अपनी बात

केन्द्र में मोदी और UP में SP-BSP की जोड़ी ने किया विवश, बहन प्रियंका के शरण में राहुल भाई

भाई पार्टी आपकी है, आप किसको राष्ट्रीय अध्यक्ष बनायेंगे? किसको महासचिव बनायेंगे? उससे हमें या और किसी को क्या लेना देना? आप बनाते रहिये, पर जनता को बेवकूफ बनाने का जो काम, आप या आपके जैसी अन्य पार्टियां करती है, वो आम जनता को तनिक पसन्द नहीं। आज की घटना, जिस प्रियंका वाड्रा को प्रियंका गांधी बनाकर कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बना दिया गया और उत्तर प्रदेश तथा ईस्ट की जिम्मेवारी दी गई, ऐसा नहीं कि लोग कांग्रेस की इस रणनीति को नहीं जानते।

चूंकि लोकसभा चुनाव 2019 की महफिल सज चुकी है, सोनिया गांधी ही नहीं, बल्कि कांग्रेस के अनेक दिग्गज इस बात को जानते है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी में वह कूबत नहीं, जो कांग्रेस को भारी बहुमत दिला दें, वह भी तब जब एक ओर मोदी हो तो दूसरी ओर सर्वाधिक लोकसभा की सीट देनेवाली यूपी में अखिलेश और मायावती ने मिलकर कांग्रेस को ठेंगा दिखा दिया हो, ऐसे में अब कांग्रेस क्या करें, तो वह इस बार प्रियंका के ग्लैमर का सहारा लिया और उसे कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बनाकर चुनावी मैदान में उतार दिया।

जो लोग राजनीति में रुचि रखते हैं, वे सभी इस बात को जानते हैं कि कभी कांग्रेस और उनके दिग्गज नेता यहां तक की सोनिया भी कहा करती थी कि प्रियंका राजनीति में नहीं आयेगी, राहुल ही कांग्रेस को देखेंगे, पर जिन्हें राजनीति की एबीसीडी भी आती है, उन्हें पता था कि देर-सबेर कांग्रेस की डूबती नैया को पार कराने के लिए कांग्रेस और सोनिया गांधी, प्रियंका वाड्रा को प्रियंका गांधी बनाकर, चुनावी मैदान में निश्चित ही उतारेगी, भले ही उसमें कितना भी देर क्यों लगे?

आज जो भारत की राजनीति हैं, अगर केन्द्र की बात करें तो ले-देकर मोदी की ओर ही घुमती नजर आती है, और यूपी की बात करें तो अखिलेश और मायावती के गठबंधन ने मोदी और राहुल दोनों की हवा टाइट कर दी है, बिहार में महागठबंधन भी कांग्रेस को ज्यादा भाव देने की स्थिति में नहीं है, झारखण्ड में छोटी-छोटी पार्टियां भी कांग्रेस को आँख दिखा रही है, ऐसे में कांग्रेस क्या करें? वह प्रियंका को चुनावी मैदान में इस बार उतारकर दांव खेल चुकी है, अगर प्रियंका का ग्लैमर चला तो लीजिये कांग्रेस को जीवनदान मिल गया और नहीं तो बेडा गर्क।

ऐसे भी कांग्रेसियों ने प्रियंका वाड्रा को, इन्दिरा गांधी के रुप में चुनावी मैदान में उतारा, क्योंकि कांग्रेस जानती है कि सोनिया गांधी के रुप में उतारने पर कांग्रेस को झटका भी लग सकता है, कांग्रेस से सटे पत्रकारों को भी घी लगाकर रोटियां पड़ोसी गई हैं, ताकि वे इस खबर को बेहतर ढंग से लगा सकें, और लोगों ने लगाया भी है, हेडिंग ही दे दी है – अब दहन करेगी मोदी की लंका, बहन प्रियंका, बहन प्रियंका। पर इन पत्रकारों को ये नहीं पता कि अभी राजीव गांधी के शासन समाप्त होने के बाद, देश की राजनीति में काफी बदलाव आये हैं, अब देश की जनता अपने नेता में जाति देखती है।

यह सच्चाई है, जो दलित वर्ग कांग्रेस का वोट हुआ करता था, अब उसे मायावती और रामविलास पासवान में नूर नजर आता है, जो सवर्ण कभी कांग्रेस के वोट हुआ करते थे, वे अब भाजपा के आगे नतमस्तक हो गये हैं, जो मुसलमान कांग्रेस को किसी भी हालत में नहीं छोड़ना चाहते थे, एक तरह से वोट बैंक कहिये, वे अब यह देखते है कि चुनाव में मोदी और भाजपा को कौन हरा रहा हैं, यानी जो मोदी और भाजपा को हरायेगा, वोट उसी को जायेगा के पैटर्न पर वे वोट करते हैं, ऐसी स्थिति में कांग्रेस के खोए वोटरों को अपने पक्ष में करना मजाक बात नहीं हैं, क्योंकि भाजपा और अन्य छोटे-छोटे दल तथा क्षेत्रीय दल इतने खुद को मजबूत कर लिये है कि कांग्रेस का ऐसी हालत में फिर से मजबूत होना फिलहाल संभव सा नहीं दीखता।

ऐसे भी कांग्रेस इतनी बदनाम हो चुकी है, कि उसकी बदनामी है, उसके नेता के चुनावी मैदान में पहुंचने के पहले आ धमकती है, हालांकि प्रियंका वाड्रा पर कोई दाग नहीं, पर प्रियंका वाड्रा के पति राबर्ट वाड्रा पर इतने दाग है कि वो प्रियंका के ग्लैमर को प्रभावित करने के लिए काफी है। इधर देख रहा हूं कि जब से प्रियंका वाड्रा के कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव बनने की खबर आई है, कांग्रेस से ज्यादा दूसरे दल के लोग खूब उछल रहे हैं, और उनके कशीदे पढ़ रहे हैं, हो सकता है कि प्रियंका का प्रभाव ये पड़ें कि कशीदे पढ़नेवाले ऐसे चिरकुट नेता, कांग्रेस की राह पकड़ें, पर ऐसे लोग वोट नहीं दिलाते, बल्कि अपनी जगह तलाशते हैं, कांग्रेस को समझना चाहिए।

प्रियंका वाड्रा के मैदान में आने से इतना तय हो गया कि लोकसभा चुनाव जो दो तरफा दीख रहा था, अब इसमें कोई दो मत नहीं कि अब तीन तरफा हो जायेगा, जिसमें एक ओर भाजपा गठबंधन होगा तो दूसरी ओर महागठबंधन और तीसरी और कांग्रेस गठबंधन। वाममोर्चा तो एक तरह से पूरे देश में दम ही तोड़ चुकी है, कभी बंगाल और त्रिपुरा में दिखनेवाली वाममोर्चा पूरी तरह समाप्त हो गई, और ले-देकर केरल में थोड़ी बहुत बची है।

ऐसे भी कांग्रेसियों को प्रियंका वाड्रा को लेकर ज्यादा खुशफहमी नहीं दिखाना चाहिए और कोई ऐसे-वैसे नारे भी नहीं निकालने चाहिए, नहीं तो नारे निकालने में भाजपा वाले और उनके सहयोगी गठबंधन भी कम नहीं, क्योंकि जब मोदी के साम्राज्य को जब आप रावण की लंका बतायेंगे तो फिर आप कहां जायेंगे, ये झेलने के लिए तैयार रहे, अच्छा रहेगा, मर्यादा में सभी रहे और एक दूसरे का सम्मान करें, प्रियंका वाड्रा राजनीति में कूद गई, अब देखना है कि प्रियंका वाड्रा का लाभ राहुल कितना उठाते हैं? ऐसे भाजपा का आइटी सेल प्रियंका वाड्रा की नई इंट्री और उसके काट के लिए लगता है कि पहले से ही सक्रिय दीख रही है, क्योंकि उनकी ओर से भी जबर्दस्त प्रहार प्रारम्भ हो गया है।