आखिर झारखण्ड में भरे-पड़े ब्रजेश ठाकुर जैसे लोगों पर कार्रवाई कब होगी?
ऐसा नहीं कि ब्रजेश ठाकुर सिर्फ मुजफ्फरपुर में ही रहता हैं, ब्रजेश ठाकुर जैसे लोग देश के हर कोने-कोने में फैले हैं और अपनी सुविधानुसार अपने अखबारों के हित में नये-नये जाल फैलाकर, अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। आशंका हैं, ऐसा ही जाल रांची में भी फैला हो, क्योंकि पत्रकार जगत में चर्चा है कि रांची में भी आपको ब्रजेश ठाकुर टाइप लोग मिल जायेंगे, जो एक नहीं, कई-कई अखबार निकाल रहे हैं, जिनका जमीन पर सर्कुलेशन कुछ भी नहीं, पर सरकारी दस्तावेजों में वे बड़े-बड़े अखबारों को चुनौती दे रहे हैं, सरकार और उनके अधिकारी भी उनकी सेवा में लगे रहते हैं, तथा स्वहित में अखबारी लाभ, जैसे सरकार की प्रशंसा, सरकार की आरती तथा कभी-कभी अपना प्रवचन छपवाते रहते हैं।
झारखण्ड का हाल तो ये है कि झारखण्ड से बाहर छपनेवाले, पता नहीं, छपते भी हैं या नहीं, अखबार अनुप्राणित हो रहे हैं, जो झारखण्ड में कहीं दिखते भी नहीं, उन्हें भी सरकार के अधिकारी बड़े प्रेम से अनुप्राणित करते रहते हैं, स्थिति तो यह है कि यहां प्रेस अधिमान्यता प्रमाणीकरण समिति ऐसे ऐसे लोगों को भी प्रमाणीकरण प्रदान कर देती है, जो इसके योग्य नहीं हैं, और जिसे स्वयं केन्द्र सरकार, पत्रकार भी नहीं मानती, अगर आप प्रेस अधिमान्यता प्रमाणीकरण समिति के चहेते हैं, और आपकी दाल गलती है तो प्रमाणीकरण जल्द मिल जायेगा और नहीं तो आप सही भी हैं तो नाक रगड़ते रहिये।
सच्चाई यह है कि जिस प्रकार ब्रजेश ठाकुर मामले में बिहार सरकार ने एक्शन लिया और इस पूरे प्रकरण की सीबीआई जांच करवा रही हैं, ठीक उसी प्रकार झारखण्ड सरकार को बिना देर किये, अपने यहां भी इसकी उच्चस्तरीय जांच करानी चाहिए, जिसमें प्रमुखता से इन बातों की जांच होनी चाहिए…
- राज्य में कितने अखबार-चैनल प्रकाशित/प्रसारित होते हैं, कहां से और कब से तथा उनका सही-सही सर्कुलेशन/टीआरपी क्या है?
- राज्य में इन अखबारों/चैनलों में कार्यरत कार्यालयों में अधिकारियों/कर्मचारियों/संवाददाताओं की संख्या कितनी है? क्योंकि यहां अधिकारियों/कर्मचारियों/संवाददाताओं की संख्या होती हैं कम और बाहर में दिखाई जाती है ज्यादा।
- अब तक कितने अखबार/पत्र/पत्रिकाएं हैं, जो प्रकाशित ही नहीं हुई और गलत ढंग से सरकारी विज्ञापनों को प्राप्त किया? तथा इस पर कितने खर्च हुए? और कौन लोग इसमें शामिल है, जिन्होंने ऐसे गलत कार्यों को प्रोत्साहित किया?
- ऐसे कितने अखबार हैं, जिन्होंने गलत प्रसार संख्या दिखाकर, राज्य सरकार को धोखे में रखा तथा गलत ढंग से विज्ञापन प्राप्त किये और उसकी राशि कितनी हैं? ऐसे लोगों से राशि पुनः सरकारी खजाने में जमा कराने के लिए क्या प्रबंध किये जा रहे हैं तथा ऐसे लोगों पर क्या कार्रवाई होने जा रही है?
- इस कार्य में जो भी सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के अधिकारी/कर्मचारी हैं, जो दोषी पाये जाते हैं, उनको दंडित करने के लिए क्या सरकार उचित कदम उठायेगी?
- अंत में, राज्य में जितने भी बालिका गृह हैं, उनकी सही स्थिति की जांच आज से ही प्रारम्भ कराई जाये, ताकि पता चले कि झारखण्ड के बालिका गृहों की क्या स्थिति हैं? हम तो कहेंगे कि सरकार राज्य में चल रहे विभिन्न गर्ल्स होस्टलों पर भी कड़ी नजर रखें ताकि हमारे राज्य में पढ़नेवाली बालिकाओं या रहनेवाली महिलाओं के सम्मान को ठेस नहीं पहुंचे, नहीं तो जब सम्मान प्रभावित हो जायेगा, और उसके बाद आप जगेंगे तो ये किसी भी प्रकार से सहीं नहीं होगा, बिहार के मुजफ्फरपुर की घटना ने बहुत कुछ आशंका जाहिर कर दिया कि हमारा समाज आज कहां खड़ा हैं? जरुरत हैं, आज से ही इस पर कड़ी नजर रखने की।