रांची प्रेस क्लब के अधिकारी, सिर्फ पदधारण करने के लिए बने हैं, काम करने के लिए नहीं
सवाल तो साफ है, और इस सवाल का जवाब रांची प्रेस क्लब के पदाधिकारियों को, उन पत्रकारों को देना ही चाहिए, जिनके वोटों से वे पदाधिकारी बने हैं, पर हमें नहीं लगता कि ये जवाब दे पायेंगे, क्योंकि जवाब वो देता है, जिनके पास जवाब देने की ताकत होती है, फिलहाल रांची प्रेस क्लब के ज्यादातर पदाधिकारी ये जवाब देने की ताकत खो चुके हैं।
जरा देखिये, रांची प्रेस क्लब के पदाधिकारियों को, जिन्होंने रांची प्रेस क्लब का चुनाव लड़ा, चुनाव भी जीते, पर आज उनके पास इन रांची प्रेस क्लब के सदस्यों के लिए समय ही नहीं। तो भाई, आपके पास जब रांची प्रेस क्लब के सदस्यों और उनकी समस्याओं के लिए आपके पास समय ही नहीं था, तो आप सभी ने चुनाव क्यों लड़ा, आशांएं क्यों बंधाई, सदस्यों को सपने क्यों दिखाएं, और अभी भी उन पदों पर काबिज क्यों है? क्यों नहीं आप स्वयं जिम्मेदारी से मुक्त हो जाते, ताकि आपके जगह पर कोई दूसरा आये और वो अपने दायित्वों का निर्वहण करें।
आप लोग तो ऐसे पद पर कुंडलियां मार कर बैठ गये, जैसे लगता है कि दो वर्षों के लिए आपको जो चाहे, जो करने का अधिकार मिल गया, और आप यहीं करते रहेंगे, ऐसी सोच तो रांची प्रेस क्लब को लेकर ही डूब जायेंगी। रांची प्रेस क्लब के बहुत सारे सदस्यों को पता ही नहीं होगा कि उनके वोटों से पद धारण करनेवाले ज्यादातर मीडियाकर्मी, उनको धोखे में रख रहे हैं।
सूत्र बताते है कि आज तक कोई मीटिंग हुई ही नहीं, क्योंकि मीटिंग के लिए आज तक कोरम ही पूरा नहीं हुआ, यानी रांची प्रेस क्लब के पदधारी लोगों ने आपस में मिलजुल कर बैठने की जुर्रत ही नहीं समझी। जब कोई बड़ा कार्यक्रम होगा, तो वहां ऐसे लोग चेहरा और शरीर दिखाने जरुर पहुंच जायेंगे, जो कभी दिखते ही नहीं, पर जब काम की बात होगी तो सर्फ के प्रचार की तरह ढूंढते रह जाओगे, वाली स्थिति हो जायेगी।
रांची प्रेस क्लब के अधिकारियों की इसी वजह से झारखण्ड के पत्रकारों की यह दुर्दशा है, स्थानीय प्रशासन भी नहीं पुछता और जब मन करता है, वह अपने ढंग से पत्रकारों को बजा देता है, कमाल देखिये, हाल ही में 15 नवम्बर को पत्रकारों की पिटाई हो गई, लालपुर थाने में प्राथमिकी दर्ज हो गई, जिन लोगों के प्राथमिकी में नाम है, उन्हीं में से एक को जांच टीम का नेतृत्व सौंप दिया गया और बाद में उसे ससम्मान रघुवर सरकार ने धनबाद भेज दिया। अब रांची प्रेस क्लब के अधिकारी ही बताएं कि जो पत्रकार थुराए, व प्रशासन की लाठी के शिकार बने, उनको क्या मिला?
जिस दिन प्राथमिकी दर्ज हुई, उसी शाम को रांची प्रेस क्लब के बड़े-बड़े पदाधिकारियों के अनुरोध को ठोकर मारकर एक स्थानीय पत्रकार ने स्थानीय प्रशासन के साथ गलबहियां की, सुनने में आया कि उसे कारण बताओ नोटिस भी जारी हुआ, एक सप्ताह बीत गये, उसने कारण बताओ नोटिस का जवाब ही नहीं दिया, रांची प्रेस क्लब के पदाधिकारियों ने क्या किया?
अब सवाल उठता है कि रांची प्रेस क्लब कर ही क्या सकता है? उसके अधिकारी तो मीटिंग में आते ही नहीं, कोरम पूरा होता नहीं, तो निर्णय कौन लेगा, और इसे इम्पलीमेंट कैसे किया जायेगा? कमाल है, पदाधिकारी बन गये और पदाधिकारी बने हुए लोगों को अपने परिवार तथा अपने कैरियर की चिन्ता ज्यादा सता रही है, अब सवाल यह भी उठता है कि जिन पदाधिकारियों को अपने परिवार और कैरियर की इतनी ही चिंता सता रही थी, तो वे फिर इस चुनावी मैदान में कूदे क्यों? किसने कहा था? चुनाव लड़ने को और जब चुनाव लड़ लिये, सदस्यों ने आपको पदधारी बनाया तो आप ईमानदारी से उनके सपनों को पूरा करें, नहीं तो इस्तीफा दें, आपको पद पर बने रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है, दूसरे को मौका दीजिये, वे आपसे बेहतर ही सिद्ध होंगे।
हमें लगता है कि रांची प्रेस क्लब के सारे सदस्यों को एक अभियान चलाना चाहिए और जो रांची प्रेस क्लब के अधिकारी अपने कर्मों को निष्ठापूर्वक संपन्न नहीं कर रहे हैं, उन पर दबाव बनाना चाहिए कि वे पद छोड़े ताकि नये लोग पदासीन होकर, अपने दायित्वों का निर्वहण कर सकें। अब जरा देखिये, रांची प्रेस क्लब के पदाधिकारियों की स्थिति, कई तो ऐसे हैं कि लापता हो गये है, दिखाई ही नहीं पड़ रहे, कब दिखाई पड़ेंगे, कहा नहीं जा सकता। फिलहाल नियमित उपस्थित, अनुपस्थित, कभी-कभार दिखनेवाले तथा लापता रहनेवाले रांची प्रेस क्लब के पदाधिकारियों के नाम इस प्रकार है।
राजेश सिंह, अध्यक्ष – नियमित उपस्थित। सुरेन्द्र सोरेन, उपाध्यक्ष – अनुपस्थित। शंभु नाथ चौधरी, महासचिव – अनुपस्थित। आनन्द कुमार, संयुक्त सचिव – अनुपस्थित। प्रदीप सिंह, कोषाध्यक्ष – उपस्थित। कार्यकारी सदस्यों में सोहन सिंह – कभी कभार उपस्थित, सत्य प्रकाश पाठक – उपस्थित, चंचल भट्टाचार्या – लापता, अमित अखौरी – लापता, आसिया – कभी कभार उपस्थित, पिंटू दूबे – उपस्थित, जयशंकर – उपस्थित, गिरिजा शंकर ओझा – अनुपस्थित, संजय रंजन – उपस्थित, प्रशांत सिंह – कभी-कभार उपस्थित।
ज्ञातव्य है कि रांची प्रेस क्लब की बैठक मंगलवार और शनिवार को होती है। सूत्र बताते है कि इनमें ज्यादातर पदाधिकारियों की कोई रुचि इन बैठकों के प्रति नहीं है, ये अपने मन से काम कर रहे है, किसी ने भी रांची प्रेस क्लब के संविधान का अनुपालन नहीं किया, पर आपस में एक दूसरे को नीचा दिखाने तथा कुछ नहीं समझने की ऐसी परंपरा विकसित कर ली है, कि रांची प्रेस क्लब की मर्यादा अक्षुण्ण रह पायेगी या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता।