नौ माह में बजट का 50% भी खर्च न कर पानेवाले CM रघुवर ने जनता के हाथों में थमाया झुनझुना
जो सरकार विकास योजनाओं की राशि नौ महीने में 50 प्रतिशत भी खर्च नहीं कर पाती हो, वह कितना भी सुंदर बजट क्यों न पेश कर ले। जनता जानती है कि ये सब हवा-हवाई है, इसका सच्चाई से कुछ भी लेना देना नहीं। 21 जनवरी 2019 को राज्य सरकार स्वयं विधानसभा में बजट पूर्व आर्थिक सर्वेक्षण पेश कर रही थी, जिसमें सरकार स्वयं स्वीकार कर रही थी कि कृषि, वानिकी, व मत्स्य के क्षेत्र में विकास की गति बहुत ही धीमी है, बिजली, गैस और जलापूर्ति के क्षेत्र में भी प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा।
जरा देखिये योजना विकास विभाग का आंकड़ा क्या कहता है? यह कह रहा है कि दिसम्बर तक राज्य सरकार के विभिन्न विभागों ने तय लक्ष्य का 44.05 प्रतिशत राशि ही खर्च की है, जबकि किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि राज्य सरकार ने 2018-19 के बजट में विकास योजनाओं पर खर्च करने के लिए 46503 करोड़ बजट का प्रावधान किया था। दिसम्बर 2018 तक सभी विभागों ने मात्र 20482.51 करोड़ रुपये की खर्च किये।
सरकारी आंकड़े को माने तो जिस किसानों के विकास की सरकार ढोल पीटती है, उस कृषि विभाग को खर्च के लिए 2575 करोड़ रुपये के बजटीय प्रावधान थे, पर इस सरकार ने दिसम्बर तक केवल 375.66 करोड़ ही खर्च किये, जो खर्च की रकम मात्र 14.04 प्रतिशत ही है। अब जो सरकार खुद के द्वारा बनाये गये बजट की राशि नौ महीने में भी ठीक से नहीं खर्च कर पाये, वैसी सरकार को आप दस में से कितने नंबर देंगे, आप स्वयं विचार कर लें।
अब जरा इस वित्तीय वर्ष को देख लीजिये, चूंकि सभी जानते है, यह चुनावी वर्ष है, लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव दोनों इसी साल हो जाने हैं। गौर से देखा जाये तो राज्य के होनहार मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा पेश किया गया, यह अंतिम बजट है।
इस सरकार ने वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए 85,429 करोड़ रुपये का बजट पेश किया है। नये-नये शिगुफे छोड़े गये हैं। बोला गया है कि मोहल्ला क्लिनिक शुरु किया जायेगा। कमजोर वर्गों का पेंशन 600 रुपये से बढ़ाकर 1000 रुपये किया जायेगा। साइकिल योजना की राशि तीन हजार से बढ़ाकर साढ़े तीन हजार की जायेगी। मुख्यमंत्री सुकन्या योजना के तहत बालिकाओं को सात चरणों में 40,000 रुपये दिये जायेंगे। सीएम आशीर्वाद योजना के तहत किसानों को प्रति एकड़ वह भी सालाना पांच हजार रुपये दिया जायेगा।
और भी ऐसे कई योजनाओं के ढोल पीटे गये हैं, पर क्या सचमुच यह सरकार खुद के द्वारा पेश किये गये बजट को जमीन पर उतारने के लिए वचनवद्ध है या जनता को उल्लू बनाने में लगी है। याद करिये, इसी सरकार ने कभी डोभा बनाओ योजना शुरु किया था, जिसको लेकर तरह-तरह के दावे किये गये थे, किसी ने कहा कि राज्य में छह लाख डोभा बनाये गये, किसी ने कहा कि पांच लाख डोभा बनाये गये। हर जगह मनरेगा के तहत डोभा बनाने की बात कही गई, पर समाचारों में यह भी आया कि कई जगहों पर मनरेगा की जगह ठेकेदारों के पास पड़े जेसीबी मशीनों से डोभा बनाने का काम लिया गया।
आनन-फानन में इस काम को कराने के लिए बीडीओ पर दबाव डाला गया। खुद सदन में मुख्यमंत्री ने एक सलोगन दे डाला – खेत का पानी खेत में, गांव का पानी गांव में, शहर का पानी शहर में, पर सच्चाई क्या है? मुख्यमंत्री के इस डोभा अभियान की हवा निकल गई, जरा क्या मुख्यमंत्री बता सकते है कि वर्तमान में पूरे राज्य में जो 6 लाख डोभा बनाये गये, उनमें से कितने डोभा अस्तित्व में हैं, हद तो ये हो गई कितने जगहों पर डोभा में पानी रहने के कारण कई बच्चों की मौत की खबर भी आ गई, ऐसे में डोभा तो आज भी नजर आने चाहिए, पर सच्चाई सब को मालूम है कि राज्य मे कितने डोभा बने और उसका किसने कितना लाभ लिया?
राज्य सरकार कहती है कि वह एसइसीसी 2011 की सूची में शामिल परिवार एवं अंत्योदय कार्डधारकों को बेटी के जन्म पर पांच हजार रुपये, पहली कक्षा में दाखिले पर पांच हजार, पांचवी कक्षा पास करने पर पांच हजार रुपये, आठवीं कक्षा पास करने पर पांच हजार रुपये, दसवीं कक्षा पास करने पर पांच हजार रुपये, 12 वीं कक्षा पास करने पर पांच हजार रुपये और 18 साल की आयु पर दस हजार रुपये देगी। बेटी की शादी के लिए मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत अलग से 30 हजार रुपये दिये जायेंगे।
अब सरकार ही बताये कि आज से 18 साल के बाद जो कह रही है कि तीस हजार रुपये देंगे, उस तीस हजार का 18 साल के बाद क्या भैल्यू होगा? क्या उस लड़की की शादी उक्त 30 हजार रुपये से हो जायेगी? सबसे बड़ा सवाल यह है, या जो चैनल व अखबारवाले इस घोषणा का महिमामंडन कर रहे हैं, वे ही बताए कि 2037-38 में उन्हें ही तीस हजार रुपये दे दिये जाये और कहा जाये कि आप अपनी बेटी की शादी इतने में संपन्न करा लें, वे क्या करा लेंगे, संभव है।
अच्छा तो ये रहता कि सरकार बाल शिक्षा अधिकार के तहत, जो विभिन्न अधिकार बच्चों को दिये गये हैं, उन्हें लागू करवा पाती, पर सरकार वो काम तो करा नहीं पाती, जैसे विभिन्न निजी विद्यालयों में 25 प्रतिशत बीपीएल परिवारों के बच्चों के नामांकन होने हैं, क्या सरकार दावे के साथ यह कह सकती है कि वहां बीपीएल परिवारों के 25 प्रतिशत बच्चों के नामांकन हो रहे हैं, अगर नहीं तो फिर इस प्रकार के बजटीय प्रावधान से किसका भला होना है, अरे बच्चों को ही इतने ताकतवर क्यों नहीं बना देते, उन बीपीएल परिवारों को ही इतने ताकतवर क्यों नहीं बना देते, कि वे अपने लिए इस प्रकार की भीखवाली योजनाओं को लेने से ही इनकार कर दें।
जरा देखिये, इस रघुवर सरकार को वह कह रही है कि वह किसानों को प्रति एकड़ सालाना पांच हजार रुपये देगी? जबकि सरकार को पता ही नहीं कि राज्य में कितने किसानों के पास कितनी एकड़ जमीन है? अरे जब आपको पता ही नहीं कि आपके पास कितने किसानों के पास कितनी जमीने हैं? तो आपने ये योजना कैसे लागू कर दी? राज्य में तो ऐसे कई किसान है, जिनकी पुरी जिंदगी खेती में निकल गई पर उनके पास एक एकड़ क्या? एक कट्ठा जमीन तक नहीं, ऐसे में आप किस किसान का भला कर रहे हो, ये सवाल तो पत्रकारों को भी पूछना चाहिए, पर पत्रकार पूछ क्या रहे हैं कि पत्रकारों के लिए पेंशन योजना का क्या हुआ?
जबकि सरकार केवल इतना कर दें कि जिन-जिन चैनलों या अखबारों में जो पत्रकार काम कर रहे हैं, केवल ये सुनिश्चित करा दें, जो कि उसके हाथ में भी है कि क्या अखबारों या चैनलों में काम कर रहे लोगों को श्रम कानूनों के तहत उचित पारिश्रमिक या सुविधाएं मिल रही हैं, तो पत्रकारों की सारी समस्याएं ही खत्म हो जाये, पर न तो पत्रकार इस प्रकार के सवाल पूछेंगे और न ही उन्हें इसका जवाब या समस्याओं का हल चाहिए, वे ऐसे सवाल पूछेंगे, जिसमें उनकी नौकरी भी बच जाये, प्रबंधन की चाटुकारिता भी हो जाये, और सरकार तथा प्रबंधन के मधुर रिश्तों में खटास भी न पड़ें, जहां ऐसी सोच हो, वहां न तो पत्रकारों को फायदा होता है, और न ही समाज को।
चलिए सरकार ने फिर आपको बजटरुपी झुनझुना थमा दिया है, साल भर तक बजाते रहिये और अगली नई सरकार का इंतजार करिये, लेकिन ख्याल रखियेगा, अगली सरकार में रघुवर दास बजट पेश करते नजर नहीं आयेंगे, उस वक्त कोई दूसरा आपके हाथ में झुनझुना बजाने के लिए तैयार बैठा होगा, तब तक के लिए झुनझुना बजाते रहिये और मुस्कुराते रहिये।