चुनाव आते ही अखबारों की हो गई बल्ले-बल्ले, विज्ञापन युद्ध प्रारम्भ, मोदी ने अखबारवालों के चेहरे पर खुशियां बिखेरी
जी हां, अखबारवालों की अब चांदी ही चांदी हैं, जल्द ही चैनलवालों की भी चांदी ही चांदी होगी, क्योंकि अब से कुछ दिन के बाद चुनाव आयोग जल्द ही लोकसभा चुनाव के तिथियों का आगाज करेगा, पर लोकसभा चुनाव के तिथियों के आगाज को भांपते हुए, पीएम नरेन्द्र मोदी ने अखबारवालों पर अपनी कृपा लूटानी शुरु कर दी है।
केन्द्र के सारे विभागों के द्वार अखबारों में विज्ञापनों को प्रकाशित करने के लिए खोल दिये गये है, एक ही दिन में एक विज्ञापन नहीं, बल्कि कई पेजों पर केन्द्र सरकार के विभिन्न विभागों के विभिन्न विज्ञापन नजर आ रहे हैं, 2014 में जो नारा था, ‘सबका साथ, सबका विकास’, अब ये नारा पूरी तरह से गायब है, इस नारे का स्थान ले लिया है ‘नामुकिन अब मुमकिन है’ पर यह भी सच्चाई है कि ‘नामुकिन अब मुमकिन है’ लोगों के जुबान पर नहीं आ पा रहा, हालांकि भाजपा के लोग सब के जुबान पर ये नारा आ जाये, इसके लिए खुब सर पटक रहे हैं, पर सफलता नहीं मिल रही।
इधर अखबारवालों के चेहरे पर बहुत वर्षों के बाद खुशियां नजर आ रही है, कई–कई पेजों पर मिल रहे केन्द्र सरकार के विज्ञापन से वे अति प्रसन्न है, प्रसन्नता का आलम यह है कि इन अखबारों को भी अब पीएम मोदी में नूर नजर आने लगा है, भले ही जनता के जुबान पर ‘नामुकिन अब मुमकिन है’ न आये, पर अखबारों में काम कर रहे लोगों के जुबान पर ‘नामुकिन अब मुमकिन है’ खूब धड़ल्ले से आ रहा है।
विपक्षी पार्टियां प्रचार–प्रसार के लिए पैसे का रोना रो रही है, पर भाजपा के पास लगता है कि पैसों व संसाधनों की कोई कमी नहीं, भाजपा कार्यकर्ता भी खुश है, वे इस बार 400 पार के साथ अभी से मैदान में कूद पड़े हैं, उन्हें लग रहा है कि पाकिस्तान के खिलाफ किया गया एयर सर्जिकल स्ट्राइक भाजपा के लिए हनुमान कूद साबित होगा, और मोदी आसानी से 2019 का चुनाव भारी अंकों के साथ पास कर जायेंगे, लेकिन कुछ तबका ऐसा भी हैं, जो इन बातों पर विश्वास नहीं रखता।
अधिवक्ता पूजा मिश्रा कहती है कि कोई भी सरकार कितना भी विज्ञापन प्रकाशित करा दें, उसका प्रभाव आम जनता पर नहीं पड़ता, क्योंकि लोग अखबार न्यूज के लिए पढ़ते हैं तथा जो शिक्षा जगत या व्यवसायिक जगत से जूड़ें हैं, वे अपने कामों से संबंधित विज्ञापनों पर ध्यान देते हैं, आम तौर पर राजनीतिक विज्ञापन पर लोगों का ध्यान नहीं जाता, हां इन राजनीतिक विज्ञापनों के माध्यम से अखबारों में पेड न्यूज का बोलबाला होने का खतरा मंडराने लगता है, जिस पेड न्यूज के कारण आम सामान्य मतदाता प्रभावित हो जाता है, जो एक सफल लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।
पत्रकारिता जगत से जुड़े मनीष कुमार कहते है कि इस प्रकार के राजनीतिक या कोई भी विज्ञापन हो, वो सामान्य जन पर कोई प्रभाव नहीं डालते, जो उनके आंखों के सामने होता है,वे उस पर ही विश्वास करते हैं, अब आम जनता को भी विश्वास हो गया है कि राजनीतिक दल, विभिन्न अखबारों को इन विज्ञापनों के माध्यम से डोरे डालते है ताकि उनके पक्ष में ये लोरियां गा सकें, ऐसे यह जनता के पैसे की बर्बादी है और कुछ नहीं।
कुल मिलाकर देखें तो सच्चाई यहीं है कि आम आदमी, अखबार में समाचार ही ढूंढता है, न कि केन्द्र सरकार के भारी–भरकम विज्ञापनों पर उसकी नजरें ठहरती है, पर इसका एक दुसरा पहलू भी है, अखबार में छपे इस विज्ञापन को भले ही जनता नकार दें, पर अखबारों में छपे विज्ञापन अखबार में कार्यरत प्रधान संपादकों और उनके मालिकों के ईमान को बहुत हद तक प्रभावित कर देते हैं, और ऐसे समय में जबकि उनका मुंह विज्ञापनों से बंद कर दिया जाता है, वे ठकुरसोहाती छोड़कर दुसरा गान नहीं कर पाते, जिस कारण अंततः आम जनता को ही आघात या इसके दुष्परिणाम सहने पड़ते हैं और लोकतंत्र धराशायी हो जाता है।