पहले हजारीबाग और अब रांची, आखिर आपके कानों पर जूं कब रेंगेगा? सीएम साहब
अभी कोई ज्यादा दिन नहीं हुए कि आर्थिक तंगी के कारण, हजारीबाग से एक खबर आई कि एक समृद्ध व्यवसायी के यहां छः लोगों की मौत हो गई। ठीक इसी प्रकार से अब रांची में कल ये खबर सुनने को मिली की आर्थिक तंगी के कारण परिवार के पांच लोगों को मारकर दो भाई फांसी के फंदे से झूल गये। हजारीबाग और रांची की घटना को अगर नजदीक से देखे तो दोनों मामला एक सा ही हैं, दोनों मामले में आर्थिक तंगी देखने को आ रही हैं और दोनों मामलों में किसी ने सभी को बारी-बारी से मारा और अंत में स्वयं मौत को गले लगा लिया, हालांकि हमारे विचार से दोनों मामलों की सूक्ष्म तरीके जांच होनी चाहिए, तभी पता चलेगा कि सच्चाई क्या है?
फिर भी आर्थिक तंगी के कारण पूरे परिवार का काल के गाल में समा जाना, किसी भी राज्य और सरकार के लिए कलंक की बात हैं, पहले भूख से मौत की खबर आती थी, कहीं से इक्के-दूक्के आत्महत्या की खबर आती थी और अब सामूहिक हत्या/आत्महत्या, वह भी आर्थिक तंगी के कारण, तो ऐसे में किसी भी समाज को चुप बैठ जाना भी निन्दनीय है, क्योंकि आर्थिक तंगी ऐसा मसला है कि ये सभी से जुड़ा हैं, कोई जरुरी नहीं कि जो आज आर्थिक रुप से सशक्त हैं तो कल आर्थिक रुप से कमजोर नहीं होगा, पर ऐसे मामलों में मौत को गले लगा लेना, किसी भी प्रकार से सही नहीं ठहराया जा सकता।
राज्य सरकार को ऐसी घटनाओं को गंभीरता से लेनी चाहिए, क्योंकि अभी तो दो ही मामले सामने आये हैं, अगर इसकी शृखंला बननी शुरु हो गई तो अंदाजा लगाइये, झारखण्ड की क्या स्थिति होगी? सूत्र बताते है कि घर का मुखिया कर्ज से परेशान था, बेटे के इलाज पर उसके करीब 25 लाख खर्च हो गये थे, उसका 13 माह का बच्चा जन्म से ही बड़े सिर की बीमारी से जूझ रहा था, वह पांच माह से किराया देने की स्थिति में भी नहीं था, बताया जाता है कि वह पन्द्रह पृष्ठों में अपना सुसाइडल नोट लिखा है। पुलिस मामले की जांच कर रही है।
अब सवाल उठता है कि जैसा कि पता चल रहा है कि उसके बेटे के इलाज पर 25 लाख खर्च हो गये थे और वह आर्थिक तंगी से जूझ रहा था, ऐसे में मुख्यमंत्री रघुवर दास बताए कि उनके राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं का ऐसा बुरा हाल क्यों हैं? कि एक व्यक्ति अपने बच्चे की इलाज में 25 लाख फूंक देता है और फिर भी वह ठीक नहीं हो पाता तथा कर्ज के बोझ में दब कर, स्वयं ही नहीं बल्कि पूरे परिवार को मार डालने का कठोर निर्णय लेता है, इसके लिए कौन दोषी है? क्योंकि राज्य के मुख्यमंत्री आप ही हैं, जिम्मेदारी आपकी ही बनती है, आखिर आपके राज्य में जो न्यू झारखण्ड का नारा लगता है, आपके विज्ञापनों में भी न्यू झारखण्ड का नारा खुब दीखता है तो क्या हम माने कि इस नये झारखण्ड में सामूहिक हत्या/आत्महत्या की खबरें, विभिन्न समाचारों पत्रों की सुर्खियां बनेगी, या आप ऐसी व्यवस्था करेंगे कि लोगों को जरुरत की हर चीजें मुफ्त मिले, या वाजिब दामों पर प्राप्त हो, ताकि कोई मौत को गले लगाने के पहले दस बार सोंचे।
आप बताएं, जब लोगों को रोजगार मिलेगा, स्वास्थ्य सेवाएं मिलेगी, समय पर भोजन प्राप्त होगा (पूरे देश में भोजन का अधिकार लागू हैं) तो वह क्यों आत्महत्या करेगा? सच्चाई तो यहीं है कि आधारभूत सरंचनाएं आपके यहां ठप हैं, अगर कोई स्वयं का उदयोग लगाकर पेट पालना चाहे, वह पाल नहीं सकता, आप के यहां सारे रोजगार ठप हैं, स्वास्थ्य सेवाओं का हाल ये है कि लोग भूलकर भी झारखण्ड के विभिन्न स्वास्थ्य केन्द्रों-उप केन्द्रों में इलाज कराना नहीं चाहता, क्योंकि वहां डाक्टर और दवाएं नहीं होती, जिसके पास थोड़ा सा भी पैसा होता हैं तो वह बंगाल या वेल्लोर भागता हैं, ऐसे में आपके यहां आत्महत्या का सिलसिला रुकेगा कैसे?
आपके शासन के साढ़े तीन साल बीत गये, आपने क्या किया है? कभी चिन्तन किया हैं, जिस झारखण्ड विधानसभा के निर्माण में करोड़ों फूंक दिये, वहां बैठेंगे कौन? आप या आपके जैसे नेता, पर आम जनता, आम जनता तो उन करोड़ों में से अपने लिए रोजगार, रोटी और स्वास्थ्य सेवा ढूंढ रही है, जो आप दिलाने में असमर्थ हैं, तभी तो पहले हजारीबाग दहला और अब रांची दहल गया, पर आप के कानों में जूं रेंगेगी, हमें तो नहीं लगता?