धिक्कार CM को, जो जनता को बोलने न दे और धिक्कार अखबारों-चैनलों को, जो जनता की आवाज दबा दे
धिक्कार…धिक्कार…धिक्कार… शर्म आनी चाहिए, यहां के सारे अखबारों-चैनलों को जिसने जनता की आवाज ही दबा दी। शर्म आनी चाहिए झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास को, जिसने जनता को बोलने से रोक दिया। जरा सोचिये, जिस राज्य में जनता को बोलने का अधिकार ही नहीं, और जिस राज्य का चैनल व अखबार मुख्यमंत्री के इशारे पर समाचार छापे, उनकी चरणवंदना करें, वहीं दिखाये जो मुख्यमंत्री को पसन्द आये, तो फिर काहे का लोकतंत्र, किसके लिए लोकतंत्र, किस बात का लोकतंत्र…
हम बात कर रहे हैं, हजारीबाग के केरेडारी की। जहां मुख्यमंत्री कल यानी 28 सितम्बर को स्वच्छता ही सेवा, जनसंवाद सह जागरुकता कार्यक्रम के तहत प्रखण्ड मुख्यालय स्थित कृषि मैदान में ग्रामीणों से बात करने के लिए पहुंचे थे। वहां जिस ग्रामीणों के हाथ में माइक गया, सभी ने एक स्वर से जमीन, नौकरी और मुआवजा की मांग उठा दी, फिर क्या था, किसी से माइक छीन लिया गया और जब किसी ने जबर्दस्ती बोलनी चाही तो उसे बोलने से रोक दिया गया। अब सवाल उठता है कि जब ग्रामीणों को बोलने से रोकोगे, उनसे माइक ही छीन लोगे तो फिर इस प्रकार के कार्यक्रम आयोजित करने का क्या मतलब? आपको ऐसे कार्यक्रम आयोजित ही नहीं करने चाहिए।
झारखण्ड में, ऐसे तो सैकड़ों अखबार, पत्र-पत्रिकाएं, चैनल आदि मौजूद है, जो दावा करती है कि वह जन सरोकार से जुड़ी खबरें प्रकाशित करती है, पर जरा पूछिये, राजधानी रांची से प्रकाशित-प्रसारित अखबारों व चैनलों से कि तुम बताओ कि तुम्हारे यहां वो खबर कहां है, जहां केरेडारी में इतनी बड़ी घटना घट गई, वहां के ग्रामीणों को बोलने नहीं दिया गया, उनके हाथों से माइक छीन ली गई, कहां गई तुम्हारी जनसरोकार की पत्रकारिता? इसका मतलब है कि तुमलोग मुख्यमंत्री के चरण कमलों में बलिहारी जा रहे हो और उसके बदले में उपकृत हो रहे हो। बड़े ही शर्म की बात है कि इतने बड़े राज्य में केवल एक ही अखबार, वह भी धनबाद से प्रकाशित ‘आवाज’ ने इस समाचार को प्रमुखता से स्थान दिया है, बाकी तो सब ने अपनी आवाज ही बंद कर दी, खुद से होठ ही सील लिये।
बताया जाता है कि जब ग्रामीणों को यह संदेश दिया गया कि मुख्यमंत्री रघुवर दास आ रहे हैं, तो उन्हें ऐसा लगा था कि उनका दर्द सुननेवाला आ रहा है, पर ये क्या वह दर्द तो सुना नहीं, सिर्फ अपनी सुना रहा था और जब जनता की बारी आई तो उनके हाथों से माइक ही छीनी जाने लगी। जरा देखिये केरडारी में क्या हुआ?
बताया जाता है कि पचड़ा पंचायत के संजय ने जैसे ही जल, जंगल, जमीन से संबंधित मुद्दे उठाते हुए कहा कि जमीन लेने के लिए सेक्शन 9 लगा दिया गया है, न जमीन बेच सकते हैं और न खरीद सकते हैं, उसका तो सारा काम ही बंद हो गया है, फिर क्या था, सीओ ने उससे माइक ही छीन ली। जब कीर्तन साव ने यहीं मुद्दा उठाया कि भू-रैयतों को उसका जमीन का सही कीमत मिलना चाहिए, मुआवजा और नौकरी मिलनी चाहिए, उससे भी माइक छीन ली गई।
फिर क्या था, ग्रामीणों ने हंगामा करना शुरु कर दिया, सीएम की हुटिंग करनी शुरु कर दी, ऐसे में फिर उसे माइक थमाया गया, इसके बाद उसने सड़क हादसे का मामला उठाया, जो हर दिन लोगों की जान ले रही थी। शकुंती देवी ने भी प्रत्येक भू-रैयतों को वाजिब हक दिलाने की मुख्यमंत्री से मांग की। अब सवाल उठता है कि जब मुख्यमंत्री को ठकुरसोहाती ही पसन्द है, तो फिर ऐसे कार्यक्रम आयोजित करने की क्या आवश्यकता है, आराम से रांची में बैठे रहे, या जहां जाए, हजारों की टीम की व्यवस्था करने के लिए अपने उपायुक्तों को कह दें, जो कि सीएम को जो पसंद हो, वहीं बात कहें।
इससे यह फायदा होगा कि सीएम की ठकुरसोहाती भी हो गई और अखबारों-चैनलों को भी ज्यादा मेहनत नहीं करना होगा, वे भी जय-जयकार खुलकर करेंगे, क्योंकि फिर तो उन्हें ये सब दिखाई ही नहीं पड़ेगा, जो आजकल दिखाई पड़ रहा है। कुल मिलाकर देखा जाये तो मुख्यमंत्री की केरडारी में आयोजित कार्यक्रम बता दिया कि जनता सीएम रघुवर दास से कितनी नाराज है, वे अखबारों-चैनलों को कितना भी क्यों न मिला लें, सच को दबाया नहीं जा सकता। सच आयेगा, और उन सब को एक दिन बहाकर ले जायेगा, जो झूठ के उड़न्त हाथी पर बैठकर, दिवास्वप्न देख रहे हैं।
जनता जनार्दन ..रहे मुर्दा आबाद