वामपंथियों ने केरल में चखा धर्म का स्वाद, ‘द टेलीग्राफ’ ने आतंकी समर्थित पत्थरबाजों के प्रति दिखाई सहानुभूति
हमने तो सोचा था कि वामपंथी, गरीबों की रोजी-रोटी की लड़ाई लड़ते हैं, पर वे दंगे भी फैलाते हैं, ये हमने सपने में भी नहीं सोचा था। केरल में भगवान अयप्पा के नाम पर केरल की वामपंथी सरकार द्वारा पूरे राज्य में सांप्रदायिक दंगे की लगाई आग ने सारी गलतफहमियां बहुतों की दूर कर दी, भला जो दल धर्म को अफीम समझता हो, उसे धर्म के मामले में इतना दखल देने की आवश्यकता क्यों पड़ गई?
केरल के बारे में हमें एक और बड़ी गलतफहमी थी कि यह राज्य भारत का सबसे ज्यादा शिक्षित राज्य है, पर केरल में वर्तमान में फैली हिंसा इस गलतफहमी को भी दूर कर दी, अब हम दावे के साथ कह सकते हैं कि यह शत प्रतिशत शिक्षित जरुर हैं, पर इस राज्य में ज्ञान का सर्वथा अभाव है, यह भी उत्तर भारत के अन्य राज्यों की तरह दंगे करने-कराने तथा उसमें परम आनन्द लेने का शौक रखता है, जिसमें सत्ता में बैठे वामपंथियों का समूह हिन्दूओं को दोयम दर्जें का प्राणी से ज्यादा कुछ नहीं समझता, तभी तो वह एक छोटी सी घटना को लेकर एक दूसरे को देख-लेने पर आमदा है।
जरा देखिये माकपाई गुंडें चुन-चुनकर आरएसएस कार्यालयों, भाजपा कार्यालयों तथा उनके नेताओं व कार्यकर्ताओं के घरों पर बमों से हमले कर रहे हैं, वहीं कई लोग केरल सरकार के इस घटियास्तर के मनोवृत्ति के खिलाफ सड़कों पर उतरकर अपना आक्रोश व्यक्त कर रहे हैं। माकपाई गुंडों को लगता है कि उन्होंने युग जीत लिया। संघ और भाजपा के लोगों को औकात बता दिया, पर उन्हें पता ही नहीं, कि अयप्पा प्रकरण ने भाजपा और संघ को और केरल में मजबूत कर दिया। कल आनेवाले समय में केरल में माकपा का सफाया हो जाये, तो किसी को गलतफहमी भी नहीं होना चाहिए।
इधर कुछ वामपंथी अखबारों को भी देख रहा हूं कि केरल की घटनाओं को वे वामपंथी नजरों से देखकर भाजपा और संघ के स्वयंसेवकों को कटघरे में रख रहे हैं। ये वामपंथी अखबार और उनके संपादक, इतने नीचे गिर गये है कि वे केरल की जनता के आक्रोश को, जम्मू-कश्मीर के पत्थरबाजों से तुलना कर रहे हैं, वे पत्थरबाज जो भारतीय सैनिकों के उपर पत्थर फेंककर पाकिस्तानी आंतकियों का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
आश्चर्य है कि इस काम में कोलकाता से प्रकाशित होनेवाला ‘द टेलीग्राफ’ सर्वाधिक प्रमुख भूमिका निभा रहा है। उदाहरण आपके सामने हैं, जरा उसका 4 जनवरी 2019 को कोलकाता से प्रकाशित अखबार को देखिये, जिसमें उसने साफ लिखा है कि ‘इन कश्मीर, वी शूट देम, इन केरला, वी कॉल देम डिवोटीज’ अर्थात् ‘कश्मीर मे वे मार रहे हैं और केरल में उन्हें भक्त बुला रहे हैं।‘ इस अखबार की इस पंक्ति से यह भी साबित हो जा रहा है कि वह सेना पर पत्थर फेंककर पाकिस्तानी आंतकियों को मदद करनेवाले आतंकियों के साथ यह अखबार और उसका संपादक सहानुभूति रखता है, जो देश के लिए घातक है।
इस अखबार ने केरल में हो रहे दंगे के लिए सीधा-सीधा संघ परिवार को दोषी ठहरा रहा है, पर ये नहीं बता पा रहा कि संघ कार्यालयों या भाजपा कार्यालयों या उनके नेताओं पर जो हमले हो रहे हैं, वे कौन कर रहे है? क्या ये भाजपा और संघ के लोग खुद ही अपने कार्यालयों को आग या बम के हवाले कर रहे हैं? अगर पत्रकारिता दोगली नजरों से देखी जायेगी तो फिर हम उसे पत्रकारिता भी नहीं कहेंगे, जैसा कि ‘द टेलीग्राफ’ ने किया है।
इधर सबरीमला प्रकरण पर पूरे राज्य से 3178 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, 37,979 लोग आरोपी बनाये गये हैं, इस आरोप और गिरफ्तारी में भी एक दल के लोगों को ही टारगेट किया जा रहा है, बाकी सत्ताधारी दलों के नेताओं व कार्यकर्ताओं पर प्रेमानन्द बरसाया जा रहा हैं, भाजपा नेताओं ने केरल में फैली हिंसा के लिए केरल सरकार को जिम्मेवार ठहराया है, भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने कहा है कि राज्य सरकार डीवाइएफवाइ, एसडीपीआइ के कार्यकर्ताओं को इस्तेमाल कर रही है, यह सब राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित है।
दूसरी ओर केरल के पीडब्ल्यूडी मंत्री एवं माकपा नेता जी सुधाकरण ने पुजारी को ब्रह्मराक्षस बता दिया है, यानी ये वामपंथी नेता कितने नीचे गिरेंगे, कुछ कहा नहीं जा सकता, अपनी गलतियां नहीं देख रहे, कि उन्होंने राज्य को किस स्थिति में पहुंचा दिया, पर वे अपनी गलतियां जनता को नहीं बता रहे, कि हमने जिस धर्म को सदियों से अफीम कहते फिरे हैं, उस धर्म में हमने अपनी मुक्ति ढूंढ ली, हमने अपने वामपंथी कार्यकर्ता को भगवान अयप्पा का दर्शन, वो भी चोरी-छिपे करवा दिया, क्योंकि हमारी इतनी ताकत नहीं थी कि भगवान अयप्पा का दर्शन, सामान्य जनता के बीच से होकर, एक वामपंथी कार्यकर्ता को दिखा सकते थे।
इधर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की केरल यात्रा, भी सांप्रदायिक हिंसा की भेंट चढ़ गई है, ऐसे लाख ये वामपंथी या इनके चाहनेवाले पत्रकार, केरल में हो रहे प्रदर्शन या हिंसा के लिए संघ परिवार को दोषी ठहरा दें, पर अब जनता जान चुकी है कि वामपंथियों को भी धर्म में मुक्ति का मार्ग दिखने लगा है, इसलिए अब ये दंगे और भाजपा-संघ के कार्यालयों व नेताओं पर बमों से हमले होते रहेंगे ताकि धर्म का स्वाद वामपंथी भी अकेले छक कर लेते रहे और जनता को मूर्ख बनाकर सत्ता का निष्कंटक लाभ लेते रहे।