अरे संघियों, और कुछ नहीं तो कम से कम सरसंघचालक मोहन भागवत जी के सम्मान का तो ख्याल रखा होता
सबसे पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत जी की वो बातें, जो उन्होंने धनबाद में कही। वे वहीं बातें कह रहे हैं, जो भारतीय वांग्मय और संस्कृति सदियों से कहती रही हैं – “धन गया कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया कुछ गया और चरित्र चला गया तो सब कुछ चला गया।” दरअसल संघ भी वर्षों से यहीं कहता और करता रहा है, वह अपने स्वयंसेवकों में धन की लोलुपता समाप्त कर, केवल चरित्र गढ़ने की बात करता है।
वह गाता है – “संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढ़े चलो, भला हो जिसमें देश का वो काम सब किये चलो।” पर धनबाद के क्रीडा भारती के कार्यक्रम में क्या हो रहा है? वो हम आपको बता रहे हैं, क्योंकि वो बातें, अखबार या चैनल वाले नहीं बतायेंगे, क्योंकि वे तो सरकार तथा माफियाओं के टूकड़ों पर पलते हैं, उनके रहमोकरम पर सर उठाते हैं, तो भला वे क्या बतायेंगे कि धनबाद में क्या हुआ?
चूंकि संघ का एक-एक स्वयंसेवक अपने संघ तथा संघ के सरसंघचालक के प्रति ईमानदारी बरतता है, वह संघ के सरसंघचालक के आगे “पूज्य” शब्द का प्रयोग करता है, क्योंकि संघ का सरसंघचालक या संघ से जुड़े लोग, उनके अनुसार त्याग, सेवा व बलिदान की प्रतिमूर्ति होते हैं, किसी भी स्वयंसेवक के लिए, उसका सरसंघचालक ही सब कुछ है, क्योंकि वह उनके बताये मार्गों का अनुसरण करता है, पर जरा देखिये, धनबाद में क्या हुआ?
इस आर्टिकल में छपी इस तस्वीर को ध्यान से देखिये, मंच पर सरसंघचालक मोहन भागवत जी बैठे हैं, और उसी मंच पर विराजमान है, संघ की एक राजनीतिक संगठन भारतीय जनता पार्टी से जुड़ा और राज्य का मुख्यमंत्री रघुवर दास, जिसे सरसंघचालक से भी बड़ी कुर्सी थमा दी गई है, और वह भी शान से उस कुर्सी पर विराजमान है, जबकि सरसंघचालक एक सामान्य कुर्सी पर बैठकर कार्यक्रम का अवलोकन कर रहे हैं?
क्या आयोजकों को यह भी नहीं पता था कि सरसंघचालक के लिए कैसी कुर्सी वहां लगनी चाहिए, क्या सरसंघचालक से भी ज्यादा तपस्वी राज्य का मुख्यमंत्री रघुवर दास हैं, ये विद्रोही24.कॉम नहीं, बल्कि संघ का एक सामान्य स्वयंसेवक सवाल उठा रहा है, जो इस दृश्य को देखकर शर्म से सर झूका लिया।
अब दुसरी तस्वीर को ध्यान से देखिये, जिसमें सरसंघचालक मोहन भागवतजी, मुख्यमंत्री रघुवर दास के साथ परेड का निरीक्षण कर रहे हैं, जिस गाड़ी पर वे परेड का निरीक्षण कर रहे हैं, बताया जाता है कि वह गाड़ी सिंह मेंशन का हैं, सिंह मेंशन धनबाद में किस कार्य के लिए जाना जाता है, झरिया के भाजपा विधायक फिलहाल किस आरोप में जेल में बंद है, वह भी किसी से छुपा नहीं हैं।
अब सिंह मेंशन की गाड़ी पर सरसंघचालक खड़े होकर, परेड का निरीक्षण करें, क्या कोई आदर्श स्वयंसेवक बर्दाश्त कर सकता है, एक स्वयंसेवक सवाल उठा रहा है? क्या धनबाद में संघ का कोई ऐसा आदर्श स्वयंसेवक नहीं था, जिसके गाड़ी पर खड़े होकर सरसंघचालक परेड का निरीक्षण करते, सीएम रघुवर दास उस गाड़ी पर खड़े होकर परेड का निरीक्षण करे, ये चलेगा, क्योंकि वो व्यक्ति अपने आप में अनोखा है, पर सरसंघचालक ऐसी गाड़ियों का उपयोग करें, नहीं चलेगा?
एक ओर संघ और सरसंघचालक चरित्र की बात करते हैं, और दूसरी ओर कार्यक्रम समाप्त होते ही, जिस गाड़ी पर खड़े होकर सरसंघचालक परेड का निरीक्षण करते हैं, उस गाड़ी का ड्राइवर, संघ के ही स्वयंसेवकों से भिड़ जाता है, मार-पीट करता है, उसके सम्मान से खेलता है, आखिर यह क्या संदेश दे गया? क्या ये बताने के लिए काफी नहीं, कि संघ और संघ के स्वयंसेवकों की करनी और कथनी में बहुत ही अंतर है।
क्या ये सही नहीं कि इस कार्यक्रम में क्रीड़ा के नाम पर एनजीओ की भी सहायता ली गई, जिनका संघ से कभी कोई नाता ही नहीं रहा, बस वो चेहरे चमकाने और इसका फायदा उठाने के लिए ही बने हैं, हद तो तब हो गई कि इस कार्यक्रम में यौन शोषण के आरोपी तक देखे गये।
जिसके खिलाफ भाजपा की जिला मंत्री आसमान सर पर उठा रखी है, उसकी प्राथमिकी तक अभी तक दर्ज नहीं की गई, अब संघ के स्थानीय लोग ही बताएं कि जिस राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम में ऐसे लोग मौजूद हो, जहां ऐसे-ऐसे कार्य आयोजित किये गये हो, उसमें सरसंघचालक मोहन भागवतजी का इन्होंने सम्मान बढ़ाया या सम्मान घटाया?