सांस्कृतिक कार्यक्रम से भी जनता ने बनाई दूरियां, खाली रही कुर्सियां, पिटाई के बावजूद नहीं सुधरे पत्रकार
झारखण्ड राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर मोराबादी मैदान में रघुवर सरकार द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम से भी आम जनता ने दूरियां बना ली। बड़ी संख्या में कार्यक्रम स्थल पर कुर्सियां खाली पड़ी रह गई। सांध्य वेला में शुरु हुए इस कार्यक्रम में सांसदों, विधायकों, अधिकारियों की उपस्थिति भी कम रही। आश्चर्य इस बात की रही कि सुप्रसिद्ध पार्श्वगायक सुरेश वाडेकर और सुप्रसिद्ध पार्श्वगायिका कविता कृष्णमूर्ति के कार्यक्रम होने के बावजूद सांस्कृतिक कार्यक्रम का बुरा हाल रहा।
हालांकि अखबारों-चैनलों में इस सांस्कृतिक कार्यक्रम की अपेक्षानुसार-स्वभावानुसार खुब जय-जय की गई है। आज रांची से प्रकाशित सभी समाचार-पत्रों ने कल के सरकारी कार्यक्रमों की भी खूब जमकर प्रशंसा की है, ज्ञातव्य है कि कल पत्रकारों-छायाकारों की जमकर पिटाई भी कराई गई थी, पर इस पिटाई का किसी अखबार या चैनल पर कोई असर नहीं दीख रहा।
लोग बताते है कि उसका मूल कारण हैं अखबारों में काम करनेवाले दोयम दर्जे के संवाददाताओं और छायाकारों की पिटाई का होना, जिस दिन अखबारों/चैनलों के संपादकों/प्रधान संपादकों और मालिकों की पिटाई हो गई, फिर देखियेगा, क्या होगा? लेकिन सच्चाई यही है कि इन अखबारों/चैनलों के संपादकों/मालिकों की पिटाई कभी हो ही नहीं सकती, क्योंकि समाचार संकलन करने का काम तो उनके अनुसार दोयम दर्जें के पत्रकारों/छायाकारों का ही होता है।
लोग बताते हैं कि गलतियां इन पिटाई खानेवाले पत्रकारों/छायाकारों का भी है, क्योंकि ये संगठित नहीं होते और न ही अपने उपर होनेवाले जूल्म का सामूहिक रुप से प्रतिकार करते हैं, नौकरी चले जाने के भय से ये ऐसी-ऐसी हरकतें करते हैं कि समस्याएं यहीं से जन्म लेना शुरु होती है, लोगों ने बताया कि कल की ही घटना ले लीजिये, दोपहर में इन्हीं पत्रकारों के भाईयों की जमकर पुलिस ने कुटाई कर दी, और रात को उसी मोराबादी में सरकार द्वारा आयोजित कार्यक्रम में भोजन के पैकेट लेने के लिए ये लोग उछल-कूद करते नजर आये, जब आप एक भोजन के पैकेट के लिए इतना उछल कूद मचायेंगे, जमीर बेचेंगे, आपको थोड़ी देर पहले की घटना याद नहीं रहेगी तो फिर आपको सरकार और सरकार में शामिल लोग, कुटाई करते ही रहेंगे।
लोग बताते है कि राष्ट्रीय प्रेस दिवस के एक दिन पहले पत्रकारों-छायाकारों की कुटाई, उसके कैमरे छीनने का प्रयास, उसके विजयूल डिलीट करने का प्रयास राज्य सरकार की मंशा को साफ कर देता हैं, लोग तो यह भी कहते है कि देखियेगा इन लोगों की जमीर कितनी मरी हुई है, जिन लोगों ने इन्हें कुटवाया, ठीक उन्हीं के साथ ये अपना जमीर बेचकर, सेल्फी खिचवायेंगे, बेडमिन्टन खेलेंगे, क्रिकेट खेलेंगे, स्पोर्टस किट लेंगे, और अपने खानदान को बतायेंगे कि मेरे फलां अधिकारी से बहुत ही मधुर संबंध है।
अरे ये मधुर संबंध क्या होता है? खांटी पत्रकार बनो, उनके द्वारा दिये गये अनैतिक तरीके से प्राप्त किसी भी वस्तुओं का परित्याग करो, उनके भोजन से दूरियां बनाओ, अपने काम से काम रखो, फिर देखों ये लोग कैसे तुम्हारे आगे-पीछे करते है? पर ऐसा करने के लिए जिगर चाहिए, वो जिगर बहुत कम लोगों को होता है, फिलहाल समाचार यहीं है कि कल के सांस्कृतिक कार्यक्रम की भद्द पिट गई है, क्योंकि लोगों ने इस कार्यक्रम से दूरियां बना ली हैं, जो संकेत है, वह यही बता रहा है कि जल्द ही रघुवर सरकार के दुर्दिन आनेवाले हैं।
जमीर हिल गया,वो फिर मिल गया..।।
खांटी पत्रकार बनने के लिए धूल फांकना होगा..
आपने सही झकझोरा है
पत्रकारों का शोषण खुद प्रेस करती है, पत्रकार पीटें तो पीटते रहें. प्रेस को बिज्ञापन तो सरकार से ही चाहिए. चापलूसी तो करनी ही पड़ेगी.