अगर आप इवेंट मैनेजमेंट नहीं जानते तो ‘राहुल’ और इवेंट मैनेजमेंट जानते हैं तो ‘नरेन्द्र मोदी’
दरअसल भारत एक अनोखा देश है, यहां के लोग यह नहीं देखते कि उसका नेता या उसका प्रिय पत्रकार करते क्या हैं? वे तो सिर्फ यह देखते है कि वो कहता/लिखता क्या है? अगर वह बहुत अच्छा बोलता/कहता/लिखता है, तो बहुत बढ़िया है, चाहे वह हमारा गर्दन ही क्यों न उतार लें या चाहे वह देश की अर्थव्यवस्था या देश को ही गिरवी क्यों न रख दें।
इन दिनों रांची से प्रकाशित एक अखबार, जिसका झारखण्ड का ध्येय वाक्य है ‘अखबार नहीं आंदोलन’ वह एक बहुत ही चालाक व्यक्ति का गांधी पर एक-एक पेज का कभी दो-दो पेज का आर्टिकल प्रस्तुत कर रहा है, पर जिसकी वह आर्टिकल प्रस्तुत कर रहा है, उससे पूछो कि आपने गांधी जी के जीवन का कौन सा भाग अपनाया है, उनकी सादगी अपनाई या उनका चरित्र ही अपना लिया और जब उनकी सादगी और उनका चरित्र अपनाया ही नहीं, तो फिर ऐसे आलेख का क्या मतलब?
अब हम आपको बता दें कि इन आलेखों का आम आदमी से कोई मतलब नहीं, और न ही कोई आम आदमी इस पर नजर डालता है, पर जो उसमें व्यक्ति विशेष का जो फोटो छपता है, उस पर एक आम आदमी का नजर जरुर जाता है, और वह यह समझ लेता है कि अखबार में जब इसका इतना बड़ा-बड़ा फोटो छपता है, तो निःसंदेह ये व्यक्ति भी महान होगा, इसकी सोच महान होगी, और यहीं आलेख लिखनेवाले, छपवानेवाले और प्रकाशित करनेवाले की महत्वाकांक्षा भी होती है।
जिसमें वह ज्यादा दिमाग लगाता है, और इसे पूरे प्रकरण को आजकल इवेंट मैनेजमेंट की संज्ञा दी गई है, अगर आप इवेंट मैनेजमेंट नहीं जानते तो आप राहुल गांधी है और अगर आप इवेंट मैनेजमेंट जानते है तो आप नरेन्द्र मोदी है, यानी आप कुछ करो या न करो, चेहरा दिखाते रहो, आप महान हो गये और अगर आप कुछ करोगे भी, और चेहरा दिखाने का मैनेजमेंट नहीं पढ़ा तो गये काम से।
एक सज्जन हमारे पास बहुत दिनों से आते रहे हैं, परम मित्र है, उनसे बराबर इस बात पर बहस होती रहती है, उनका कहना था कि भाई लक्ष्मी तभी आती है जब आप कुछ घालमेल करें, ऐसे भी शत प्रतिशत सोने से आभूषण भी नहीं बनता, उसमें भी कुछ मिलावट की आवश्यकता होती है, वे यह भी कहते है कि दुनिया में शत प्रतिशत कुछ भी नहीं होता, भगवान भी नहीं, भगवान ने भी बहुत सारी गड़बड़ियां की है, तब जाकर वे कुछ बन पाये।
उदाहरणस्वरुप वे कहते है कि मर्यादा पुरुषोतम कहलानेवाले राम भी क्या बालि को छुप कर नहीं मारा, भगवान कृष्ण की लीलाओं को देखें तो उनमें इतनी गड़बड़ियां है कि क्या कहा जाये, पर बन गये भगवान, इसलिए कोई गलती उनमें ढुंढता ही नहीं, बल्कि लोग राम और कृष्ण पर महामंत्र बना दिया, वो इस्कॉन वाले तो बराबर बोला करते है ’हरे राम, हरे राम, राम, राम, हरे हरे। हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण, हरे हरे।’
मैने उक्त सज्जन से कहा कि अगर आपने बोल लिया तो हम भी कुछ बोले, उत्तर दे। उनका कहना था – क्यों नहीं, मैं सुनना चाहूंगा। मैंने कहा कि वर्तमान का उदाहरण चलेगा या अतीत का। उन्होंने बड़े ही गर्व से कहा कि अतीत का क्या आप बतायेंगे, वर्तमान ही बता दीजिये। मैने कहा कि लालू यादव को जानते है, उन्होंने कहा कि उन्हें कौन नहीं जानता। हमने पुछा- फिलहाल वे कहां है? उनके परिवार का क्या हाल-चाल है? वे बड़े मायूस हो गये।
उन्होंने कहा कि बेचारे का हालत खराब है, खुद जेल में है, बड़ा बेटा नाक में दम कर रखा है, पूरा परिवार अस्त-व्यस्त है, सरकारी जांच एजेंसियां तो टूट कर उनके पीछे पड़ी है, बेचारे का स्वास्थ्य भी हिल गया है। मैंने पूछा कि यही महाशय की स्थिति 1990-95 में कैसी थी? बेचारे बोलने लगे – उस वक्त किसी की हिम्मत नहीं थी, कि कोई उनसे टकरा जाये, कांग्रेस को तो नाक में दम कर दिया था, आडवाणी को सांप सूंघा दिया था, धर्मनिरपेक्षता के मिसाल बन गये थे, सामाजिक न्याय के पुरोधा थे, जेल से भी निकलते थे तो लोग हाथी पर बिठा देते थे, पर अब वैसा नहीं हैं।
मैने पूछा – क्यों, कुछ ही साल में ऐसा क्या हो गया कि बेचारे लालू की ये दशा हो गई। मैने फिर पूछा कि अटल बिहारी वाजपेयी जैसे लोग नौ साल तक बिस्तर क्यों पकड़ लिये? आज जार्ज साहेब कहां है? मंडल के मसीहा कहलानेवाले वीपी सिंह को मंडल का फायदा ही उठानेवाले लोग क्यों नहीं आदर करते?
बेचारे सन्न थे, उन्होंने कहा – इन सब का उत्तर आप ही दे दीजिये। हमने कहा कि भगवान कृष्ण का नाम तो आपने सुना ही होगा, आज वे जन्म लिये होते तो लोग उन्हें भी बैकवर्ड क्लास में लाकर खड़ा कर दिये होते और वे 27 प्रतिशत के आरक्षण का लाभ उठाने में लगे रहते, कभी उन्होंने अर्जुन को उपदेश दिया था, कुरुक्षेत्र में दिये गये उनके इस उपदेश को गीता का उपदेश कहा गया है, उन्होंने बहुत पहले कहा था कि जो जैसा कर्म करता है, उसे वैसा ही प्राप्त होता है, अलग से कुछ नहीं प्राप्त होता, आप मनुष्य को धोखा दे सकते हैं, पर ईश्वर को नहीं।
और वो जो ईश्वर है, वह सब का प्रबंध कर देता है, उसके पास लेटेस्ट टेक्नॉलॉजी इतना विकसित है, कि आपका लैपटॉप भी उसके सामने फेल हो जाता है, इसलिए अब तक हमने जितने लोगों का नाम लिया, उन सब ने दरअसल सेवा और ज्ञान के नाम पर ज्यादातर लोगों को उल्लू बनाया और जब उनकी उल्लू बनाने की ताकत यानी पुण्य अंश समाप्त हुई, फिर वे अपने ही कर्मों की गति के कारण समाप्ति की ओर चल पड़े।
समाप्त तो गांधी भी हुए, पर वे आज भी जीवित हैं, उन्हें कोई हरा भी नहीं सकता और न हारने के लिए वे पैदा हुए थे, ठीक उसी प्रकार गौतम बुद्ध को भी आप ले सकते हैं, लेकिन जो लोग ज्यादा अक्लमंदी दिखा रहे हैं, उनकी भी गति कुछ लालू प्रसाद, वाजपेयी या वीपी सिंह की तरह होनेवाली है, बस वक्त का इंतजार करिये, वे कब तक हमें धोखा देते रहेंगे और हम उन धोखों को बर्दाश्त करेंगे, बस वक्त का इंतजार।
आज खुद को ‘अखबार नहीं आंदोलन’ कहनेवाले रांची से प्रकाशित एक अखबार का घमंड है, यहीं घमंड कभी पटना से प्रकाशित होनेवाले अखबार ‘आर्यावर्त’ और रांची से प्रकाशित होनेवाले अखबार ‘रांची एक्सप्रेस’ का था, ‘दैनिक जागरण’ और ’आज’ तो ‘आर्यावर्त’ और ‘रांची एक्सप्रेस’ बनने के लिए बावले हो चुके हैं, मेरे कहने का मतलब जाना तो सभी को हैं, खत्म तो सभी को होना है, कैसे खत्म होना है, वो आप खुद डिसाइड करते हैं, मैं तो देख रहा हूं कि एक बंदा तो अपनी कब्र खुद खोद लिया, जब उसी के अखबार ने सभी वैसे लोगों को जिन्हें छपास की बीमारी होती है, उन्हें बुलाकार एक झूठा सम्मान समारोह आयोजित करवा दिया, अरे भाई सम्मान समारोह ऐसा होता हैं, सम्मान तो दिल से होता है।
गांधी पर लिखनेवाले और लिखवानेवालों से पूछिए कि गांधी या जयप्रकाश नारायण के लिए कितने सम्मान समारोह आयोजित हुए और ये दोनों महानुभाव उक्त सम्मान समारोह में जाकर पीतल के टुकड़ों और शॉलों को लेने के लिए कहां और कितने देर/घंटे बैंठे रहे, अरे ये तो इन सब से परे थे, पहले गांधी और जयप्रकाश को पढ़ों, उनके जीवन-संदेश को खुद के जीवन में उतारों, उसके बाद तुम ज्ञान नहीं भी बांटोगे तो लोग तुम्हारे ज्ञान से प्रभावित होकर, सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे बन जायेंगे।