जनता का संघर्ष रंग लाया, DC रेललाइन पर रेल सेवा बहाल, जनता ने भाजपाइयों को नहीं दिया श्रेय
संघर्ष रंग लाया है, कहा भी जाता है – मेहनत कभी जाया नहीं जाता। जो कल तक बोल रहे थे, धनबाद चंद्रपुरा रेललाइन पर अब रेल सेवा कभी बहाल नहीं हो सकती, वे भाजपा नेता आज कतरासगढ़ स्टेशन पर बनावटी सा मुंह लेकर हाथों में हरा झंडा लेकर धनबाद-अल्लापुज्जा ट्रेन को सिग्नल देने का काम कर रहे थे, पर कतरासगढ़ स्टेशन पर बड़ी संख्या में आई जनता को इन नेताओं से कोई मतलब नहीं, वे तो हाथों में तिरंगा लेकर, अपनी खुशियों का आज इजहार कर रहे थे।
आंखों से छलकते आंसू और आज से ट्रेन चलने की खुशी ने उनके सारे गम को भूला दिये थे, क्योंकि जिस दिन से इस रेललाइन पर रेलसेवा ठप की गई थी, इनकी रोजी-रोटी एक तरह से छीन गई थी, कतरास से धनबाद जाना मुश्किलों का सफर हो चला था, पर आज वैसा नहीं हैं।
कतरासगढ़ स्टेशन पर एक भाजपा का विधायक का होर्डिंग लगा हुआ है, हालांकि किसी भी स्टेशन पर जब आप होर्डिंग लगाते हैं, तो उसके लिए रेलवे के कमर्शियल डिपार्टमेंट से परमिशन लेना जरुरी होता है, पर चूंकि राज्य और केन्द्र दोनों में भाजपा है, शायद इसी का फायदा उक्त भाजपा विधायक ने उठाया, पर जनाक्रोश तो जनाक्रोश हैं, पता नहीं किसने उक्त होर्डिंग पर कालिख पोत दी, जिसको लेकर भाजपा कार्यकर्ताओं और उक्त विधायक के समर्थकों में आक्रोश साफ दिखा।
यहीं नहीं जब गिरिडीह के भाजपा सांसद भाषण दे रहे थे, तब बाघमारा के भाजपा विधायक के गुर्गों ने उनके भाषण के दौरान हंगामा करने की कोशिश की, पर इन सबसे अलग भाजपा सांसद रवीन्द्र पांडे ने अपना भाषण देना जारी रखा, यानी इस धनबाद-चंद्रपुरा रेललाइन पर रेलसेवा बहाल को लेकर, श्रेय कौन ले, इसके लिए भाजपा के अंदर ही कई नेताओं में खींचतान चलती रही, जबकि सामान्य जनता का कहना है कि इस धनबाद-चंद्रपुरा रेललाइन पर रेलसेवा बहाल का श्रेय यहां की जनता का है, जिसने अपना संघर्ष जारी रखा, बिना किसी रुकावट के।
यहीं नही जागो संस्था के राकेश रंजन उर्फ चुन्ना यादव तथा इस संस्था से जुड़े अन्य लोगों ने कतरास से लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर पर जाकर, अपनी समस्याएं रखी, भाजपा छोड़ विभिन्न दलों के नेताओं ने भी जोरदार ढंग से इस आँदोलन में भाग लिया, जिसमें झाविमो के बाबू लाल मरांडी और कांग्रेस के ओपी लाल, जलेश्वर महतो आदि तथा वरिष्ठ समाजसेवी विजय झा के योगदान को भूलाया नहीं जा सकता।
आज बड़ी संख्या में आम जनता का कतरासगढ़ स्टेशन पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराना इस बात का घोतक था, कि जनता अपनी समस्याओं को लेकर कितनी जागरुक हैं, आज उसे विश्वास हो चला था कि असंभव भी संभव हो सकता हैं, अगर लड़ने/संघर्ष करने की कूबत हो, कुछ ने तो भाजपा नेताओं पर टिप्पणी भी की, कि जब वे संघर्ष कर रहे थे, तब इनमें से किसी नेता का अता-पता नहीं था।
और आज देखिये तो ये श्रेय लेने के लिए हाय-तौबा मचा रहे हैं, अपना कमल निशान का झंडा लेकर ढो रहे हैं, पर हम तो जनता ठहरे, हमारा काम तो तिरंगा से ही निकल जाता है, इसलिए जनता के हाथों में आज भी तिरंगा था, आंदोलन के समय भी तिरंगा था और आगे भी तिरंगा ही रहेगा, इससे ज्यादा और न इससे कम।