पहले क्रूरता दिखाई, पारा-टीचरों को जेल में डाला, मरने पर मजबूर किया, अब दया दिखाने की कोशिश
हमारे राज्य के होनहार मुख्यमंत्री कितने दयालु हैं, कितने परोपकारी हैं, वे झारखण्ड की जनता पर कितना दया बरसाते हैं। देखिये न, आजकल कही भी वे जाते हैं तो बच्चों को गोद में ले लेते हैं। कहीं बुजुर्गों को देखते हैं, तो पांव छू लेते हैं। अपने लोगों को देखते हैं तो उनके साथ सेल्फी लेने लगते हैं। अपनी आरती उतारने को बेकरार पत्रकारों को जब वे देखते हैं तो वे उनके साथ चाय पर चर्चा करने लगते हैं।
सचमुच भारत में अपने होनहार मुख्यमंत्री रघुवर दास जैसा दुनिया में कोई नहीं होगा। लोग बेकार में ही अपने होनहार मुख्यमंत्री के बारे में अनाप-शनाप बोलते और लिख देते हैं। अब जरा देखिये, अपने मुख्यमंत्री ने पारा टीचरों पर कितनी दया दिखाई है, उन्होंने घोषणा की है कि जो पारा टीचर आंदोलन के दौरान दिवंगत हो गये हैं, उन्हें वे अपने विवेकाधीन कोष से एक-एक लाख रुपये देंगे। सचमुच अपने होनहार मुख्यमंत्री रघुवर दास की इस दयालुता पर पारा टीचरों के संगठनों को उनकी जय-जय करनी चाहिए, क्योंकि ऐसा दयालु-परोपकारी मुख्यमंत्री तो झारखण्ड में आज तक हुआ ही नहीं।
सचमुच कमाल है, जो व्यक्ति, जो सीएम भरी सभा में पारा टीचरों को सबक सीखाने की बात करता है, जो महिला पारा टीचरों तक को जेल में डाल देता है, जिसके शासन-काल में आंदोलन के दौरान गायब हुआ एक पारा टीचर, इस दुनिया में है भी या नहीं, उसको ढूंढने के लिए उसकी पत्नी थाने का चक्कर लगा रही हैं, और उसकी प्राथमिकी तक दर्ज नहीं की जा रही, जिसके शासनकाल में एक मंत्री के आवास के सामने आंदोलन कर रहा पारा टीचर ठंड से ठिठुर कर मर गया, जिसके शासनकाल में दस से भी अधिक पारा टीचरों की मौत हो गई, जो पारा टीचरों से बात करने को तैयार नहीं हैं, आज वो दया का सागर बनने की कोशिश कर रहा हैं, और उसकी दयालुता के इस खबर से पूरा अखबार और चैनल रंगा है, ये आश्चर्य करनेवाली बात नहीं तो और क्या है?
कमाल है, वह उच्चस्तरीय कमेटी बनाने की भी बात कर रहा है, उस उच्चस्तरीय कमेटी में उसने ऐसे-ऐसे लोगो को रखा है, जिनको पारा टीचरों की मूलभूत समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है, वे समस्या का समाधान करेगें। पारा टीचरों ने एक तरह से सीएम के इस दिखावेवाली दयालुता को ठुकराकर, एक तरह से अच्छा ही किया। जनाब सीएम एक-एक लाख की दयालुता की भीख का हवाला देकर पारा टीचरों से काम पर लौटने की अपील कर रहे थे, पारा टीचरों ने ठीक ही कहा कि बिना वेतनमान के वे आंदोलन समाप्त नहीं करेंगे।
कमाल है, जनाब अभी सत्ता में है, पर संभावित हार के बाद विपक्ष के नेता बनने का ख्वाब अभी से पालकर, अपने लिए सारी व्यवस्था का इंतजाम पहले से ही कर ले रहे हैं और पारा टीचरों को लॉली पॉप दिखा रहे हैं। पारा टीचरों ने ठीक ही कहा कि उनकी समस्याओं के समाधान के लिए तो पूर्व में भी एक कमेटी बनी थी, उस कमेटी ने क्या किया? सभी को पता है, इसलिए सीएम रघुवर दास के इस अपील और उच्चस्तरीय कमेटी का पारा टीचरों के हड़ताल पर कोई असर नहीं पड़नेवाला है।
इधर 16 नवम्बर से चल रहा पारा टीचरों का हड़ताल खत्म होने का नाम नहीं ले रहा, दूसरी ओर प्रधानमंत्री के पलामू दौरे का विरोध नहीं करने का फैसला लेकर पारा टीचरों ने एक सुंदर संकेत दिया है, शायद मुख्यमंत्री के कान पर इस निर्णय को लेकर जूं रेंगे, पर हमारे सीएम भी कम थोड़े ही न हैं, वे तो होनहार हैं, जब तक हाथी नहीं उड़ा लेंगे, पारा टीचरों के समस्या का समाधान कैसे करेंगे? भाई हाथी उड़ाना मजाक बात थोड़े ही हैं।