भगवान श्रीराम की नजरों में आपकी छठिमइया व भगवान भास्कर के प्रति भक्ति कितने नंबर पर हैं?
इन दिनों अखबारों में छठ पर बहुत सारे आर्टिकल दिखाई पड़ रहे हैं, ख्याति प्राप्त साहित्यकारों, पत्रकारों, भाजपा से जुड़े राजनीतिक दलों के नेताओं व राज्यपालों तक के आर्टिकल पढ़ने को मिल रहे है, कई चैनलों/अखबारों/पोर्टलों में तो अब ये भी पढ़ने को मिल रहे है कि छठ कैसे करें? छठ कैसे किया जाता है? छठ करने में किन-किन चीजों की आवश्यकता होती है? छठ में क्या-क्या वर्जित है?
यानी जितने चैनल/अखबार/पोर्टल उतने ही विचार, और इन सब को पढ़कर या देखकर छठ किया जाय, तो यकीन मानिये, छठ, छठ ही नहीं रहेगा, ये बिल्कुल बाजारवाद का शिकार बन जायेगा, जो छठ जैसे पर्व के लिए कतई सही नहीं होगा, क्योंकि एक यहीं व्रत है, जो अब तक बाजारवाद का शिकार नहीं बना, पर इसे भी बाजारवाद में झोंकने की तैयारी पूरी कर ली गई है।
इधर छठ का आज दूसरा दिन, खरना की तैयारी कई घरों में शुरु हो चुकी है। दिल्ली में रह रहे सुधांशु को अपने घर की याद सता रही है। वह पिछले दो दिनों से ऑफिस से लौटते ही, छठ के गीतों से अपने छोटे से दो कमरों के फ्लैट को गुंजायमान कर रहा है। उसे इन गीतों में जीवन संदेश सुनाई देता है। जब उसे नई-नई नौकरी मिली थी, तब उसने अपने छोटे भाई हिमांशु और अपनी मां को उस नौकरी के पहले वेतन से छठ करने के लिए अच्छी खासी राशि भी भेजी थी, संयोग से उस दौरान वह प्रशिक्षण में था, पर रांची पहुंच नहीं सका था, पर उसकी आत्मा रांची के छठ तालाब की ओर ही भटक रही थी, जहां उसकी मां छठ कर रही थी।
सुधांशु से जब-जब बात होती है, तो उससे यही सुनने को मिलता है कि उसे छठ बहुत अच्छा लगता है, सुधांशु को आध्यात्मिकता उसे विरासत में मिली है, संयोग रहा है कि उसके उपर योगदा सत्संग विद्यालय और योगदा सत्संग मठ का भी प्रभाव पड़ा है, जब मैंने उससे आज बात की, और छठ के कुछ प्रसंगों को छेड़ा, तो वह बहुत भावुक हो उठा और भाव विह्वल होकर रोने लगा। उसका भाव विह्वल होना, और छठि मइया के प्रति उसके हृदय में सुंदर भाव तथा भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के लिए उसके हृदय में उमड़ रहे बादल सदृश वेग महसूस कर, हमें समझते देर नहीं लगी कि उसकी भक्ति को भगवान भास्कर और छठि मइया ने स्वीकार कर लिया है।
क्योंकि सच्चाई यह है कि छठि मइया या भगवान भास्कर न तो चावल मांगते हैं और न ही कद्दू, न वे दौरा मांगते हैं और न सूप, वे न तो केला मांगते है और न ही ठेकूआं, वे न तो नाना प्रकार के मौसमी फल मांगते हैं और न ही पकवान, वे तो कुछ ग्रहण ही नहीं करते, पर श्रद्धा-भक्ति वह जिस हाल में भी निवेदित की जाय, उसे स्वीकार कर लेते हैं, उसमें किन्तु-परन्तु की बात ही नहीं होती।
अगर कोई धन-धान्य से परिपूर्ण व्यक्ति नाना प्रकार की सामग्रियों से भगवान भास्कर की श्रद्धा और भक्ति से पूजा-अर्चना करता है और एक व्यक्ति, जिसके पास न तो खुद के खाने का अन्न है और न खुद को पहनने का वस्त्र, पर वह घर में ही रहकर, कुएं या उसके आस-पास के तालाब में जाकर, उसी कुएं या तालाब के जल को एक लोटे में भरकर या स्वयं की अंजूलि से जलार्पण या अर्घ्य दे देता है, तो दोनों की भक्ति को भगवान एक समान ही मानते हैं, ये सब को समझ लेना चाहिए।
अगर किसी ने संयोग से, ये दोनों काम में से कोई काम नहीं किया पर छठव्रतियों और उनके परिवारों की सेवा में स्वयं को समर्पित कर दिया या भगवान भास्कर को निरन्तर जपता रहा या हृदय से भगवान को पुकारता रहा तो उसकी श्रद्धा व भक्ति को भी भगवान उसी प्रकार स्वीकार करेंगे, जैसे एक सामान्य छठव्रती ने अपनी श्रद्धा-निवेदित की हैं।
ऐसे भी किसी भी पूजा के मूल में है, भक्ति और श्रद्धा। इसे आपने कैसे निवेदित किया? भगवान श्रीराम सूर्यवंशी थे। वे कोई भी काम बिना भगवान भास्कर को अर्घ्य दिये बिना नहीं करते। ऐसे भी भगवान भास्कर की उन पर सदैव कृपा रहती थी। स्वयं भगवान श्रीराम से जब शबरी ने पूछा कि प्रभु ये नवधा भक्ति क्या है? उसे विस्तार से समझाये?
तब भगवान श्रीराम ने बड़ी ही प्रेम से नवधा भक्ति के बारे में शबरी को बताया, जिसका बहुत ही सुंदर वर्णन गोस्वामी तुलसीदास ने अपने श्रीरामचरितमानस में किया है। यह चौपाई इतना सहज और सरल है कि इस चौपाई को ही अगर आप पढ़े तो आपको सब कुछ समझ आ जायेगा। जरा देखिये भक्ति के नौ प्रकार का स्वरुप और आप खुद विचार कीजिये कि आप भगवान भास्कर या छठि मइया का जो पूजन कर रहे हैं, उसमें आपकी भक्ति भगवान श्रीराम के अनुसार किस नंबर पर हैं –
मम दरशन फल परम् अनूपा,
जीव पाहीं निज सहज सरूपा।।
।।जय भुवन भास्कर।।जी।।जय जय नारायण।।