CM रघुवर अपनी शानो-शौकत पर उड़ायेंगे गरीब जनता के पैसे, खर्च करेंगे फूल-पत्ती पर 44 लाख और बैडमिंटन फर्श पर साढ़े सात लाख
वो झारखण्ड का मुख्यमंत्री है, वो खुद को गरीब मजदूर का बेटा बताते नहीं थकता, पर जरा देखिये इस कथित गरीब मजदूर के बेटे की हरकत, कैसे वो अपनी शानो–शौकत पर झारखण्ड के गरीबों के लाखों–करोड़ों रुपयों को पानी की तरह बहा रहा हैं, और उसके इस झूठी शानो–शौकत पर राज्य के सभी प्रमुख विभाग दिल खोलकर अपनी राशि लूटा रहे हैं, वह भी वह राशि जो राज्य की भोली–भाली गरीब जनता की भलाई पर खर्च होने हैं।
कुछ दिन पहले की बात है, राज्य के एक प्रमुख अखबार में झारखण्ड सरकार के पर्यटन, कला–संस्कृति, खेल एवं युवा मामले विभाग सह स्पोर्टस ऑथोरिटी ऑफ झारखण्ड ने शार्ट टेंडर नोटिस विज्ञापन निकाला। जिसमें स्पष्ट लिखा था कि कांके रोड स्थित मुख्यमंत्री आवास में बैडमिंटन शेड में लकड़ी का फर्श बनाने के लिए, जिसकी प्राक्कलित राशि 7,43,750 रुपये हैं, आवेदन पत्र आमंत्रित किये जाते हैं।
अब जरा ये बताइये कि जो मुख्यमंत्री खुद को मजदूर परिवार का बताता है, और जो अपने महल से एक किलोमीटर चलकर या कारों के काफिले के साथ मोराबादी स्टेडियम तक नहीं जा सकता, वह अपने दरबारियों के साथ लाखों खर्च कर महल में ही खेलने की तमन्ना रख, जनता के पैसों को अपनी शानो–शौकत में फूंक डालता है, वहां की जनता भूखों न मरेगी तो क्या करेगी?
अब दूसरा विज्ञापन देखिये, इस विज्ञापन को कार्यपालक अभियंता का कार्यालय, भवन निर्माण विभाग ने निकाला है, ये अति अल्पकालीन निविदा है, जिसका कोटेशन आमंत्रण सूचना संख्या 69/2018-19 हैं, जिसमें कांके रोड स्थित मुख्यमंत्री आवास परिसर में केवल प्लान्टेशन और मैंन्टेनेन्स में, वह भी सिर्फ एक साल के लिए 4405550 रुपये, सीएम सचिवालय कांके रोड के लिए 1380900 रुपये, फ्लावर बूके की आपूर्ति के लिए सीएम सचिवालय में 932400 और सीएम रेसिडेंसियल कार्यालय में 1610300 रुपये की व्यवस्था कर दी गई है।
अब दिमाग पर जोर डालिये, जिस गरीब राज्य का मुख्यमंत्री केवल बैडमिंटन का फर्श बनाने के लिए करीब साढ़े सात लाख और अपने आवास में केवल फूल–पत्ती के लगाने और उनके रख रखाव पर मात्र एक साल में 44 लाख फूंकने की व्यवस्था कर लेता हो, वह भला हमारा मुख्यमंत्री कैसे हो सकता है, आखिर ये दिमाग कौन देता है? वह कौन कनफूंकवां हैं? जो एक साल में सिर्फ मुख्यमंत्री आवास में 44 लाख केवल फूल–पत्ती में फूंक देने की व्यवस्था करा देता हैं? बाकी आवासीय कार्यालय की तो बात ही अलग हैं, ये भ्रष्टाचार नहीं तो और क्या है?
अगर पांच साल से इसकी कलकुलेशन कर लें तो समझ लीजिये, किसने कितना केवल फूल–पत्ती के नाम पर कमा लिया? ये तो साफ–साफ भ्रष्टाचार हैं, पर वो कहां जाता हैं वो करें तो सदाचार, और आप सत्य कार्य भी करें तो भ्रष्टाचार। चलिए यहीं हैं, सबका साथ, सबका विकास यानी अपना विकास। आप और हम कर ही क्या सकते हैं? चार वर्ष झेल चुके हैं और कुछ महीने झेल लीजिये।