राजस्थान में हार से बचने के लिए वसुंधरा का प्रमोशन का खेल, कांग्रेस की बल्ले-बल्ले
वसुंधरा राजे सिंधिया को शायद आभास हो चुका है कि राजस्थान में, 2018 में विधानसभा चुनाव जब कभी होंगे, उनकी वापसी संभव नहीं हैं। भाजपा की आसन्न हार को महसूस कर रहे, कांग्रेस के लोगों में गजब का उत्साह देखने को मिल रहा है। स्थिति ऐसी है कि राजस्थान के बहुत सारे ऐसे विधानसभा सीटे हैं, जहां अभी से ही कमल मुरझाने लगे हैं।
राजस्थान में भाजपा के हार के बहुत सारे कारण है, जिन पर ध्यान देना जरुरी है, और भाजपा की अब इतनी औकात भी नहीं कि वे इन गलतियों को इतनी जल्दी सुधार लें, क्योंकि अब इनके पास समय भी नहीं और अगर सुधार किया भी, तो जनता यहीं समझेगी कि इस सरकार ने विधानसभा चुनाव को देखते हुए, ये चीजें लागू की।
राजस्थान में कार्यरत वैसे राजकीय या केन्द्रीय कर्मचारी/अधिकारी, जिन्होंने 2004 के बाद नौकरी पाई है, वे भाजपा के नाम से ही बिदकते है, उनका कहना है कि इस भाजपा सरकार ने अपने नेताओं के लिए तो अच्छी व्यवस्था कर ली, खुद के लिए पुरानी पेंशन स्कीम की व्यवस्था चालू रखी, पर राजकीय/केन्द्रीय सेवा में आये नये लोगों के लिए नई पेंशन स्कीम लागू कर, उनकी वृद्धावस्था को बुरी तरह बर्बाद और तबाह कर दिया।
ऐसी व्यवस्था की शुरुआत करनेवाले नेता भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी को ये कर्मचारी/अधिकारी पसंद नहीं करते, चाहे भाजपा के लोग अटल बिहारी वाजपेयी की माला जपते क्यों न रह जाये। हाल ही में जयपुर में एनपीएस को हटाने की मांग को लेकर एक बहुत बड़ी रैली आयोजित हुई, जिस रैली को संबोधित करते हुए कर्मचारी नेताओं ने राज्य सरकार से मांग की कि अब भी मौका है, वे अपने में सुधार लाये और जिस प्रकार अपने लिए पुरानी पेंशन स्कीम लागू कर रखी है, ठीक उसी प्रकार राज्य के कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए भी पुरानी पेंशन स्कीम बहाल करें, नहीं तो विधानसभा चुनाव में सत्ता से बेदखल होने को तैयार रहे। इस रैली की सफलता को देख, वसुंधरा राजे के हाथ-पांव फूलते भी नजर आये।
यहीं नहीं हाल ही में राज्य सरकार ने 6082 कांस्टेबलों को हेडकांस्टेबलों में पदोन्नति दे दी। इनमें से कई तो इसी साल अवकाश प्राप्त करनेवाले थे। इनकी पदोन्नति भी ऐसे ही नहीं हुई, बजाप्ते एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया, वसुंधरा राजे के भाषण हुए, और फिर शुरु हुआ मंच पर बुलाकर हेडकांस्टेबल के पदोन्नति के रुप में उनके कंधे पर डबल फित्ती लगाने का काम। अब सवाल उठता है कि क्या एक राज्य के मुख्यमंत्री का यही काम रह गया है?
भाई, जब हार निकट दिखाई देती है, तो ये सब करना पड़ता है, और ये तभी होता है, जब इलेक्शन के दिन नजदीक आते है, नहीं तो इलेक्शन खत्म होने के बाद किस सरकार को किसी के प्रमोशन की चिन्ता रहती है? सत्ता में आने के बाद तो उसे अपने परिवार के सदस्य को कहां से टिकट दिलवाना है? कहां पर मंत्री बनवाना हैं? कैसे अपने लिए वेतन बढ़वाने हैं? कैसे अपने लिए पुरानी पेंशन स्कीम को ठीक करवाना है? भले ही तीस वर्षों तक अपनी सेवा के दौरान कोई जूता घिसते हुए ही क्यों न मर जाये?
इधर राज्य में विधि व्यवस्था, विकास कार्य और निवेश कितना हुआ, राजस्थान के लोगों को मालूम है, जिसका परिणाम रहा कि लोकसभा के दो सीटों के लिए हुए उपचुनाव में भाजपा को करारी हार दिलाकर जनता ने स्पष्ट कर दिया कि आनेवाले दिनों में भाजपा की अब खैर नहीं। अंततः कांग्रेस को अग्रिम बधाई कि जनता उसके निकट अब आने लगी है, पर क्या कांग्रेस जनता की नजरों में खरी उतरेगी?
क्या वह राज्य के कर्मचारियों व अधिकारियों की चिरप्रतीक्षित मांग पुरानी पेंशन स्कीम लागू करेगी या यह भी सब्जबाग दिखायेगी। सच्चाई तो यही है कि अगर कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों ने नई पेंशन स्कीम को खत्म कर, पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने की बात कह दी तो भाजपा पूरे देश से ही साफ हो जायेगी, क्योंकि फिर देश के लाखों कर्मचारियों और अधिकारियों का एकतरफा वोट तो कांग्रेस और उसकी सहयोगियों को ही चला जायेगा, पर क्या कांग्रेस ऐसा ऐलान कर पायेगी?