अपनी बात

बात में दम है, जब न्यू पेंशन स्कीम इतना ही बढ़िया है तो इसका लाभ MP और MLA क्यों नहीं लेते?

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 2004 में देश के करोड़ों केन्द्रीय व राजकीय कर्मचारियों को एनपीएस (न्यू पेंशन स्कीम) के नाम का ऐसा जख्म दिया हैं कि उस जख्म से छुटकारा पाने के लिए करोड़ों अधिकारी-कर्मचारी सड़कों पर उतर रहे हैं, संघर्ष कर रहे हैं, उत्तर प्रदेश में तो वहां के राजकीय कर्मचारी सीधे हड़ताल पर उतर गये और जब राजकीय मुद्रणालय कर्मचारियों के हड़ताल के कारण इलाहाबाद हाईकोर्ट की कॉज लिस्ट नहीं छप पाई तो न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति राजेन्द्र कुमार की पीठ ने स्वतः संज्ञान लेते हुए इस पर जनहित याचिका कायम कर दी।

इस जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी कर दी और कहा जब सरकार करोड़ों रुपये की लूट-खसोटवाली योजनाएं लागू करने में नहीं हिचकती तो फिर जिन सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों ने 30-35 सालों तक सेवाएं दी, उन्हें पेंशन देने में क्या दिक्कत आ रही है? आखिर सरकार न्यूनतम पेंशन देने में भी क्यों हिचक रही है? कोर्ट ने तो कल यहां तक कह दिया सांसदों और विधायकों को बिना किसी नौकरी या काम के पेंशन दी जा रही है। ऐसे लोग वकालत या दूसरे व्यवसाय भी साथ में कर रहे हैं, जबकि सरकार को लंबी सेवा देनेवाले कर्मचारियों को पेंशन नहीं दी जा रही है।

कोर्ट ने ओल्ड पेंशन स्कीम की लड़ाई लड़ रहे नेताओं को कहा कि वे अपनी शिकायतें तथा नई पेंशन स्कीम की खामियों के बारे में दस दिनों के अंदर ब्योरे के साथ अदालत के समक्ष प्रस्तुत करें, जबकि उत्तर प्रदेश सरकार को इस पर विचार कर 25 फरवरी तक हलफनामा देने को कहा है।

कोर्ट ने पुरानी पेंशन स्कीम की मांग को लेकर हड़ताल पर गये, कर्मचारियों के हड़ताल पर टिप्पणी करते हुए कहा कि कर्मचारियों के हड़ताल से सरकार को नहीं, बल्कि जनता को नुकसान होता हैं। अदालत ने यह भी कहा कि बिना कर्मचारियों की सहमति के सरकार उनके अंशदान शेयर में कैसे लगा सकती है?, क्या सरकार असंतुष्ट कर्मचारियों से काम ले सकती है? इसी बीच इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा पुरानी पेंशन स्कीम पर स्वतः संज्ञान ले लिये जाने से पुरानी पेंशन स्कीम की लड़ाई लड़ रहे अधिकारियों-कर्मचारियों को एक नई उम्मीद जगी हैं।

आश्चर्य इस बात की है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने खुद तथा अपने जैसे भूत एवं भविष्य के सांसदों-विधायकों के लिए तो ओल्ड पेंशन स्कीम की व्यवस्था कर ली पर देश के करोड़ों कर्मचारियों-अधिकारियों को न्यू पेंशन स्कीम में डालकर, उनके जीवन से ही खेलने का प्रबंध कर दिया, जिसकी सर्वत्र आलोचना हो रही है, अटल बिहारी वाजपेयी के इस ओल्ड पेंशन स्कीम बंद करने की नीति की उस वक्त बंगाल व त्रिपुरा की वामपंथी सरकार ने कड़ी आलोचना की थी, तथा बंगाल तथा त्रिपुरा में ओल्ड पेंशन स्कीम वहां के अधिकारियों व कर्मचारियों पर जारी रखने का फैसला किया था।

जबकि जहां भाजपा-कांग्रेस शासित राज्य रहे, वहां न्यू पेंशन स्कीम लागू कर दिया गया, और वहां के नेता स्वयं के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम लागू कर दिया, यानी वे काम भी नहीं करेंगे, और मनमुताबिक पेंशन लेंगे, और जो तीस-पैतीस साल सेवा में लगा दिया, वह जब बूढ़ा होगा तो इन नेताओं के रहमोकरम पर जिंदा रहेंगे। वाह रे नेता, वाह रे वाजपेयी। अब तो सब की नजर इलाहाबाद हाई कोर्ट पर चली गई है कि वह क्या इस पर आदेश देती है? लेकिन इतना तो तय है कि ओल्ड पेंशन स्कीम की लड़ाई लड़ रहे लोगों को अंधेरे के बीच में इलाहाबाद हाई कोर्ट के रुप में प्रकाश दिखाई पड़ रहा हैं, उन्हें लगता है कि उन्हें न्याय मिलेगा।