ज्यादा इतराइये मत रघुवर का काम है कानून बनाना और फिर उसे अमल में नहीं लाना
झारखण्ड सरकार ने जबरन धर्मांतरण को संज्ञेय अपराध माना है। कैबिनेट ने इसकी मंजूरी भी दे दी है। कैबिनेट के इस मंजूरी के बाद से, झारखण्ड में बहुत लोग इतरा रहे हैं। ये इतरानेवाले वे लोग हैं, जो कई वर्षों से झारखण्ड में चल रहे धर्मांतरण पर रोक लगाने की मांग कर रहे थे। झारखण्ड में धर्मांतरण के ज्यादातर शिकार आदिवासी है, क्योंकि गरीबी के शिकार इन भोलेभाले आदिवासियों को धर्म के मूल स्वरुप का पता हीं नहीं है, वे तो सिर्फ ये जानते है कि जो सामनेवाला बता रहा है, वहीं उससे ज्यादा जानकार है और बस उसके जादूई बातों में आकर अपने ही मूल संस्कृति और परंपराओं से सदा के लिए कट जा रहे है। जो इनका धर्मांतरण कराते है, वे पहले तो इन्हें प्रकृति पूजक बताते हुए, इनका बड़ा ही सम्मान का ढोंग करते है, पर जैसे ही इनका धर्मांतरण हो जाता है, वे अपने स्वरुप में आ जाते है…
याद रखे, यहां जो भी धर्मांतरण होता है, सिर्फ और सिर्फ पेट की आग बुझाने के लिए होता है, जबकि विदेशों में ऐसी स्थिति नहीं है, पर वहां आप जाकर देखेंगे कि चर्चें वीरान हो रही है, वहां कोई अब जाना नहीं चाहता, लोग हरे राम, हरे कृष्ण कहते हुए हिन्दुत्व के पथ पर निकल पड़े है, पेट की आग बुझाने के लिए नहीं, बल्कि मन की शांति के लिए….
धर्म के मूल स्वरुप को अरबों-खरबों में एक या दो ही लोग जान पाते हैं, सब नहीं।
रघुवर सरकार ने कल कैबिनेट में जबरन धर्मांतरण रोकने के उद्देश्य से तैयार विधेयक को स्वीकृति दे दी। साथ ही क्लियर किया कि इस विधेयक को आगामी मॉनसून सत्र में लाकर इसे कानून का रुप दे दिया जायेगा। इस विधेयक को झारखण्ड धर्म स्वतंत्र विधेयक 2017 का नाम दिया गया है। इस विधेयक में बताया गया है कि जबरन या लालच देकर धर्मांतरण करानेवालों को पचास हजार जुर्माना और तीन साल की जेल, महिला और अनुसूचित जाति-जनजाति के मामले में चार साल का जेल और एक लाख जुर्माना तथा जांच इंस्पेक्टर रैंक के नीचे के अधिकारी नहीं करेंगे। इसमें यह भी उल्लिखित है कि जो भी व्यक्ति धर्मांतरण के लिए समारोह आयोजित करेगा वह पहले उपायुक्त से अनुमति लेगा, ऐसा नहीं करने पर एक साल की जेल और पांच हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
रघुवर सरकार ने अभी कैबिनेट से इसे पास कर दिया और लोग इतराने लगे, हालांकि इस प्रकार के कानून से कुछ नहीं होगा, जो लोग इस धंधे में लगे है, वे तो और शान से धर्मांतरण करायेंगे, और कहेंगे कि उपरवाले के इस नेक काम करने के लिए अगर दस साल की भी सजा हो, तो भी कम है। हंसते हुए जायेंगे, इससे उपरवाला खुश होगा, और स्वर्ग देगा, क्योंकि हमारे देश में जाहिलों की कोई कमी नहीं है, ये ज्यादा जाहिल पढ़े-लिखे लोग है, जो झूठ और पाशविकता को ही धर्म की जागीर समझकर तरह-तरह के हथकंडे अपनाते है और इसी को धर्म समझ लेते है, जबकि धर्म तो धर्म है, वह इन सबसे जुदा है, जो जानते है, सो जानते है, ऐसे भी धर्म के मूल स्वरुप को अरबों-खरबों में कोई एक – दो ही व्यक्ति समझ पाता है, जो समझता है, वो ईश्वर का हो जाता है, और जो नहीं समझता, जाहिलों की तरह चिल्लाता रहता है।
क्यों आवश्यकता पड़ी झारखण्ड धर्म स्वतंत्र विधेयक 2017 लाने की?
आखिर रघुवर सरकार ने इस प्रकार का विधेयक ऐसे समय में लाने की कोशिश क्यों की? चूंकि संघ और उसके आनुषांगिक संगठन रघुवर सरकार के क्रियाकलापों से खुश नहीं है, बस उन्हें रिझाने के लिए ही यह विधेयक लाया गया और पास कराया गया, ऐसे भी इस सरकार के क्रियाकलापों से न तो संघ और न ही उसके आनुषांगिक संगठन ही खुश हैं, ये सब मजबूरियों में इन्हें झेल रहे है, क्योंकि कोई सामने विकल्प नहीं है, विकल्प तैयार किया जा रहा है, जैसे ही विकल्प तैयार होगा, इन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जायेगा। समय निकट है।
ज्यादा इतराइये मत जैसे और बने कानूनों का हाल हैं, उसी तरह इसका भी होगा
और अब इस विधेयक के कैबिनेट से पास हो जाने के बाद इतरानेवालों से सवाल…
- भाई यहां तो संपत्ति विनाश एवं क्षति निवारण अधिनियम-2016 के तहत जुर्माना समेत न्यूनतम छह माह और अधिकतम दस साल तक की सजा का प्रावधान है, तो क्या यहां दंगे और आंदोलन रुक गये, जरा रघुवर सरकार से पूछो कि इस कानून के तहत अब तक कितनों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज हुई और कितनों के उपर कानूनी शिकंजा कसा?
- भाई यहां तो गो हत्या पर प्रतिबंध है, तो क्या यहां गोहत्या नहीं हो रही है? अरे रोज रांची की सड़कों पर देखो, खासकर डोरंडा राजेन्द्र चौक, कांके सीएम हाउस, लालपुर चौक, कोकर-कांटा टोली चौक की कैसे, गो तस्कर इन गायों को लाकर कसाईखानों में ले जाकर उसका कत्ल कर-करा रहे है।
अरे कानून बनाना काम है उनका, बना दिये। अब उसे अमल में लाना अधिकारियों का काम है, ये कितने होनहार है, वो तो सबको मालूम है, इन्हें अपने मकान जयपुर, दिल्ली, मुंबई, गोवा जैसे महानगरों में बनाने से फुर्सत मिले तब न। ऐसे में जीवन के इस भागदौड़ में किसे है, कानून का पालन करवाना? इतना तो नेता को भी मालूम नहीं होता कि उसने अब तक कितने कानून बनाये, कानून बनने के लिए ये भी बन गया, इसलिए जैसे गोहत्या बने कानून का हाल है, जैसे संपत्ति विनाश एवं क्षति निवारण अधिनियम 2016 का हाल है, इसी तरह इस विधेयक का भी हाल होगा, आप निश्चिंत रहे, रघुवर दास को ज्यादा भाव न दें, इन्हें लाइट में लें और अपना काम करें….