एक राजनीतिक खूंटे में बंधकर फेंक न्यूज के सहारे अपना भविष्य सुरक्षित करनेवाले पत्रकारों से देश को बचाइये
जब पत्रकार भाजपाई, कांग्रेसी, वामपंथी, बसपाई या अंबेडकरवादी हो जाये, तो समझ लीजिये उससे सर्वाधिक खतरा देश को है, क्योंकि फिर वह जनता के सामने सत्य नहीं परोस पाता, फिर वह उस पशु के समान हो जाता है, जिसके सामने उसका मालिक समय-समय पर रोटी के टूकड़े फेंकता रहता है और वह पशु इसके बदले अपने मालिक को देख संवेदनशीलता दिखाते हुए पूंछ हिलाता रहता है।
क्योंकि इधर देख रहा हूं कि जब से सोशल साइट का जमाना आया है, ऐसे लोग बड़ी तेजी से अपनी दुकान चलाने लगे हैं, और इसमें वे कामयाब भी होते जा रहे हैं, चूंकि इनका संबंध राजनीति के खिलाड़ियों एवं धुरंधर राजनीतिबाजों से होती है, जो समय-समय पर इन्हें उपकृत करते रहते हैं, और इसके बदले ये पत्रकार, अपने क्रियाकलापों से ऐसे-ऐसे कार्य कर देते हैं, जिनसे देश को नुकसान और संबंधित पार्टियों को लाभ पहुंच जाता है।
यह मैं इसलिए लिख रहा हूं कि रांची में ही एक शख्स हुआ करते थे जो ‘अखबार नहीं आंदोलन’ खुद को कहनेवाले अखबार से जुड़े थे, फिलहाल वे इस अखबार से मुक्त होकर किसी और डाल पर बैठ गये हैं, इनके सोशल साइट को आप देखेंगे तो पता चलेगा कि देश को सर्वाधिक नुकसान पहुंचानेवाली कोई अगर पार्टी है तो वह भाजपा है, मोदी है और इनसे जूड़े वे सारे संगठन है, जो देश को चुहे की तरह कुतर रहे हैं, और इसी क्रम में वे इन्हें नीचा दिखाने के लिए ऐसे-ऐसे झूठे प्रमाण भी प्रस्तुत कर देते हैं, जिसका सत्य से कोई वास्ता नहीं होता, दरअसल वह झूठ का पुलिंदा होता है।
चूंकि जनाब रांची में ‘अखबार नहीं आंदोलन’ खुद को कहनेवाले अखबार तथा अन्य कई स्थानों पर भी प्रमुख अखबारों से जुड़े रहे हैं, इसलिए कई बार लोग उनकी बातों को सत्य मान लेते हैं, लेकिन जब वे सत्यनिष्ठ लोगों की पकड़ में आते हैं तो वे अपनी गलती के लिए लोगों से क्षमा नहीं मांगते, बल्कि अपने फेसबुक साइट से उस पूरे प्रकरण को ही डिलीट कर देते हैं, लेकिन इसी क्रम में कई ऐसे लोग भी होते हैं, जो उनकी बातों को अक्ल के अंधे की तरह गांठ बांधकर सत्य मान लेते हैं। जो ऐसे लोगों का पहला और अंतिम ध्येय होता है।
मैंने स्वयं देखा कि जैसे ही इन्होंने गुजरात कांग्रेस के इस पोस्ट को शेयर किया, कई लोगों इनकी देखा-देखी धड़ल्ले से पोस्ट शेयर करने शुरु कर दिये, जब मैंने ऐसा ही कर चुकी एक कांग्रेस समर्थित महिला अधिवक्ता से इस संबंध में बात की, तो उनका कहना था कि प्रतिमा तो नाथूराम गोडसे की है, और जब मैंने उन्हें प्रमाण दिखाया तो उन्होंने पांच मिनट के अंदर ही उक्त पोस्ट को हटा दिया और माना कि किसी के चक्कर में उनसे भारी गलती हो गई और वह भी फेंक न्यूज की शिकार हो गई।
जिस वरिष्ठ पत्रकार ने ऐसा किया, उसका प्रमाण आपके सामने है, कुछ दिन पहले जनाब ने कांग्रेस पार्टी की गुजरात इकाई, यानी गुजरात कांग्रेस का एक पोस्ट शेयर किया, जिसमें भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, पं. दीन दयाल उपाध्याय की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर रहे थे, जनाब स्वयं उत्तर प्रदेश से आते है, वे अच्छी तरह से जान रहे थे कि सामनेवाली प्रतिमा पं. दीन दयाल उपाध्याय की है, लेकिन, जनाब ने भाजपा और मोदी को नीचा दिखाने के लिए गुजरात कांग्रेस की एक फेंक पोस्ट शेयर कर दी, जिसमें लिखा था – ‘नथुराम गोडसे का पुजारी देखो और अपनी आंखों खोलिए’। आप उक्त पोस्ट को नीचे देखिये…
जैसे ही जनाब ने पोस्ट डाला, मेरी नजर उक्त पोस्ट पर पड़ी, मैं हैरान रह गया, चूंकि मैं इनको अच्छी तरह जानता हूं कि ये भाजपा विरोधी हैं, पर ये नहीं पता था कि इनके हृदय में किस पार्टी के प्रति गहरा अनुराग है, लेकिन जैसे ही ये पोस्ट देखा, हमें ये पता लगाते देर नहीं लगी कि ये क्या है और इनकी भक्ति किस पार्टी की ओर छलक रही है? जैसे ही जनाब ने इस पोस्ट को डाला, कई लोगों ने इनके पोस्ट पर कमेन्ट्स भी किये…
मुकुटधारी अग्रवाल ने लिखा – इस मूर्ति को लेकर सच्चाई सामने आनी चाहिए, क्योंकि श्री राजेन्द्र तिवारी जी अत्यंत सुलझे हुए व्यक्ति है और वे बिना समझे कोई पोस्ट नहीं करते हैं। एल के दूबे ने लिखा it is Pandit Deendayal Upadhyaya’bust. Please find google image of the same. मयंक वाजपेयी ने लिखा – यह तो पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मूर्ति है। राजेन्द्र विनय मिश्र ने लिखा – what is wrong?
एल के दूबे ने लिखा – This is not Nathuram Godse’s bust. Check your facts about this photo. By the way I am not bhakt but against all kinds of fake news on social media (special coming from journlist) कुलदीप बांगड़ ने लिखा – राजेन्द्र तिवारी साहब, अब आप भी फेंक न्यूज फॉरवर्ड करके लोगों को मूर्ख बनाने के खेल में शामिल हो गये? किसके साथ क्या तय किया है? गुरुदत्त तिवारी ने लिखा कि बड़े पत्रकार बिना सोचे समझे फेंक न्यूज को प्रमोट कर रहे हैं, So Sad, Credibility personal agenda से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
अब सवाल उठता है, जो पत्रकार उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड आदि राज्यों के बड़े-बड़े अखबारों में काम कर चुका हो, जो खुद को बेहद नेक और शानदार पत्रकार के रुप में दूसरों के आगे प्रस्तुत कर चुका हो, उसकी इस प्रकार की हरकत, क्या ये नहीं बताती कि पत्रकारिता की आड़ में किस प्रकार की दुकानदारी लोग चला रहे हैं, अगर मान लिया, उनसे गलती ही हुई तो उन्होंने, अपनी गलती को उसी अंदाज में क्यों नहीं स्वीकारा, जिस अंदाज में उन्होंने गुजरात कांग्रेस के उस फेंक पोस्ट को शेयर किया था, अगर वे अपनी गलती स्वीकारते, तब हमें ये मानने में कोई गुरेज नहीं रहता कि उनसे मानवीय भूल हुई, पर दस दिनों के बाद भी उनकी गलती नहीं स्वीकार करना, यह बताता है कि वे भाजपा विरोधी है, पर साथ में उनकी एक पार्टी से बहुत बनती भी है, जिसके लिए फिलहाल वे तन्मयता से लगे हैं, और वह पार्टी कौन है, अब लगता है कि हमें बताने की कोई जरुरत ही नहीं।
अतः हम सोशल साइट से जुड़े सभी लोगों से अनुरोध करेंगे कि ऐसे चालाक लोगों से बचें, ऐसे लोगों की बातों में न आये, क्योंकि ये स्वार्थवश कुछ भी कर सकते हैं, देश आपका है, आप स्वयं निर्णय लेने में सक्षम हैं, देश के बारे में स्वयं चिन्तन करिये, कोई भी निर्णय, ऐसे लोगों के पोस्ट को पढ़ लेने पर न ले लें, क्योंकि जैसे-जैसे लोकसभा-विधानसभा के चुनाव आयेंगे, ऐसे लोगों की राजनीतिक प्रतिबद्धता आपके सामने आती जायेंगी, जो अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता की आड़ में असत्य को प्रतिष्ठापित करने के लिए अपनी जीवन भर की पूंजी दांव पर लगा देंगे।
सही लिखे..बिनु विवेक सत संग न जोई..।।