अपनी बात

धिक्कार उस पिता को, जिसका बेटा ये कहे कि पिता उसकी बात नहीं मान रहा तो हम पिता की बात क्यों माने?

‘जब उनके पिता उनकी बात नहीं मान रहे तो वह उनकी बात क्यों माने’, हां भाई, बात में दम तो हैं, जब बाप बेटा का बात नहीं माना, तो ये आज्ञाकारी बेटा बाप की बात क्यों माने? ये डॉयलॉग है बिहार के एक समय तेज तर्रार नेता रहे और वर्तमान में चारा घोटाला में सजा काट रहे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के सुयोग्य बड़े बेटे तेज प्रताप का, जब जनाब रांची से पटना के लिए निकल रहे थे।

बाप को इज्जत की फिक्र है, परिवार की फिक्र है, और बेटे को अपनी फिक्र है, दोनों के चेहरे मुरझाये हुए हैं और दोनों की अपनी-अपनी चिन्ताएं हैं। लालू प्रसाद अच्छी तरह समझ रहे है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में इस पारिवारिक कांड का क्या असर पड़ेगा, पर बेटा उनकी सुन नहीं रहा। कहा भी जाता है कि व्यक्ति सब से जीत जाता है, पर अपनों से नहीं जीत पाता, ये संवाद फिलहाल लालू प्रसाद पर फिट बैठ रहा है।

रह-रहकर मीडिया वाले भी खुब तेल-मसाला लगाकर लालू प्रसाद के परिवार की इज्जत से खेल रहे हैं, इज्जत से खेलने में वे लोग भी शामिल है, जो लालू की कृपा से आज मालदार बनकर पूरा ज्ञान बांट रहे हैं, पर कहा जाता है न, जब किस्मत खराब होता है तो सबसे पहले अपने ही और ज्यादा नजदीक दिखाने वाले ही दूर भागते हैं।

पटना जाने से पूर्व पत्रकारों से बातचीत में तेज प्रताप ने साफ कहा कि उनका फैसला नहीं बदलेगा। उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि जब उनके पिता उनकी बात नहीं मान रहे तो वह उनकी बात क्यों माने, उनके परिवार का कोई सदस्य उन्हें सपोर्ट नहीं कर रहा, ऐसे में क्या करें मर जाए, या फांसी लगाकर आत्महत्या कर लें।

तेज प्रताप के अनुसार, उनके साथ जो भी घटना घटी वे कोर्ट को बतायेंगे, जो उन्होंने याचिका दर्ज की है, उसमें हर बात की जिक्र है। उन्हें पॉलिटिक्स से कोई मतलब नहीं, उनकी ज्यादा रुचि धर्म में हैं। यह पूछे जाने पर इस कांड ने आपके परिवार को बहुत क्षति पहुंचाई तब तेज प्रताप का कहना था कि जो उनका नुकसान हो रहा है, उसका क्या? हम घूट-घूट के जिये, मर जाये क्या?

कमाल है, इसी देश में एक राम हुए, जो अपने पिता दशरथ के वचन को पालन करने के लिए 14 वर्ष का वनवास हंसते-हंसते झेल लिये पर पिता के वचन को झूठा नहीं होने दिया और एक आज का बेटा है तेज प्रताप, जो ये कहता है कि पिता जब उसकी बात नहीं मान रहे, तो वह पिता की बात क्यों माने?

मन तो करता है कि लालू जी और उनके परिवार को इस बात के लिए बधाई दे दें कि आपलोगों ने एक महान पुत्र को जन्म दिया है, जो खुद को धार्मिक बताता है, और धर्म से ही खेल रहा है, उसने तो श्रीराम को ही चुनौती दे दी है, जिसे पता ही नहीं कि वह क्या बोल रहा है? ऐसे में हम किसे दोष दें आपके कर्मफल को, या वक्त को या ऐसे बच्चों के परवरिश में कमी को।

हमें नहीं लगता कि दुनिया का कोई बाप अपने बेटे के मुख से, अपने पिता के बारे में यह सुनकर स्वयं को माफ कर पायेगा?, पर लालू प्रसाद तो लालू प्रसाद हैं, वे कुछ न कुछ तो करेंगे जरुर, और क्या करेंगे, इसका उत्तर तो भविष्य के गर्भ में है, फिलहाल उनके बेटे ने तो पूरी राजद और उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष के सम्मान का ही फलूदा बना कर रख दिया है।