जिस CM को, किससे कैसे पेश आना चाहिए, पता ही नहीं हो, उससे आप क्या उम्मीद लगा सकते हैं?
जिस राज्य में झारखण्ड हाइकोर्ट के निर्माण कार्य की लागत मात्र दो साल में ही 265 करोड़ से बढ़कर 699 करोड़ हो जाती है (ज्ञातव्य है कि जब 2016 में रामकृपाल कन्सट्रक्शन प्रा. लि. को टेंडर मिला था, उस समय इस योजना का प्राक्कलन राशि 265 करोड़ रुपये था), जिस राज्य में बिना किसी तरह की स्वीकृति लिये, ठेकेदार को बिना टेंडर के ही काम दे दिया जाता हो, जिस राज्य में, जिस योजना की तकनीकी अनुमोदन ही नहीं मिलना चाहिए और उसे तकनीकी अनुमोदन मिल जाता हो, जहां इतनी बड़ी भारी गड़बड़ियों के जन्मदाताओं को बड़े ही आराम से मुक्त कर, इन सबके लिए छोटे अधिकारियों को दोषी ठहराकर उलटा लटकाने की तैयारी कर ली जाती हो।
…और वहां का मुख्यमंत्री, जब ये कहे कि ‘आज उसके राज्य में, उस पर भ्रष्टाचार को लेकर कोई अंगुली नहीं उठा सकता, सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार का शिकार कोई होता है तो वो है गरीब आदमी, हमें हर स्तर पर भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करना है’ तो समझ लीजिये उस राज्य का मुख्यमंत्री कुछ ज्यादा ही होशियार खुद को समझ रहा है और जनता के सामने कुछ ज्यादा ही फेंक रहा हैं, अब सवाल उठता है कि क्या झारखण्ड की जनता इतनी बेवकूफ है कि उसके इस बातों में आ जायेगी, क्योंकि हमें तो नहीं लगता कि यहां की जनता किसी भी नेता के झांसे में आयेगी, क्योंकि हमारे पास एक से एक प्रमाण है, जिन-जिन नेताओं ने इस राज्य की जनता को धोखा दिया, यहां की जनता ने उन नेताओं का ऐसा क्लास लिया कि बेचारे न घर के रहे, न घाट के।
यहां के मुख्यमंत्री को तो बोलने भी नहीं आता, अपना विचार रखने तक नहीं आता, उसे पता ही नहीं होता कि वह कहां बैठा है और उसके बोलने का क्या प्रभाव पड़ेगा? उसके सामने अगर कोई बात रखेंगे भी, तो उसे क्या फर्क पड़ेगा, जरा आज ही की बात को ले लीजिये, जनाब मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र के सीधी बात कार्यक्रम में सूचना भवन में बैठे थे, जो उनकी सरकारी पॉकेटी संस्था है, जिसे उनके अपने लोग, उनके द्वारा उदारता द्वारा दी गई राशि का स्वहित में जमकर सदुपयोग कर रहे हैं, आज ही जनाब मुख्यमंत्री रघुवर दास कह रहे थे कि 88 प्रतिशत शिकायतों का उन्होंने निबटारा कर दिया, कमाल है भाई 88 प्रतिशत क्यों?
आपको तो कहना चाहिए कि आपने 1000 प्रतिशत शिकायतों का निबटारा कर दिया, आपकी संस्था, आपका मुंह, आपके सब कुछ, तो बोलने में क्या जाता है? जबकि सच्चाई यह है कि इन्हीं के कार्यक्रम में चाईबासा के आसनफलियां गांव की एक महिला, गांव में शौचालयों की स्थिति, सिचाई और बिजली की दुर्दशा, जलसहिया की समस्याओँ को लेकर सरकार को ही कटघरे में खड़ा कर रही थी, पर जनाब को तो जो मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र चलाते हैं, उनकी बातों में ही ब्रह्मानन्द दिखाई पड़ता है, तो ऐसे व्यक्ति को आप क्या कहेंगे?
जिस मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र में चल रहे गतिविधियों पर सीएमओ द्वारा बनाई गई जांच कमेटी ही अंगूली उठा दी और उस पर भी जब मुख्यमंत्री के कानों पर जू तक नहीं रेंगा, तो ऐसे व्यक्ति से कि वो जनता के साथ न्याय करेगा, मूर्खता के सिवा कुछ भी नहीं। यहां के मुख्यमंत्री की एक और विशेषता है, शायद ये पूरे देश में ये इकलौते मुख्यमंत्री है और भाजपा में भी इकलौते ही होंगे, जिन्हें बोलने की तमीज ही नहीं। आज ही देखिये, इनके बोल, ये डीडीसी को बोल रहे हैं ‘कितना दिन से डीडीसी हो, ढाई साल से तैयार नहीं किया, कुर्सी तोड़ रहा है, कॉमनसेंस नहीं हैं, डीडीसी हो।’ एक फरियादी को ‘कलाकार हो।’ आम जनता को ‘बोलो-बोलो, और कोई बात है तो बताओ, ऐ अब मेरी बात सुनो, हां हां, बोलो-बोलो।’ अब आप खुद सोचिये, कि जिस मुख्यमंत्री को, किससे कैसे पेश आना चाहिए, पता ही नहीं हो, उससे आप क्या उम्मीद लगा सकते हैं?