झारखण्ड हित में CM रघुवर बड़प्पन दिखाना सीखें और अखबार ठकुरसोहाती छोड़ मर्यादा में रहें…
आज रांची से प्रकाशित ‘दैनिक भास्कर’ ने प्रथम पृष्ठ पर ‘अपने CM रघुवर इमेज बनाओ अभियान’ के अंतर्गत या कहिये कि ‘अपने विज्ञापन लाओ अभियान’ स्वभावानुसार एक फोटो छापी है। फोटो में सीएम रघुवर दास और रतन टाटा है। सीएम रघुवर बैठे है और रतन टाटा संभवतः अपनी बातों को रखने के लिए अपनी कुर्सी से उठ रहे हैं, जिन्हें सीएम रघुवर बैठे ही बैठे अपने एक हाथ से उन्हें सहारा देते हुए उठा रहे हैं। शीर्षक दिया गया है – ये हैं लोकतंत्र की सबसे खूबसूरत तस्वीर, जिनकी कंपनी में 30 साल पहले मजदूर थे रघुवर, आज उन्हीं का हाथ पकड़कर खड़े हुए रतन टाटा।
भाई ये तो अपना-अपना नजरिया है, किसी को कुछ दीखता है, तो किसी को कुछ दीखता है। क्या कोई नौकर अपने मालिक के खिलाफ या अन्नदाता के खिलाफ एक शब्द बोल सकता है, उत्तर होगा – नहीं, तो फिर रांची से प्रकाशित किस अखबार में दम है कि वर्तमान हालात में सीएम रघुवर की आरती के सिवा, उन्हे आइना दिखाने की जुर्रत करें? इसलिए ‘दैनिक भास्कर’ तो वहीं करेगा, जो उसे करना चाहिए, यानी ‘आरती कीजै रघुवर दास की, जो विज्ञापन दे करे कृतार्थ जी’।
भाई अगर ‘दैनिक भास्कर’ को जब यह सूझ रहा है कि ये है लोकतंत्र की सबसे खूबसूरत तस्वीर, जिसे खूबसूरत तस्वीर नहीं कहा जा सकता। ऐसे में, भाई किसी को तो यह भी दिखाई पड़ सकता है कि लोकतंत्र मूर्खों का शासन है, उसकी ये सुंदर तस्वीर यहां दिखाई पड़ रही है, कि एक व्यक्ति जो औद्योगिक क्षेत्र में अपनी सफलता के कई कीर्तिमान स्थापित किये, जिसके पूर्वजों ने देश को बहुत कुछ दिया, वह आज भी रांची देने के लिए ही आया है, कैंसर अस्पताल दे रहा है, और वहीं रघुवर दास ने अब तक झारखण्ड को क्या दिया? जो बैठे ही बैठे रतन टाटा को सहारा देने की कोशिश कर रहा है, क्या ये शिष्टता है?
सच पूछा जाये तो अब पत्रकारिता में ईमानदारी लोगों ने बेच खाया है, अब पत्रकारिता में ईमानदारी ही नहीं है, जरा ‘दैनिक भास्कर’ द्वारा दिये गये इस फोटो को ही देखिये, एक उदयोगपति जो रांची कुछ देने के लिए आया है, वह सीएम रघुवर दास के साथ बैठा है, जब वह खड़ा हो रहा है, तो विनम्रता के साथ, उन्हें हाथ पकड़कर सहारा देते हुए स्वयं सीएम रघुवर दास को भी उठना चाहिए था।
ताकि रतन टाटा को लगे, झारखण्ड की सवा तीन करोड़ जनता का प्रतिनिधि कितना विनम्र है, जो अपनी कुर्सी से उठ गया, उन्हें सहारा देने के लिए, पर सीएम रघुवर दास को इतनी बुद्धि हो तब न। अहंकार में रहनेवालों को ये सब कैसे पता चलेगा कि सम्मान कैसे दिया जाता है या किसी के दिलों पर कैसे राज किया जाता है? जरा इस फोटो को ध्यान से देखिये, सीएम रघुवर का बैठे रहना और उनके होठों पर गर्वोक्ति की मुस्कान, साफ बता देती है कि यह स्वागत, यह सहारा, झारखण्डियों का हो ही नहीं सकता, यहां तो आतिथ्य की एक विशेष परंपरा है।
हमें याद है कि एक बार उदयोगपति मित्तल को झारखण्ड में पूंजी निवेश के लिए बुलाया गया था, एमओयू के लिए मित्तल रांची पहुंचे, उस वक्त राज्य में मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा का शासन चल रहा था, जनाब मित्तल अर्जुन मुंडा के ही बुलावे पर रांची आये थे, जब मित्तल से स्थानीय प्रतिनिधि हवाई अड्डे पर मिलन के दौरान उन्हें बूके दे रहे थे तो मित्तल एक-एक बूकों को अपने सीने से लगाये जा रहे थे।
हमें याद है कि मित्तल के इस आतिथ्य स्वीकार्यता को देख पूर्व विधानसभाध्यक्ष इन्दर सिंह नामधारी भी अभिभूत हो उठे थे, वे आज भी कहते है कि हमें ऐसे लोगों से सीखना चाहिए कि आतिथ्य कैसे स्वीकार किया जाता है तथा आतिथ्य-सत्कार कैसे किया जाता है, जब अतिथि के सामने गर्व बोध हो गये कि हम मुख्यमंत्री है तो फिर आतिथ्य समाप्त हो जाता है, रतन टाटा के दिल बहुत बड़े है, वे इन बातों को ध्यान भी नहीं रखे होंगे, पर ‘दैनिक भास्कर’ और सीएम ‘रघुवर दास’ दोनों को इस घटना से सबक लेनी चाहिए, एक पत्रकारिता में ईमानदारी बरते तो दूसरा आतिथ्य में विनम्रता पर विशेष ध्यान दें, घमंड को कुछ देर के लिए किसी ताखे पर रख दे तो और अच्छा होता, ऐसे ये घटना शर्मनाक है, भले ही इसके लिए कोई अखबार या कोई नेता डींग ही क्यों न हांके कि मैने ये किया और मैने वो किया।
अफशोष ,नैतिकता का कहीं पढ़ाई ही नहीं होती..दुर्भाग्य देश और समाज का है।