भाजपा में लोकसभा चुनाव के दौरान झारखण्ड में होनेवाले ‘अमंगल’ को ‘मंगल’ भी नहीं रोक पायेंगे?
आप कितना भी पटना से रांची या दिल्ली से रांची भाया पटना का चक्कर लगा लीजिये, भाजपा के लोकसभा चुनाव प्रभारी मंगल पाडेय जी, पर आप झारखण्ड में भाजपा के उपर लगनेवाले इस बार के ग्रहण को आप नहीं बचा पायेंगे, क्योंकि उसके एक नहीं अनेक कारण हैं, जिसे आप न तो कभी सुलझा पायेंगे और न आपसे वह सुलझ ही सकता है।
इधर जिस महागठबंधन को आप हलके में ले रहे हैं, आपको मालूम होना चाहिए कि उस महागठबंधन को जनसंगठनों का साथ मिल चुका है और उनके साथ जनसमूह भी है, पर आपकी पार्टी के लिए जो सबसे बड़ी घातक बीमारी है, वह बीमारी है – भाजपा कार्यकर्ताओं में बढ़ता असंतोष एवं सीएम रघुवर दास की बढ़ती अलोकप्रियता एवं उनका अशोभनीय व्यवहार।
आपको पता ही नहीं है कि भाजपा के कोर कमेटी में ही शामिल कई लोग सीएम रघुवर दास के व्यवहार से दुखी है, और वे चाहकर भी उनके व्यवहार को बदल नहीं सकते, जिसके कारण ज्यादातर समर्पित भाजपा कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस बार भाजपा को जीताने के लिए नहीं, बल्कि उसे बचाने के लिए बूथों पर अपना समय देंगे, अब कार्यकर्ताओं के इस संवाद पर ही अगर आप चिन्तन करें, तो क्लियर हो जायेगा, कि अब भाजपा कार्यकर्ता विभिन्न बूथों पर भाजपा को जीताने के लिए नहीं बल्कि उसे ऐसे ही छोड़ देने के लिए काम करेगा।
आज भी हमारे पास ऐसे कई भाजपा कार्यकर्ताओं की लिस्ट है, जिन्होंने सीएम रघुवर दास के व्यवहार से क्षुब्ध होकर कुछ तो खूलेआम, तो कुछ गुप्त रुप से झारखण्ड मुक्ति मोर्चा को समर्थन करने का ऐलान कर दिया, जिसका आपको लगता है कि जानकारी ही नहीं है, और न आपके भाजपा कार्यालय में बैठकी करनेवाले संघ की ओर से आनेवाले संगठन मंत्री धरमपाल सिंह को ही इसकी जानकारी है।
फिलहाल झारखण्ड में मिली सत्ता के बाद सब बौरा गये हैं, उन्हें लगता है कि रघुवर दास की विद्वता को देखकर ही लोगों ने वोट दे दिया, पर सच्चाई क्या है? आम जनता आनेवाले लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सवाल पूछने को बेकरार है कि “मोदी जी, हमने तो आपका मुंह देखकर विधानसभा में भाजपा को वोट दिया, पर ये कैसा आदमी हमारे मत्थे मढ़ दिया, जो हाथी उड़ाने में ज्यादा दिलचस्पी रखता है, भला कभी हाथी भी उड़ा है?”
आप कहेंगे कि जब जनता को सवाल पूछना था तो पांच जनवरी को पलामू आये थे प्रधानमंत्री, सवाल पूछ सकती थी, तो भला वहां जनता थी कहां, वहां तो आइएएस और आइपीएस के द्वारा जुटाई गई भीड़ थी, नहीं तो जनता तो उसी दिन ‘ना’ कह चुकी थी, जब उसे कह दिया गया था कि तूझे काला जूता तक पहनकर नहीं आना है, पीएम की सभा में। ये अलग बात है कि जिला प्रशासन की धज्जियां जब उड़ने लगी, तब जाकर उसे ज्ञान हुआ। जहां ऐसे-ऐसे ज्ञानी-मानी-ध्यानी लोग सत्ता से लेकर प्रशासन तक में घुस गये हो, तो वहां की जनता आपसे कितनी खुश होगी, समझते रहिये।
अभी तो आप लोकसभा चुनाव प्रभारी बने है, तो लगे है बड़े-बड़ों के साथ मीटिंग में, कभी झारखण्ड के मिट्टी की महक ले लीजिये, सब पता लग जायेगा। 2004 में जिस प्रकार आपकी पार्टी की हालत पस्त हो गई थी, ठीक 2019 में भी यह रिपीट होने जा रहा है, हम तो उसका हेडिंग तक बना चुके हैं, क्योंकि हम पत्रकार है, किसी सत्तारुढ़ दल या किसी भी राजनीतिक दलों के इशारों पर मिलनेवाली मूल्य/अमूल्य वस्तुओं पर लिखनेवाले या नेताओं को देखकर उनके साथ सेल्फी लेनेवाले एजेन्ट नहीं।
सच्चाई यहीं है कि भाजपा को एक-एक सीट के लिए संघर्ष करने की जरुरत हैं, शून्य से प्रारम्भ करने की जरुरत है, क्योंकि आप अपनी बुनियाद खो चुके हैं, सत्ता की सनक पर जो भीड़ लाने की कवायद आपलोगों ने शुरु की है, लोकसभा चुनाव के दौरान आप उस भीड़ को भी देखना भूल जाइयेगा, क्योंकि भाजपा के लिए झारखण्ड में महागठबंधन ने ऐसी स्वेटर बुन दी है कि उसकी गरमाहट में, आपके पार्टी की सारी छटपटाहट निकल जायेगी और उसमें महागठबंधन को फायदा कोई दुसरा नहीं पहुंचायेगा, बल्कि आपके ही पार्टी के लोग, आप ही के पार्टी के कार्यकर्ता, इसे गांठ बांधकर रख लीजिये।