ये है CM रघुवर की धनबाद पुलिस, जो यौन शोषण के आरोपियों को बचाने में खुद को दांव पर लगा देती है
सचमुच, आखिर धनबाद पुलिस किसी भी यौन शोषण मामले में, जब कोई महिला प्राथमिकी दर्ज कराने आती है, तो उसकी प्राथमिकी दर्ज क्यों नहीं करती, साथ ही जिस पर यौन शोषण के आरोप है, उन्हें गिरफ्तार या उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करती, क्या इसमें सत्ताधारी दल के नेताओं का दबाव होता है, या कुछ और बात है? सवाल इसलिए उठ रहा है कि देखने में आ रहा है कि कई मामलों में स्थानीय पुलिस अपने कर्तव्यों का निर्वहण नहीं कर, जिन पर यौन शोषण का आरोप है, उन्हें बचाने में ज्यादा जोर लगा रही है और जिसका यौन शोषण हुआ या जिसने यौन शोषण का आरोप लगाया, उसकी तथा उसके परिवार की जिंदगी को तबाह करने में ज्यादा समय दे रही है।
पहला उदाहरण तो भाजपा के जिला मंत्री कमला कुमारी का है, जिसने 30 अक्टूबर को सीएम रघुवर के अतिप्रिय विधायक ढुलू महतो के खिलाफ यौन शोषण का आरोप लगाया और आजतक उसकी प्राथमिकी तक दर्ज नहीं की गई, इसी बीच उसको आर्थिक रुप से क्षति पहुंचाने के लिए, नाना प्रकार के कुचक्र रच दिये गये, फिर भी उक्त महिला को दाद देनी होगी, कि इसके बावजूद भी वो ढुलू महतो के खिलाफ लगाये आरोप से अभी तक मुकरी नहीं है, नहीं तो इतना में उसके जगह पर कोई दूसरा होता तो वो इन सब से डर कर, कब का आत्मसमर्पण कर देता/देती।
इधर एक और नया मामला आया है, जिस पर धनबाद पुलिस ढुलमूल रवैया अपना रही है, मामला बैंकमोड़ थाने का है। टेलीफोन एक्सचेंज रोड, पुराना बाजार, बैंक मोड़, धनबाद की अर्चना शर्मा ने बैंक मोड़ में आवेदन दिया, जिसमें लिखा कि वह जीजीपीएस चास में शिक्षक के पद पर कार्यरत है, दिनांक 18 दिसम्बर को शाम 6 बजे से सात बजे के बीच जीजीपीएस धनबाद में अपने बेटे जो कि उसी स्कूल में पढ़ता है, के साथ स्कूल के वार्षिकोत्सव कार्यक्रम में भाग लेने गई। कार्यक्रम में जीजीपीएस चास के प्रधानाचार्य अपने दो साथियों के साथ वापस जाने के लिए उठे, साथ ही जीजीपीएस धनबाद के प्रधानाचार्य उमाकांत बराल उठे, उन सभी के सम्मान में वह भी खड़ी हुई। उसी समय उमाकांत बराल ने उन्हें अश्लील इशारा किया, तथा उन्हें गलत तरीके से छुने की कोशिश की, जिस पर उन्होंने हाथ झटक दिया।
अर्चना शर्मा ने अपनी शिकायत में यह भी लिखा कि 19 दिसम्बर को पुनः उनकी ननद जो इसी विद्यालय में पढ़ती है, के अभिभावक निमंत्रण पत्र पर अपने पति मनोज शर्मा के साथ सिनियर वार्षिकोत्सव कार्यक्रम को देखने व स्कूल अध्यक्ष तरसेम सिंह को प्रधानाचार्य शिकायत करने की मंशा से गये, परन्तु उन्होंने उनकी एक बात भी नहीं सुनी। अर्चना शर्मा का कहना है कि पूर्व में जीजीपीएस धनबाद में ही वह शिक्षिका के पद पर कार्यरत थी और पहले भी उन्हें स्कूल के प्रधानाचार्य के द्वारा गंदे-गंदे इशारे तथा अन्य तरह के सेक्सूअल हरासमेंट किया जाता था, जब वो बात नहीं मानी तो उन्हें एक साजिश के तहत जीजीपीएस चास स्थानान्तरित कर दिया गया। अर्चना शर्मा के अनुसार 19 दिसम्बर को उनके साथ हुई घटना की लिखित जानकारी बैंक मोड़ थाने में दी गई, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई।
इसी बीच धनबाद बार एसोसिएशन के महासचिव देवी शरण सिन्हा ने एसएसपी धनबाद को पत्र लिखकर इस मामले में त्वरित एक्शन लेने को कहा है, अब सवाल फिर उठता है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि किसी भी पीड़ित व्यक्ति या महिला जब थाने में प्राथमिकी दर्ज कराने जाती है तो उसकी प्राथमिकी दर्ज की जाये, तो ऐसे में धनबाद पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने तथा उस प्राथमिकी के आधार पर आगे की कार्रवाई करने में क्या दिक्कतें आती है, आखिर पुलिस का काम ही क्या है? दोषियों/आरोपियों को बचाना या पीड़ित/पीड़िता को न्याय दिलाना। राज्य के नागरिकों को ये मालूम होना चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का भी धनबाद पुलिस पर असर नहीं हैं, अगर सच पूछा जाय तो यह सुप्रीम कोर्ट की अवमानना भी है, पर धनबाद पुलिस को ये बात कौन बताएं?
हाल ही में धनबाद में जब निर्भया कांड की बरसी मनाई जा रही थी, तब उसी बरसी में एसएसएलएनटी के छात्रा ने अपने संबोधन में कहा था कि उसे जिंदगी भर इस बात का अफसोस रहेगा कि उसने अपनी सहेली को उसके घर तक क्यों नहीं छोड़ा? उसे गली के मोड़ पर क्यों छोड़ कर चली आई, जैसे ही छात्रा के बयान आये, उक्त बरसी में शामिल हुई संभ्रांत महिलाओं के होश उइ गये, और इधर पुलिस इस मामले को दबाने में लग गई, और पीड़िता से भूली पुलिस ने दबाव बनवाकर यह लिखवा लिया कि उसके साथ ऐसी कोई घटना नहीं घटी, पर जैसे ही धनबाद पुलिस को यह पता लगा कि इस मामले को लेकर धनबाद के बुद्धिजीवियों की एक बैठक शाम 4 बजे होनेवाली हैं, एसएसपी के कान खड़े हुए और इस मामले की खुद जांच करनी शुरु की, पीड़िता को अपने आवास पर बुलाया तब जाकर मामला न्यायालय पहुंचा और भाजपा तथा बिल्डर का बेटा इस आरोप में सलाखों के पीछे ढकेला गया, अब सवाल उठता है कि जिस भूली पुलिस ने इस मामले को झूठलाने की कोशिश की, दबाने की कोशिश की, उस पुलिस पदाधिकारी पर क्या कार्रवाई हुई? और अगर नहीं हुई हैं तो कब तक होगी, धनबाद पुलिस को बताना चाहिए।
धनबाद में एक महीने के अंदर ये घटी तीन घटनाएं धनबाद पुलिस के चाल-चरित्र के साथ-साथ, रघुवर सरकार के सुशासन वाली बात की पोल खोलकर रख दी है, यानी जिनको जेल में होना चाहिए, वे कल सदन की शोभा बढायेंगे और पुलिस उन्हें ससम्मान सैल्यूट देकर उन्हें सदन तक ले जायेगी, ये कैसी विडम्बना है, ये कैसा लोकतंत्र है, जहां महिलाएं-लड़कियां सुरक्षित नहीं पर यौन-शोषण के आरोपी ज्यादा सुरक्षित है, और उनकी सुरक्षा में पुलिस जी-जान से जुटी है।