बिहार-राजस्थान पुलिस ने एक पत्रकार को SC-ST एक्ट के झूठे केस में फंसाकर जेल भेजा
श्रवण सिंह राठौड़ के शब्दों में बाड़मेर के वरिष्ठ पत्रकार दुर्ग सिंह राजपुरोहित के खिलाफ बिहार की राजधानी पटना में दर्ज एफआईआर को उन्होंने पढ़ा है। श्रवण सिंह राठौड़ ने लिखा है कि क्राइम रिपोर्टिंग के इतने सालों के अनुभव के आधार पर वे दावे के साथ कह सकते हैं कि ये फर्जी और मनगढ़ंत प्रकरण है, जिसमें बिहार और राजस्थान पुलिस द्वारा बड़े दबाव में फर्जी तरीके से एक पत्रकार की गिरफ्तारी की गई है। अगर निष्पक्ष जांच हुई तो कई बड़े चेहरे बेनकाब होंगे और कई सलाखों के पीछे जाएंगे।
श्रवण सिंह राठौर बताते है कि बिहार के राकेश पासवान नाम के एक कथित मजदूर ने दुर्ग सिंह के खिलाफ बिहार में प्राथमिकी दर्ज कराईं है। जिसमें उसने आरोप लगाया है कि दुर्ग सिंह ने 7 मई को बिहार आकर, उसे नीच पासवान जाति का बोलकर अपमानित किया। साथ ही घर से बाहर निकालकर मारपीट की। रिपोर्ट में आरोप लगाया है कि दुर्ग सिंह का बाड़मेर में पत्थरों समेत कई तरह के व्यवसाय है।
आरोप के मुताबिक पासवान बाड़मेर में दुर्ग सिंह के यहां मजदूरी करता था। छह महीने काम करके बिना मजदूरी लिए वो बिहार चला गया। दुर्ग सिंह 15 अप्रैल को बिहार उस मजदूर को लेने गया। रिपोर्ट के मुताबिक मजदूर ने माता पिता की बीमारी का हवाला देकर बिहार से बाड़मेर आने के लिए मना कर दिया। इसके बाद दुर्ग सिंह फिर 7 मई को 3 – 4 अज्ञात लोगों को लेकर बिहार, राकेश पासवान के घर आकर बाड़मेर जबरन ले जाने के लिए धमकाने लगा, फिर घर से घसीटकर बाहर उसे ले आए। नीच जाति का बोलकर मारपीट की और उसके 75 हजार मज़दूरी के भी नहीं दिए।
बिहार में ये एफआई आर दर्ज होने के बाद कोर्ट से गिरफ्तारी वारंट जारी हो जाता है। उस वारंट को पटना के एसपी ने गंभीरता से लेते हुए तुरंत बाड़मेर एसपी को ईमेल के जरिये और व्हाटसएप द्वारा भिजवाया । एसपी बाड़मेर ने प्राथमिकी की गंभीरता को देखते हुए रीडर के जरिए दुर्ग सिंह को उपस्थित होने की सूचना भिजवाई। दुर्ग सिंह तुरंत बाड़मेर एसपी आफिस गए। एसपी ने बिठाने को बोला। दुर्ग सिंह को इत्तिला दी कि उनके खिलाफ पटना में एससी-एसटी एक्ट और अमानत में ख़यानत का रिपोर्ट दर्ज हुआ है।
दुर्ग सिंह ने कहा कि उनकी तो सात पीढ़ियों में से कोई भी आज तक पटना नहीं गया है। उधर एसपी ने ग्रामीण थाने के एसएचओ को बुलाकर दुर्ग सिंह को एक हैड कांस्टेबल और दो सिपाहियों के साथ पटना लेकर जाने के निर्देश दिए। तुरंत एक हैड कांस्टेबल और दो सिपाही एक प्राइवेट गाड़ी करके दुर्ग सिंह को लेकर बाड़मेर से पटना रवाना हो गए। दुर्ग सिंह का फोन भी ले लिया गया।
राजस्थान पुलिस गाली गलौज के गंभीर मामले के मुलजिम दुर्ग सिंह को ले जाकर पटना पुलिस को सुपुर्द कर दिया। वहां दुर्ग सिंह को कोर्ट ने ज्यूडिशियल कस्टडी में भेज दिया।श्रवण सिंह राठौड़ ने इस पूरे मामले को गंभीर तथा झूठा बताते हुए, राजस्थान सरकार और राजस्थान पुलिस तथा बिहार सरकार और बिहार पुलिस से भी सवाल पूछे हैं, जिसका जवाब किसी के पास नहीं हैं। सवाल इस प्रकार है –
1. दुर्ग सिंह इंडिया न्यूज में कार्यरत है, उसका कोई पत्थर खनन का काम नहीं है।
2. दुर्ग सिंह जिदंगी में कभी बिहार नहीं गए।
3. दुर्ग सिंह के मुताबिक उन्होंने कभी राकेश पासवान नाम के व्यक्ति को देखा ही नहीं।
4. दुर्ग सिंह के मुताबिक उसने बिहार के गवर्नर सतपाल मलिक के बाड़मेर में दौरे को लेकर एक पोस्ट लिखी थी, जिससे भाजपा नेता प्रियंका चौधरी उससे नाराज़ हैं।
5. दुर्ग सिंह का आरोप है कि ये गवर्नर विवाद कनेक्शन की वजह से उसे झूठे मामले में बिना जांच के फर्जी एससी-एसटी एक्ट का रिपोर्ट दर्ज करके गिरफ्तार किया गया है।
6. एफ आई आर में दुर्ग सिंह को 7 मई को बिहार में राकेश पासवान के घर पर जाकर नीच जाति का बोलकर अपमानित करने का आरोप लगाया गया है, जबकि फेसबुक पर 7 मई को दुर्ग सिंह बाड़मेर में एक पुस्तक के विमोचन का लाइव दिखा रहे थे।
7. एक मजदूर को जाति सूचक शब्दों से अपमानित करने के मामले में बिहार से आए वारंट में राजस्थान पुलिस पर किसका दबाव था, जिस वजह से दुर्ग सिंह को बिना किसी नोटिस के, गिरफ्तार कर एक हैड कांस्टेबल और दो सिपाहियों को प्राइवेट टैक्सी से बिहार जाकर वहां की पुलिस को सुपुर्द किया गया। ऐसा तो किसी आतंकी गतिविधियों के मामले में भी एक तरफा कार्यवाही नहीं हुई।
8. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को अपनी गौरव यात्रा से पहले ये स्पष्ट करना चाहिए कि उनकी पार्टी की नेता और राज्य की पुलिस का इस अनैतिक कारवाई में संलिप्तता की वो निष्पक्ष जांच करवाकर क्या तत्काल प्रभाव से बाड़मेर एसपी को वहां से हटाने और भाजपा की महिला नेता प्रियंका चौधरी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करेगी?
इधर राजस्थान के पूर्व अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक राजेन्द्र सिंह शेखावत (खाचरियावास) भी राजस्थान और बिहार पुलिस द्वारा की गई इस हरकत पर गंभीर सवाल उठाएं हैं। उनका कहना है कि बाड़मेर में पत्रकार दुर्गसिंह राजपुरोहित की अनुसूचित जाति व जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत असंवैधानिक गिरफ्तारी ने वर्तमान कानून व व्यवस्था तथा न्यायिक प्रक्रिया पर अनेक सवाल खड़े कर दिए है ?
1. संबंधित अदालत ने मामला अग्रिम अनुसंधान के लिए स्थानीय पुलिस के पास क्यों नही भेजा? अनुसूचित जाति व जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम में इन मामलों में राजपत्रित अधिकारी से अनुसंधान किये जाने का प्रावधान है।
2. अदालत ने परिवादी के बयान लिए,किन्तु परिवादी घटना के सभी तथ्यों को सार्वजनिक तौर पर क्यों नकार रहा है? अदालत को पक्षकार बनने की क्या आवश्यकता आ गई थी ?
3. क्या अदालत किसी भी परिवाद पर विपक्षी को सुनवाई का मौका दिए बिना गिरफ्तारी वारंट जारी कर न्याय कर रही है ?
4. पटना के SP साहब के पुलिस स्टेशनों पर कितने स्टैंडिंग वारंटी व उदघोषित अपराधी फरार है? उनको पकड़ने की प्राथमिकता को नजरअंदाज कर अदालत के ताजा वारंट की तत्काल तामील कराना उनकी आपराधिक मिलीभगत को स्पष्ट करती है।
5. थानों में 3-4 दशकों से अदम तामील जमानती व गिरफ्तारी वारंट पेंडिंग है। पटना व बाड़मेर के SP साहबान की इस मामले में त्वरितता उनकी निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह पैदा कर आपराधिक मिलीभगत की ओर ईशारा करती है।
6. पटना SP के व्हाट्सएप पर भेजे गिरफ्तारी वारंट की बाड़मेर SP द्वारा तामील कराकर मुलजिम को पटना भेजना निश्चित रूप से गहरे षडयंत्र को इंगित करता है ?
7. न्यायपालिका,पुलिस व राजनेताओ ने मिलीभगत व षड्यंत्र पूर्वक कानूनी अमलीजामा पहनाते हुए न्याय का गला घोंट कर एक बेगुनाह को जेल के सींखचों के पीछे डालकर बहुत बड़ा अन्याय किया है ?
8. इस तरह की अनैतिक प्रक्रियाओं से आम आदमी का कानून व्यवस्था व न्यायिक प्रक्रिया से विश्वास उठ जाएगा।
9. इस मामले की सीबीआई जांच करा, पूरे आपराधिक षडयंत्र का पर्दाफाश होना चाहिए तथा दोषी अधिकारियों व कर्मचारियों के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए।