क्या DGP के मुख से किसी के खिलाफ छह इंच छोटा करने का बयान शोभा देता है?
पता नहीं, विकास को कौन रोक रहा है, या रोक रहा है भी या नहीं, पर विकास को रोकनेवालों के नाम, संविधान को चुनौती देनेवालों के नाम, आपने जिन्हें छह इंच छोटा करने का बयान जो जारी किया, डीजीपी डी के पांडेय महोदय, ये बयान बताता है कि आप भी अब नक्सली की जुबां बोलने लगे हैं, क्योंकि हमने सुना है कि वे भी इसी प्रकार का बयान देते हैं, जो किसी भी सभ्य नागरिक को सुनने में अच्छा नहीं लगता, और न ही भारत का संविधान ऐसी भाषा की उम्मीद किसी भी भारतीय नागरिक के लिए करता है।
संविधान भारत में रहनेवाले सभी नागरिकों की सुरक्षा की गारंटी देता है, साथ ही जो गलत करते हैं, उन्हें अदालत में अपनी बात कहने का हक भी, और उसके बाद न्यायालय तय करता है कि संबंधित व्यक्ति जिस पर आरोप लगा, या जिसने कानून तोड़ा, उसे सजा क्या मिलनी चाहिए? पर आपने छह इंच छोटा करने का बयान देकर, ये भी स्पष्ट कर दिया कि आप न्यायालय से भी उपर है, आप जो चाहे, कर सकते हैं, आप संविधान से भी उपर है।
ऐसे तो ये राज्य अपने बड़बोलेपन के लिए ही जाना जाता है, कभी आप भाजपा के प्रवक्ता के रुप में मुख्यमंत्री रघुवर दास की प्रशंसा कर चुके हैं, इसी राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास कभी सदन में ही प्रतिपक्ष को गालियों से नवाज चुके हैं, तथा गढ़वा में एक जाति विशेष के खिलाफ आग उगला, आज आप तो उनसे भी आगे निकल गये, छह इंच छोटा करने की बात करने लगे, क्या आप बता सकते है कि छह इंच छोटा करने का अधिकार आपको किसने दिया, भारत के संविधान ने या भारत की किसी अदालत ने या भारत सरकार ने या झारखण्ड सरकार ने?
क्या आप जानते है कि आपने ऐसा कहकर पूरे राज्यवासियों में दहशत फैलाने की कोशिश कर दी और इस दहशत से न तो राज्य का भला हो सकता है और न ही आपके प्रिय मुख्यमंत्री रघुवर दास का, जिनके लिए आप नाना प्रकार के वक्तव्यों का इस्तेमाल करते हैं, दुमका के एसएसबी के 35वीं बटालियन के मुख्यालय में 2018 को नक्सल मुक्त झारखण्ड बनाने का आह्वान करना, तक का वक्तव्य आपका सराहनीय था, पर जैसे ही आपने छह इंच छोटा करने की बात कही और युद्ध की बात कर दी, आपका वक्तव्य निम्नस्तर का हो गया, नहीं तो आप जाकर किसी भी बुद्धिजीवी या भाजपा के ही किसी वयोवृद्ध सम्मानित नेता से जाकर पूछ ले, वे क्या कहते है?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (जिसकी एक राजनीतिक इकाई भाजपा है) का कोई भी प्रतिनिधि आपके इस वक्तव्य का समर्थन नहीं करेगा, क्योंकि जहां तक मैं जानता हूं संघ में ऐसी भाषा का, किसी के लिए भी, कोई स्थान नहीं हैं और न ही ऐसी भाषा बोलनेवालों का कोई स्थान है, पर आपने जिस उत्साह में ऐसी भाषा का प्रयोग किया हैं, वह बता रहा है कि आनेवाले दिन झारखण्ड के लिए बेहतर नहीं हैं।
अंत में आपने संस्कृत में एक सुक्ति जरुर पढ़ा होगा – वचने किम दरिद्रता। बोलने में दरिद्रता कैसी, बोलने में तो व्यक्ति को सावधानी बरतनी चाहिए, अपनों से युद्ध लड़कर क्या करेंगे? क्या मिलेगा? जब आप उन्हें प्यार से जीतेंगे तो आपको कामयाबी और सम्मान दोनों मिलेगा, पर आपके छह इंच छोटा करनेवाली बयान ने पूरे झारखण्डियों के सम्मान को प्रभावित कर दिया। हमें लगता है कि पूरे देश में जहां भी नक्सली तांडव मचाते हैं, खून-खराबा करते हैं, मानवीय मूल्यों को चुनौती देते हैं, नरसंहार करते हैं, उस राज्य के किसी भी पुलिस महानिदेशक ने नक्सलियों के नाम पर, विकास को रोकने और संविधान को चुनौती देनेवालों के नाम ऐसी भाषा का प्रयोग नहीं किया होगा, जो आपने कर दिया।