काश, झारखण्ड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू भी छठव्रतियों को छठव्रत की शुभकामनाएं देती…
कितना अच्छा होता, जब झारखण्ड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू भी राज्य में रह रहे छठव्रतियों और उनके परिवारों को छठव्रत की शुभकामनाएं देती। हमें समझ नहीं आ रहा कि राज्य में रहनेवाले करोड़ों छठव्रतियों एवं उनके परिवारों को अगर राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू छठव्रत की बधाई दे देती तो उनका क्या चला जाता, क्या घट जाता?
क्या उन्हें बधाई या शुभकामनाएं देने में दिक्कत हो रही है या कोई मना कर रहा है या उनके शुभकामनाएं व बधाई देने में बाधक बनने की कोशिश कर रहा है, ये बात झारखण्ड की जनता राजभवन से जानना चाहती है, आखिर क्या कारण है कि पूर्व में राज्यपाल और मुख्यमंत्री के संयुक्त रुप से विभिन्न पर्वों पर शुभकामनाएं संदेश एक साथ प्रसारित किये जाते थे, पर इधर एक-दो साल से ये परंपरा बंद कर दी गई, क्या कोई उपर से आदेश है या न्यायालय ने ऐसा कुछ संदेश जारी किया है कि राज्यपाल कोई शुभकामनाएं संदेश जारी ही नहीं कर सकती।
इधर देखने में आ रहा है कि राज्य का सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग मनमाने ढंग से विज्ञापन एवं समाचार प्रसारित करना प्रारम्भ कर दिया है, संभव है यह सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के प्रधान सचिव सह मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव के इशारों पर होता होगा, क्योंकि विभाग की जिम्मेवारी तो इन्हीं की है, ये इन गड़बड़ियों से पल्ला भी नहीं झार सकते। आश्चर्य है, यह सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग जिसका समाचार सरकारी साइट पर प्रसारित नहीं होना चाहिए, उन आइएएस/आइपीएस की पत्नियों द्वारा लगाये जानेवाले मेले के लिए तो अपना हृदय खोल देता है, पर सत्य पर आधारित समाचारों व विज्ञापनों से अपना मुंह फेर लेता है।
हमें याद है कि पूर्व में छठ पर्व हो या कोई अन्य पर्व, सभी में मुख्यमंत्री एवं राज्यपाल के संयुक्त रुप से शुभकामनाएं संदेश प्रसारित किये जाते थे, पर इधर राज्यपाल की बढ़ती लोकप्रियता एवं मुख्यमंत्री की घटती लोकप्रियता से परेशान सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग, झारखण्ड ने नया पैतरा प्रारम्भ किया है, जैसे अब कोई पर्व या त्योहारों पर राज्यपाल को नजरंदाज करना उसकी हरकतों में शामिल हो गया है, और केवल मुख्यमंत्री का चेहरा चमकाने का काम उसकी प्राथमिकता हो गई है, जिसका प्रभाव आम नागरिकों पर भी पड़ रहा है, ज्यादातर बुद्धिजीवी इस नई परंपरा को राज्य के लिए खतरनाक बता रहे हैं।