अमित शाह की कमेटी में बेटे का नाम देख गदगद BJP नेता की सारी हेकड़ी जनता ने फेसबुक पर निकाली
भाई, बाप अमीर हो या गरीब, किसे अपने बेटे की तरक्की अच्छी नहीं लगती, और खासकर उस वक्त और, जब सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर बैठे दल का अध्यक्ष जब उसे अपने द्वारा बनाई जा रही कमेटी में महत्वपूर्ण स्थान दे दें। भाजपा के एक बहुत बड़े नेता तथा पटना साहिब सीट से भाजपा की ओर से लोकसभा के संभावित प्रत्याशी आर के सिन्हा इन दिनों बहुत खुश है, जबसे वे सुने है कि उनका बेटा ऋतुराज सिन्हा को पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने राष्ट्रीय प्रचार समिति का सदस्य मनोनीत किया है। वे इस उपलब्धि से बड़े प्रसन्न हैं। इतने प्रसन्न की उन्हें रहा नहीं गया और अपनी भावना के उबाल को सोशल साइट यानी फेसबुक में प्रकट कर दिया। जरा देखिये उन्होंने क्या लिखा है?
“मेरे सुपुत्र ऋतुराज सिन्हा को पार्टी अध्यक्ष श्री अमित शाह ने राष्ट्रीय प्रचार समिति का सदस्य मनोनीत किया है। पार्टी के प्रति निष्ठा और मेहनत को देखते हुए अमित शाह जी द्वारा ऋतुराज को इस जिम्मेदारी पूर्ण कार्य को सौंपने के लिए उनका आभार। मैं अपने सुपुत्र को इस कार्य को सफलता पूर्वक करने के लिए आशीर्वाद देता हूँ। यह मेरे लिए गर्व की बात है कि आठ सदस्यीय राष्ट्रीय प्रचार प्रसार समिति में जहां चार मंत्रियों और सांसदों सहित तमाम वरिष्ठ नेताओं को जगह दी गई है। ऋतुराज एकमात्र 39 वर्षीय नवयुवक हैं। मेरा आशीर्वाद ! सफलीभूत भवऽ।“
इधर आर के सिन्हा का अपना उद्गार प्रकट करना, इस उद्गार के समर्थन में अखबारों की कटिंग डालना और उधर उनके सोशल साइट पर चल पड़ा प्रश्नों का बौछार। जो पत्रकार या वे लोग जो आर के सिन्हा से अनुप्राणित हैं, वे बधाइयों का तांता लगा दे रहे हैं, जैसे लगता हो, कि आर के सिन्हा के इस बेटे ने ओलम्पिक में गोल्ड जीत लिया हो और दूसरा पक्ष ऐसा है कि इनकी सारी हेकड़ी निकाल कर, इनके हाथों में रख दी हैं तथा उन सारी बातों का जिक्र कर दिया कि ये सब आज की राजनीति में कैसे प्राप्त होता है?
कुछ ने तो इन्हें सलाह दे दी कि इन सभी बातों से ये दूर ही रहे तो अच्छा हैं, क्योंकि इससे इज्जत की मिट्टी पलीद होनी तय हैं, परन्तु आर के सिन्हा को क्या? उन्हें तो लगता है कि जैसे उन्होंने तीर मार लिया है, वैसे उनके बेटे ने भी तीर मार लिया, इसलिए अपनी भावनाओं को तो फेसबुक के माध्यम से रखने का, उनका अधिकार तो बनता है, जो उन्होंने इस्तेमाल किया, इसमें गलत या सहीं क्या? और अब बात उनके ही इस पोस्ट पर आये कमेन्ट्स की, जरा देखिये लोगों ने कितने अच्छे ढंग से सवाल दाग दिये हैं, जिसका जवाब हमें नहीं लगता कि आर के सिन्हा या उनका सोशल साइट देखनेवाले या उनके समर्थकों के पास होगा?
अमित तिवारी ने लिखा है कि पोस्ट डाल वंशवादवाला रिश्ता को और भी प्रगाढ़ किया है। राजकुमार कुंजाम ने उनके इस उद्गार पर गजब का कटाक्ष करते हुए लिखा है कि सही बात कहें सर, इतना काम किये है कि घर द्वार सब बीके गया है? एक बिहार बक्सर के रहनेवाले ज्ञानेश्वर गोंड (जनजाति मोर्चा झारखण्ड के सह-प्रभारी) जिसने भाजपा के चक्कर में अपना दुकान बर्बाद कर दिया, बेटा बोन कैंसर से पीड़ित, लेकिन आज भी झारखण्ड में अपने खर्चे से भाजपा का काम कर रहा है, लेकिन भाजपा की सरकार और मोदी सरकार को उस व्यक्ति का कष्ट नहीं दिख रहा है। एक भी भाजपा के लोग सहयोग के लिए नजर नहीं आये।
एक है पंडित अश्विनी चौबे जो बक्सर से सांसद सह स्वास्थ्य मंत्री, लेकिन अभी तक मात्र आश्वासन दिये है। इन्हें मात्र भाजपा के ब्राह्मण ही दुखी-पीड़ित नजर आते है। एक भाजपा का आदिवासी नेता नजर नहीं आया। मैं तो एक पाहन की हैसियत से बोलता हूं कि आदिवासियों का शाप अब भाजपा को लगने लगा है, यदि इतना भी नहीं सम्हले तो सब कुछ खत्म हो जायेगा। आज आदिवासी क्षेत्रों में ही भाजपा को सम्मान मिला, लेकिन उसका परिणाम भी सामने है।यदि किसी को विश्वास नहीं होता तो आप ज्ञानेश्वर गोंड जी के मोबाइल नंबर 9431420226 पर बात कर सकते हैं।
रोहित राय टुल्लू ने लिखा है कि क्या यह सौभाग्य किसी आम कार्यकर्ता को नहीं मिल सकता, लेकिन यह सत्य है कि एक किसान का बेटा, कभी नेता नहीं बन सकता। यह पुरानी कहावत है, भारत में जो गरीब हैं उसकी आनेवाली पीढ़ी गरीब ही रहेगी, और एक नेता का बेटा, नेता ही रहेगा। आसिफ मल्लिक ने सवाल पूछा है कि क्या ये परिवारवाद नहीं है? संदीप सिंह ने कहा कि अब आपसे यहीं अपेक्षा है कि दूसरे दलों के नेताओं पर वंशवादी होने का आरोप नहीं लगायेंगे।
निवास कुमार ने लिखा है कि बीजेपी में भी मेहनती कार्यकर्ता नेता के पीछे रह जाता है और नेताओं का खानदान आगे बढ़ रहा हैं, उसे ही पद भी मिल रहा है। राकेश सहाय ने लिखा है, बधाई पर अब आप ये मत कहना कि वंशवाद केवल राहुल गांधी के साथ है। सुधांशु नीलम गौरव लिखते है कि क्षेत्र की परेशानी साधारण कार्यकर्ता देखता है और जिम्मेदारी नेताजी के बेटे को मिलता है, वंशवाद से बाहर निकलिये 39 साल में नवयुवक, हाहाहाहाहा। इसी तरह ऐसे कई लोग हैं, जिन्होंने आर के सिन्हा के इस पोस्ट की बैंड बजा दी हैं।