हमें जीने दो, हमें देवी न बनाओ, हमें इंसान समझो, हमें भी गलती करने दो और उन गलतियों से सीखने दो।
(अन्नी अमृता जमशेदपुर में रहती हैं, वरिष्ठ पत्रकार है, तेज तर्रार है, ईमानदार है, उनकी पत्रकारिता पर कोई सवाल भी नहीं उठा सकता, आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर वो अपने फेसबुक वॉल पर कुछ लिखी है, हमें लगता कि सभी को पढ़ना चाहिए कि एक पत्रकार के रुप में, एक महिला, महिलाओं के बारे में क्या सोचती है? ऐसे तो पूरे राज्य में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की धूम है।
राज्य के प्रमुख नगरों जैसे रांची, जमशेदपुर व धनबाद में निजी स्तर पर कई कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। खुशी इस बात की है, महिलाओं ने 8 मार्च को जानने की कोशिश की हैं, इसके महत्व को जानने की कोशिश की है, तथा वह आज के दिन के महत्व को समझ रही है, खुशी इस बात की भी है कि जिन चीजों पर सरकार का ध्यान नहीं है, जहां कई दलों में महिलाओं को उचित स्थान आज तक नहीं मिला और न ही उन्हें सम्मान दिया जाता हैं।
आज धनबाद में देखने को मिला, कि कई संभ्रांत परिवार के घरों की महिलाओं ने अमीरी–गरीबी की सारी दीवारें ही तोड़ दी और मिलकर सड़कों पर उतर, अपनी आवाज बुलंद की, कि वे महिलाएं हैं और किसी से कम नहीं, उनकी यहीं सोच बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर को रेखांकित कर रही है, इसके लिए डा. नेहा झा व डा. शिवानी झा को विशेष रुप से धन्यवाद देने का भी हमें मन कर रहा है, क्योंकि उन्होंने धनबाद के एक छोटे से इलाके कतरास में वह काम किया, जिसे देख सभी प्रसन्नचित्त थे।
सचमुच हम उन सारी महिलाओं को विशेष रुप से बधाई देते हैं, जिन्होंने आज के दिन के महत्व को समझा, और अंत में एक तेज तर्रार महिला पत्रकार अन्नी अमृता के इस आलेख को पढ़ें, हमें पूरा भरोसा है कि आपको कुछ नयापन मिलेगा, आपकी सोच में बदलाव जरुर आयेगा।)
हमें जीने दो। हमें देवी न बनाओ। हमें जीने दो। हमें इंसान समझो। हमें भी गलती करने दो और उन गलतियों से सीखने का अधिकार दो।
हमें बहनजी या सेक्सी की उपाधि में न बांटों। हमें मत बताओ कि क्या पहनना और क्या नहीं पहनना है? हम जो है वही रहने दो। अगर हम मेकअपविहीन हैं तो जबरन मेकअप न थोपवाओ। अगर मेकअप करें या कुछ आकर्षक दिखने की कोशिश करें तो हमें चरित्रहीन न साबित करो।
हम घरेलू हों तो हमें तुच्छ न समझो। हम नौकरी पेशा हों तो हमारे चाल चलन की जासूसी न करो। हमें हमारी करियर की सफलता से न आंकों। स्त्री होना ही अपने आप में बहुत बडी बात है, फिर उस बड़प्पन को नौकरी से जोड़कर घरों को समर्पित स्त्रियों का अपमान न करो।
नारी को नारी के ही रूप में सम्मान करो न कि उसके इंजीनियर या डाक्टर होने के स्वरूप को। पद से जोड़ोगे तो वह एयरक्राफ्ट उड़ाने से लेकर अंतरिक्ष तक उड़ाकर दिखा देगी और दिखा ही रही है। वह सब कुछ कर रही है जो पुरूष कर सकता है।
हमें किसी होड़ में न डालो। हम नारी हैं, हमें नारी ही रहने दो। नारी का विकास, स्त्री पुरूष के बीच किसी प्रकार की होड़ प्रदर्शित करने में नहीं, बल्कि पुरूष का साथ देने में है। वहीं पुरूष और स्त्री का विकास एक दूसरे को पछाड़ने में नहीं बल्कि एक दूसरे का साथ देने में है।
हां अगर स्त्री की इज्जत नहीं कर सकते तो दुर्गा और काली का रूप देखने के लिए भी तैयार रहो। महिषासुर का वास तो सिर्फ भौतिक तल पर नहीं आत्मिक तल पर फैल चुका है, उसे परास्त करना भी आता है। याद रहे कि प्रकृति अन्याय नहीं सहती। वह हिसाब चुका देती है। देखते नहीं कि जितना ही कोख में तुम मार रहे उतना ही आजकल लड़कियां ज्यादा जन्म ले रही है।
जितना ही स्त्री का अधिकार छिनेगा, पुरूषों के हिस्से सुख शांति छिनेगी। देखते नहीं कि घर घर क्लेश है। पूरी दुनिया से अलग तरह के ट्रीटमेंट के बाद स्त्री को जीवनसाथी के रूप में एक इंसान मिलता है, जिस पर वह सारी भड़ास निकालती है और कभी कभी तो अवचेतन की सारी नाराजगी यहीं उड़ेलती है।