नैतिकता और चरित्रता सिर्फ दूसरों के लिए होता है, ये पत्रकारों पर लागू नहीं होता
कभी प्रभात खबर के प्रधान संपादक रहे और फिलहाल जदयू के राज्यसभा में सांसद के रुप में सुशोभित हो रहे, हरिवंश नारायण सिंह उर्फ हरिवंश राज्यसभा के उपसभापति पद के लिए एनडीए की ओर से उम्मीदवार बने है, नौ अगस्त को राज्यसभा के उपसभापति पद का चुनाव होना है, अभी जीत-हार तय नहीं हुई हैं, पर एक बहुत बड़ा वर्ग अभी से ही हरिवंश नारायण सिंह उर्फ हरिवंश को उपसभापति पद पर विराजमान होने की खुशी में उन्हें बधाई देने लगा है।
इधर विपक्ष भी जदयू सांसद एवं एनडीए के उम्मीदवार हरिवंश नारायण सिंह के खिलाफ उम्मीदवार देने को तैयार बैठा है, मंगलवार को ही राज्यसभा के उपसभापति पद के लिए विपक्ष का संयुक्त उम्मीदवार चुनने के लिए, संपूर्ण विपक्ष ने कांग्रेस को अधिकृत कर दिया है, जल्द ही कांग्रेस, संपूर्ण विपक्ष की ओर से अपना उम्मीदवार दे देगी और यह भी क्लियर हो गया कि सारा विपक्ष कांग्रेस द्वारा अधिकृत उम्मीदवार को अपना मत देगा, और हो सकता है कि विपक्ष अपने प्रत्याशी को जिताने में कामयाब भी हो जाये, क्योंकि राज्यसभा में आज भी विपक्ष मजबूत स्थिति में हैं, लेकिन ऐन वक्त पर ऊंट क्या करवट ले लें, कुछ कहा नहीं जा सकता।
ऐसे हम आपको बता दें कि लोकसभा का उपाध्यक्ष हो या राज्यसभा का उपसभापति का पद परंपरागत रुप से विपक्षी दलों को मिलता रहा हैं, राज्यसभा में फिलहाल भाजपा के 73 और कांग्रेस के 50 सदस्य है, एक तरह से देखा जाये, तो ये उपसभापति का पद बिना किसी अड़चन के विपक्ष को दे देना चाहिए, पर चूंकि फिलहाल भाजपा और उनके सहयोगी, केन्द्र में जब से मजबूत स्थिति में आए हैं, वे सारी परम्पराओं को अपने हिसाब से तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं, और उसमें सहयोग वे लोग दे रहे हैं, जिनसे थोड़ी नैतिकता की आशा की जा सकती थी, पर आज जो भी हो रहा है, उसे किसी भी प्रकार से सही नहीं ठहराया जा सकता।
आश्चर्य यह भी है कि जिनसे परम्पराओं के सम्मान की आशा की जा सकती थी, उन्होंने सिर्फ उपसभापति पद तक पहुचंने के लिए, सारी नैतिकताओं को ताखे पर रख दिया है, जबकि वे जब पत्रकारिता में थे, तो नैतिकता व चरित्रता की बात करते नहीं थकते थे, और शायद यहीं कारण रहा कि एक अखबार प्रभात खबर, जो एक रांची जैसे छोटे जिले से प्रारम्भ होकर, देश के विभिन्न राज्यों व प्रमुख शहरों में छा गया, पर दुर्भाग्य यह भी उसी प्रभात खबर में कभी कार्यरत प्रधान संपादक ने सारे नियमों/परम्पराओं को धूल-धूसरित भी किया।
जिसका एक ताजा उदाहरण उपसभापति के पद के लिए चुनाव लड़ना भी हैं, अच्छा रहता कि वे विनम्रता से इस पद के उम्मीदवार बनने के आग्रह को ठुकरा देते, तो आज उन लोगों के लिए आनन्द का विषय होता, जो आज भी बड़े पदों पर जानेवालों से नैतिकता की आशा संजोए रखे हैं, अब तो जिस प्रकार से व्यक्ति विशेष द्वारा पद पर जाने के लिए नैतिकता रुपी खम्भे को धूल-धूसरित करने का प्रयास किया जा रहा है, लगता है कि अब कभी नैतिकता देखने को ही नहीं मिलेगी।
हे भगवान ये क्या??
लगता है अब नैतिकता देखने को कभी नही मिलेगी…: