अगर सुमन गुप्ता नहीं होती तो चार निर्दोषों की सारी जिंदगी जेल में कट जाती, क्या CM निर्दोषों को फंसानेवाले सभी दोषियों को सजा दिलवायेंगे?
कभी–कभी सोचता हूं कि जिस प्रकार से राज्य में पुलिस प्रशासन का जलवा चल रहा हैं, अगर कोई निर्दोष फंस गया तो उसका क्या होगा? क्योंकि हर निर्दोष का मामला सुमन गुप्ता के पास थोड़े ही पहुंचेगा कि वह सत्य का अनुसंधान कर, निर्दोषों को बचायेंगी और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने की कोशिश करेंगी।
याद है न, ये वहीं राज्य हैं, जहां बकोरिया कांड होता है, जहां की कोर्ट कहती है कि इस मामले की सीबीआई जांच हो, और सीबीआई जांच को रुकवाने के लिए राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा तक खटखटा देती है, ये अलग बात है कि सुप्रीम कोर्ट भी राज्य सरकार के खिलाफ फैसले देती है और सीबीआई को बकोरिया कांड की जांच करने के झारखण्ड हाई कोर्ट के फैसले को उचित ठहरा देती है, हालांकि हम जिस कांड की बात कर रहे हैं, वह बकोरिया से जुड़ा मामला नहीं है, पर बकोरिया से कम भी नहीं और इसका भी कनेक्शन राज्य के सीआइडी से जुड़ा हैं, और ये घटना भी बता रही है कि राज्य का सीआइडी विभाग और अन्य पुलिसकर्मी किस प्रकार से घटना का अनुसंधान या जांच कर रहे है।
दरअसल रेल आइजी सुमन गुप्ता ने सीआइडी के एडीजी और रेल एडीजी के पास एक रिपोर्ट भेजी है, रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया गया है कि किस प्रकार रांची रेल थाने में एक दर्ज केस में सीआइडी के अफसरों की करतूतों से चार निर्दोष लोगों को कई माह तक जेल में रहना पड़ा।
बताया जाता है कि 23 जून 2017 को एक एनजीओ चला रही सीता स्वांसी की शिकायत पर रांची रेल थाने में एक मामला दर्ज किया गया, जिसमें जिलानी लुगुन, लाल सिंह मुंडा, पिंटू भुइयां और नारायण भुइयां को अभियुक्त बनाया गया था। इन सब पर नाबालिग लड़कियों को काम कराने के नाम पर दिल्ली व तमिलनाडू ले जाने का आरोप लगाया गया था।
सूत्र बताते है कि मानव तस्करी के नाम पर उस वक्त के सीआइडी डीएसपी के के राय के नेतृत्व में रांची स्टेशन पर छापेमारी की गई थी, जिसमें इंस्पेक्टर मो. नेहाल, इंस्पेक्टर उमेश ठाकुर शामिल थे। तीनों ने उस समय के रेल थाना प्रभारी, आरपीएफ पोस्ट प्रभारी और चुटिया थाना प्रभारी ब्रज किशोर भारती को बुलाकर कथित पीड़िता की मेडिकल जांच तक नहीं करवाई और उनमें से कुछ को बालिग बताकर मुक्त कर दिया गया, जबकि पांच लड़कियों को नाबालिग बताकर केस दर्ज करा दिया गया, जबकि छापेमारी टीम द्वारा किसी भी अभियुक्त तथा पीड़िता को दिल्ली अथवा अन्य ट्रेनों से नहीं पकड़ा गया था, सभी टिकट काउंटर वाले कक्ष में मौजूद थे।
आश्चर्य की बात है कि 22 जून को जिस दिन छापेमारी की गई, उस दिन कोई भी व्यक्ति अपनी वर्दी में नहीं था, केस दूसरे दिन तब दर्ज किया गया, जब दीया सेवा संस्थान की सीता स्वांसी को दूसरे दिन बुलाया गया। मानव तस्करी का केस दर्ज कराये जाने के बावजूद, जब उन्हें सुधार गृह लाकर मेडिकल कराया गया, तब जिन्हें इन लोगों ने नाबालिग बताया था, उसे बालिग पाया गया।
रेल आईजी सुमन गुप्ता ने अपनी समीक्षात्मक रिपोर्ट में इस बात को इंगित किया है कि केस का सुपरविजन करनेवाले तत्कालीन रेल डीएसपी क्रिस्टोफर केरकेट्टा और तत्कालीन रेल एसपी जमशेदपुर अंशुमान कुमार द्वारा साक्ष्यों के सत्यापन कराये बिना ही केस को सत्य करार दे दिया गया।
आश्चर्य की बात यह रही कि कथित रेस्क्यू में शामिल पुलिस अधिकारियों ने केस में वादी न बनकर, दीया सेवा संस्थान की सीता स्वांसी को वादी बनवा दिया। जो पुलिस अधिकारियों के कार्यशैली की संदिग्धता को उजागर कर देता है। रिपोर्ट में साफ है कि जिन्हें अनुसंधान करना था, उसने पीड़िता के घर जाकर या उसके आस–पड़ोस से मिलने की जहमत नहीं उठाई, उलटे पीड़िता के परिजनों का बयान फोन पर लिया और थाने में ही बैठे–बैठे केस डायरी तैयार कर ली। जिस कारण उस वक्त के रेल थाना प्रभारी इंस्पेक्टर अनिल कुमार सिंह को सस्पेंड कर दिया गया था।
कमाल की बात है कि मानव तस्करी में फर्जी केस दर्ज करने के सिलसिले में रेल आइजी ने रेलएसपी अंशुमन और डीएसपी क्रिस्टोफर केरकेट्टा को अपनी स्थिति स्पष्ट करने का नोटिस जारी किया था, पर सवा साल बीत जाने के बाद भी इन दोनों ने इस नोटिस का जवाब देना जरुरी नहीं समझा, अब इन दोनों पुलिस अधिकारियों द्वारा अपने उच्चाधिकारी द्वारा दिये गये नोटिस का जवाब नहीं दिये जाने से आप राज्य के हालात का अंदाजा लगा सकते हैं।
हालांकि रेलआइजी ने इन दोनों अधिकारियों के खिलाफ राज्य के पुलिस महानिदेशक डीके पांडेय को कार्रवाई करने के लिए अनुशंसा कर दी है। रेल आइजी ने अपने पत्र में इनके द्वारा किये गये गलत कार्यों की पूरी सूचना भी दे दी है, इन पर आरोप है कि इन्होंने साक्ष्यों की बिना गहन समीक्षा किये ही केस को सत्य करार दे दिया था, तथा इस मामले में तकनीकी और भौतिक साक्ष्यों को नजरंदाज किया।
इधर विद्रोही 24.कॉम को मिले प्रमुख दस्तावेजों से साफ पता लगता है कि दीया सेवा संस्थान की सचिव सीता स्वांसी द्वारा उठाये गये कई बिन्दुओं की सुक्ष्मता से जांच रेल थाना प्रभारी, रांची ने करवाई, जिसकी रिपोर्ट उसने रेल पुलिस अधीक्षक जमशेदपुर को दी, जिसमें रेल थाना प्रभारी ने इस बात का उल्लेख किया है कि जांच से यह स्पष्ट हो रहा है कि आवेदिका द्वारा रेलवे न्यायिक दंडाधिकारी रांची के न्यायालय में उल्लिखित किसी भी तथ्य को प्रमाणित नहीं किया गया।
उधर बरियातु थाने में सीता स्वांसी द्वारा दर्ज कराई गई एक अन्य प्राथमिकी मामले में भी वहां के अनुसंधान पदाधिकारी सत्यनारायण प्रसाद द्वारा सीता स्वांसी द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी को असत्य पाया गया है तथा सीता स्वांसी के खिलाफ 182/211 भादवि के अंतर्गत न्यायालय में अभियोजन चलाने का प्रतिवेदन समर्पित किया गया है।
इधर मामले को तूल पकड़ने के बाद सीता स्वांसी ने संवाददाता सम्मेलन कर रेलआइजी सुमन गुप्ता पर आरोप लगाया कि वह दुर्भावनाग्रस्त होकर उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए अनुशंसा कर रही है, इससे मानव तस्करों को मनोबल बढ़ेगा, जबकि कई बुद्धिजीवियों ने रेलआइजी सुमन गुप्ता की इस कार्य के लिए प्रशंसा की, कि उन्होंने सत्य को उजागर किया तथा निर्दोषों के जीवन को नरक बनने से बचा लिया। बुद्धिजीवियों की मांग है कि इस कांड में जो भी लोग शामिल हो, जिन्होंने गलत लोगों को फंसाने का काम किया, उन्हें दंड मिलना ही चाहिए, उनके खिलाफ कार्रवाई होनी ही चाहिए, ताकि लोगों को एक प्रकार से सबक मिले।