“शिकारी आयेगा जाल बिछायेगा” वाली कहानी के तर्ज पर कल रांची में संपन्न हुआ पर्यावरण दिवस
कल पूरे रांची में विश्व पर्यावरण दिवस की धूम थी। अखबारवालों, राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास और कई स्वयंसेवी संगठनों को कल पर्यावरण को लेकर बड़ी चिन्ता थी, वे प्लास्टिक के बने फ्लैक्स, होर्डिंग्स, बैनर, थैलों को लेकर विभिन्न स्थानों पर जुटे थे, खूब चिल्ला रहे थे – हमें पर्यावरण को बचाना है, जलाशयों को बचाना है, अगर जलाशय नहीं बचेंगे तो हमारी जिंदगी प्रभावित हो जायेगी, इस प्रकार चिल्लाते-चिल्लाते ये पोज भी दे रहे थे, और उनके इन पोजों के साथ अखबार वाले फोटो भी खीचें जा रहे थे, जब फोटो सेशन खत्म हुआ तो सभी ने अपने-अपने प्लास्टिक के थैले, बैनरों, फ्लैक्सों को इधर-उधर एक दो बार चमकाया और फिर उसकी इतिश्री कर चलते बने।
सच्चाई यहीं है कि हर पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है, रांची की सड़कों पर हर साल अखबारवालों, राज्य के मुख्यमंत्री और कई स्वयंसेवी संगठनों का जत्था जुटता है, फोटो खींचवाता है, अखबारों में छपवाता है, और फिर 364 दिनों के लिए पर्यावरण संबंधी सारे कार्यक्रम गायब, क्योंकि उनके अनुसार साल के 364 दिनों में हर दिवस की अपनी अहमियत होती है, तो ऐसे में क्यों नहीं, उन दिवसों की भी चिंता की जाय और फिर जब 5 जून आयेगा तो फिर वहीं पर्यावरण दिवस मनाने की बात।
ये हरकत देख, हमें बचपन में सुनी वह कहानी याद आ गई, जो बचपन में सुनी थी, कहानी थी – एक बहेलिया था, जो जाल बिछाकर चिड़ियों को पकड़ता और उन्हें बेचकर, अपने परिवार को चलाता। एक दिन चिड़ियों की संख्या कम होता देख, चिड़ियों ने सभा की, कि ऐसे तो सारे चिड़ियां खत्म हो जायेंगी, इसलिए बहेलिये से बचने का कोई उपाय? तभी वृद्ध चिड़ियां ने सब को कहा कि उसके पास एक मंत्र है, जिसका जप करने से सारी चिड़ियां सुरक्षित हो जायेगी। वृद्ध चिड़ियां ने कहा, कि वह मंत्र है, जिसे सभी याद कर लें और उसे जपे। मंत्र था – “शिकारी आयेगा, जाल बिछायेगा, दाना डालेगा, लोभ में आकर फंसना नहीं।“ फिर क्या था, चिड़ियों ने मंत्र जपना शुरु किया। जब बहेलिया ने चिड़ियों को यह बोलते सुना, तब वह बहुत दुखी हुआ कि चिड़ियां तो अब बहुत तेज हो गई है, अब तो वह उसकी गिरफ्त में ही नहीं होगी।
इस प्रकार बहेलिया की स्थिति खराब होती गई, वह बेकारी से जूझने लगा, एक दिन उसके मित्र ने उससे उसके इस हालात का कारण पुछा, बहेलिया ने पुरी कहानी सुना दी। बहेलिये के मित्र ने कहा कि भाई, चिड़ियां तो चिड़ियां होती है, उन्हें इतनी बुद्धि कहां से आ गई। उसने बहेलिये से कहा कि एक काम करो, तुम उसी जगह अपनी जाल लगाओ, जहां तुम जाल लगाया करते थे, और फिर देखो क्या होता है? बहेलिये ने जाल फैलाया और चिड़ियों का झूंड एक-एक कर उसमें फंसता गया, सारे चिड़ियां जाल में फंसने के बाद यहीं चिल्ला रहे थे कि “शिकारी आयेगा, जाल बिछायेगा, दाना डालेगा, लोभ में आकर फंसना नहीं।“
ठीक इसी कहानी के तर्ज पर हमारे रांची के अखबारवालें, नेताओं का समूह और स्वयंसेवी संगठनों का समूह हरकतें कर रहा है, नहीं तो आज का अखबार देख लीजिये और विश्व पर्यावरण दिवस को मना रहे, इन समूहों के छपे फोटों को देख लीजिये कि कैसे ये पर्यावरण बचाने का मंत्र जपे जा रहे हैं और उसी कार्यक्रम में पर्यावरण को प्रभावित करनेवाले प्लास्टिक के बने सामग्रियो का कैसे खुलकर प्रयोग कर रहे हैं? अगर किसी को नहीं दिखाई पड़ रहा हैं तो मेरे पास आये, हम उन्हें उन तस्वीरों को आराम से दिखा भी देंगे। एक अखबार ने तो कल जलाशयों को बचाने के लिए अभियान भी चलाया, पर जरा देखिये कि उसी के अभियान में कितने लोग प्लास्टिकों का उपयोग कर रहे हैं?
अब सवाल उठता है कि जब नीयत सही नहीं हो, तो इस प्रकार के कार्यक्रम करने से क्या फायदे, रही बात कि लोग आपके खूब निकले इस कार्यक्रम में, तो मेरा मानना है कि ये वहीं लोग थे, जो आपके कार्यक्रमों में भजन, गीत, डांस तथा नाना प्रकार के होनेवाले कार्यक्रमों में भाग लेते हैं, जिनकी दुकानदारी आप चलाते हैं, खबरों के माध्यम से, वे तो जायेंगे ही, पर आम जनता जो सीधे इससे जुड़ी है, वह कितनी थी? जिस दिन ये आम जनता आप से जुड़ जायेंगी, फिर देखियेगा, हर दिन विश्व पर्यावरण दिवस हो जायेगा, और ये तभी होगा, जब आपके नीयत साफ होंगे और ये नीयत बाजार में तो बिकती नहीं, कहां से लायेंगे, समझते रहिये।