पाकिस्तान का PM इमरान हो या नवाज हो या हाफिज सईद, उससे भारत को क्या?
पाकिस्तान में इमरान प्रधानमंत्री बने या नवाज शरीफ या हाफिज सईद, भारत को क्या फर्क पड़ता हैं? उसे तो हर हाल में पाकिस्तान को झेलना हैं, क्योंकि पाकिस्तान की बुनियाद ही भारत से घृणा और नफरत पर टिकी हैं, कश्मीर तो सिर्फ बहाना हैं, यकीन मानिये, अगर कश्मीर समस्या समाप्त भी हो गई तो ये नये पैतरे ढूंढेंगे, भारत से लड़ने के लिए और उन्हें वह नया पैतरा भी जल्द मिल जायेगा।
पाकिस्तान में कल संपन्न हुए चुनाव के बाद हो रहे मतगणना में इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ ने सर्वाधिक 119 सीटों के साथ पहले, नवाज शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग 61 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर हैं, हालांकि इस बार बड़ी संख्या में धर्मांध व आतंकियों के ग्रुप ने भी अपने उम्मीदवार उतारे थे,पर इस बार के चुनाव में उन्हें सफलता नहीं मिली, और इस असफलता पर यह कह देना कि पाकिस्तान की जनता ने उन धर्मांध व आतंकियों को नकार दिया, ये सरासर भारत की जनता को धोखे में रखना हैं, क्योंकि सभी जानते हैं कि जो चुनाव लड़ेगा, वहीं जीतेगा या हारेगा?
जनता इन्हीं लोगों में से अपना विकल्प चुनेगी, ऐसे में अगर कल धर्मांधियों/आतंकियों का पलड़ा भारी होगा तो निःसंदेह पाकिस्तान की बागडोर धर्मांधियों/आतंकियों के हाथों में होगी, इसलिए किसी को भी पाकिस्तान में हुए इस चुनाव में आतंकियों को मिली असफलता से ज्यादा खुशफहमी नहीं पालना चाहिए, क्योंकि आज भी इन धर्मांधियों/आतंकियों को कश्मीर के नाम पर खुराक वहां की आम जनता ही उपलब्ध कराती है और गाहे बगाहे ऐसे आतंकियों/धर्मांधियों को वहां की सरकार और सेना समय-समय पर प्रमोट करती रहती हैं, क्योंकि उनके लिए जो कश्मीर में आंतकी लड़ रहे हैं, वे जेहादी हैं, और जो दूसरे जगहों पर आतंक मचा रहे हैं, वे आंतकी हैं, वे पाकिस्तान के दुश्मन हैं, जिस देश में इस प्रकार की सोच फल-फूल रही हो, उस पर आप भरोसा कैसे कर सकते हैं?
अब जरा आज की ही बात ले लीजिये, अभी पाकिस्तान में वोटों की गिनती चल ही रही हैं, अभी इमरान खान की पार्टी को बहुमत भी नहीं मिला हैं, अभी इमरान खान प्रधानमंत्री पद की शपथ भी नहीं लिये पर उनका बयान क्या आता हैं? वे संवाददाता सम्मेलन में कहते है कि हम अपने मसले बातचीत से हल कर सकते हैं, भारत की सरकार अगर एक कदम आगे बढ़ेगी तो हम दो कदम आगे बढ़ेंगे, यह दोनों देशों के लिए अच्छा होगा।
अब कोई ये बताएं कि ये डायलॉग तो पाकिस्तान का हर प्रधानमंत्री मारता रहा हैं, तो क्या भारत ने इनके साथ दोस्ती कायम करने के लिए, कश्मीर समस्या सुलझाने के लिए पहल नहीं की? क्या पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा कश्मीर समस्या सुलझाने के लिए किये गये विशिष्ट पहल पर कोई प्रश्न चिह्न लगा सकता है? क्या पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की लाहौर बस यात्रा और उसके बाद करगिल का युद्ध पाकिस्तान की दोगली नीति को परिभाषित नहीं करता?
अब ये कल का क्रिकेटर जो कश्मीर को क्रिकेट की दांव पर रखकर सुलझाने की बात करता था, अब वो भारत को सिखायेगा कि भारत को क्या करना चाहिए? कल तक अमरीका की हां में हां मिलानेवाला और आज चीन के आगे ताता-थैया करनेवाला पाकिस्तान, भारत को बतायेगा कि भारत को क्या करना चाहिए? पाकिस्तान अपनी औकात मे रहे, तो ही बेहतर हैं, क्योकि जब से वह पैदा हुआ, उसके बाद से ये पहली बार है कि वहां की जनता ने एक सरकार को हटाकर, दूसरी सरकार बनाई हैं, नहीं तो पाकिस्तान में प्रत्येक चुनी गई सरकार को, वहां की सेना ने लात मारकर हटाया और सत्ता संभाली, जबकि पूरा विश्व जानता है कि भारत में लोकतंत्र की जड़ें कितनी गहरी हैं।
इमरान खान को तो सेना ही लाई हैं, ऐसे में इमरान की हिम्मत भी नहीं होगी कि ज्यादा चू-चपड़ करें, वे सेना के आगे-पीछे करनेवाले शतरंज के पैदल हैं, ज्यादा दिमाग लगायेंगे तो पाकिस्तानी सेना को पता है कि इमरान खान के साथ करना क्या है? रही बात भारत की, तो पाकिस्तान में चुनाव हो या न हो, वहां कोई प्रधानमंत्री बने, भारत जानता है कि उसे करना क्या हैं? क्योंकि हमारे यहां एक कहावत है कि बेल कच्चा रहे या पक जाये, पंछियों को उससे कोई फायदा नहीं होता।