देशभक्ति के नाम पर कैंडल जलानेवालों, टीवी पर चिल्लानेवालों, शहीद जवानों के परिवारों को पेंशन तो दिलवा दो
ओ टीवी पर चिल्लानेवालों एंकरों, ओ देशभक्ति का ढोंग करनेवालों राजनीतिक दलों के नेताओं, ओ अखबारों व चैनलों में आने के लिए बेकरार रहनेवाले छपास की बीमारी से पीड़ित कैंडल जलानेवालों, ओ पाकिस्तान को सबक सिखाने की मांग करनेवालों, थोड़ा जो आतंकियों से जो लड़ रहे हैं, जो भारत की सीमा की रक्षा में डटे हैं, जो विपरीत परिस्थितियों में भी अपने जान की परवाह नहीं करते हुए, हमारे लिए लड़ रहे हैं, मर रहे हैं, उनकी और उनके परिवार की बेहतरी के लिए कुछ तो करो।
क्या तुम्हें पता नहीं कि भारत रत्न से सम्मानित पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और उनके खासमखास वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा ने सीमा सुरक्षा बल, सीआरपीएफ, सशस्त्र सीमा बल, भारत–तिब्बत सीमा पुलिस, असम राइफल्स आदि के जवानों के भविष्य पर कुठाराघात करते हुए पुरानी पेंशन योजना समाप्त कर दी, पर इन नेताओं ने अपने और अपने जैसे सांसदों और विधायकों के लिए पुरानी पेंशन योजना लागू रखी, यानी जो देश के लिए मरें, जान गंवा दें, उसे पेंशन नहीं और जो एक दिन के लिए भी विधायक या सांसद बन गया, उसे और उसके परिवारों के लिए जीवन भर पेंशन। क्या ये शर्म की बात नहीं।
जरा सोचो, जो 44 जवान पुलवामा में शहीद हुए, उनके परिवारों को क्या मिला? उनके बच्चों और परिवारों का क्या भविष्य हैं? ये जवान तो हर तरफ से मर रहे हैं, एक तरफ चीन और पाकिस्तान तथा प्रकृति इन्हें मार रही हैं तो दूसरी ओर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा शुरु की गई 1 जनवरी 2004 की वह पुरानी पेंशन नीति समाप्त करने की घोषणा, इन्हें जीने नहीं दे रही।
यह कैसा देश हैं? जहां का प्रधानमंत्री अपने लिए विशेष पेंशन की व्यवस्था करवाता हैं तथा जो देश की सीमाओं की रक्षा कर रहा हैं, उसका पेंशन ही समाप्त कर देता हैं, और इसमें सहयोग देती हैं, वह सारी पार्टियां जो इसका उन दिनों समर्थन की, जिस दिन से यह लागू हुआ। आश्चर्य की बात है, कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार जाने के बाद, कांग्रेस दस वर्षों तक शासन की, इस सरकार ने भी इन जवानों के साथ दगा किया तथा अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा प्रारंभ की गई इस योजना को समाप्त नहीं किया, बल्कि इसे बरकरार रखा।
जबकि यहीं कांग्रेस और उसकी राज्यों की सरकारें भाजपाई नेताओं के नाम पर शुरु की गई योजनाओं को सत्ता में आते ही बदलने का काम शुरु कर दिया, यानी जिससे देश का भला हो, उस काम को शुरु करने–कराने में कांग्रेस को भी बुखार लगता हैं, भाजपा का तो कहना ही नहीं, उसकी देशभक्ति तो साफ दीख रही हैं, तभी तो मर रहे जवान को न तो शहीद का दर्जा मिल रहा और न पेंशन की सुविधा।
हमें लगता है कि इस देश में शायद ही कोई केन्द्रीयकर्मी होगा जो अटल बिहारी वाजपेयी को इस कृत्य के लिए माफ करने की सोचता भी होगा, पूरे देश में पुरानी पेंशन योजना के लिए चल रहा संघर्ष उसकी बानगी है, और हमें लगता है कि यह उनका अधिकार है।
कमाल की बात है कि जवानों और देशभक्ति के नाम पर राजनीति करनेवाले, और चैनल पर चिल्लानेवाले इन दिनों खुब पाकिस्तान को सबक सिखाने की बात कर रहे हैं, पर यहीं जवान जब अपने हक की बातों को लेकर दिल्ली के जंतर–मंतर पर पिछले 13 दिसम्बर 2018 को भारी संख्या में एकत्रित हुए तो किसी ने उनकी नहीं सुनी। इन जवानों का संघर्ष क्या गलत था, इन्होंने यहीं तो कहा था कि जैसे सेना के जवान शहीद हो रहे हैं, उसी तरह वे भी तो शहीद हो रहे हैं, तो ऐसे में उन्हें पेंशन तथा अन्य योजनाओं का लाभ देने में केन्द्र सरकार को क्या जाता है।
आप लाख अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न दे दीजिये, पर यकीन मानिये, जिनके घरों ने अपने बेटे खोएं हैं, वह परिवार शायद ही अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न मानता होगा, क्योंकि उसे पता है कि अटल बिहारी वाजपेयी ने 1 जनवरी 2004 को कौन सा तीर उनके दिल में चुभोया है, जिसका दर्द वीरगति प्राप्त सैनिकों के परिवारों को जिन्दगी भर सालता रहता हैं। आजकल तो पूरे देश में ये चर्चा का विषय हैं कि वाजपेयी ने खुद और अपने जैसे सांसदों और विधायकों तथा उनके परिवारों के लिए तो खुब किया पर अर्द्ध सैनिक बलों के जवानों और उनके परिवारों को सदा के लिए बर्बाद करके छोड़ दिया।