नहीं होती, लक्ष्मी को लाने के लिए नारायण को भजिये।
वामन अवतार के वर्णन के बाद जैसे ही भगवान राम के जन्म की कथा उन्होंने सुनानी शुरु की, भागवत कथा सुनने आये भक्तों और श्रद्धालुओं की मनोदशा देखने लायक थी। सभी भक्त भगवान श्रीराम की झांकी को एक पलक देखने, उन्हें निहारने को आतुर दीखे। मणीषभाई जी महाराज ने सभी से कहा कि भगवान राम का दर्शन भाग्यवाले को मिलता है, और जो उनके जीवन-चरित्र को उतारता है, उसका जीवन देवत्व को प्राप्त हो जाता है, उन्होंने सभी से कहा कि वे अपने बच्चों में राम को देखे, उन्हें राम जैसा बनाये, क्योंकि देश को फिलहाल राम जैसे युवाओं की आवश्यकता है।