कमाल हो गया, आडवाणी के लिए वे भी रो रहे हैं, जो कल तक उन्हें बिना गालियां दिये सोते तक नहीं थे
भाजपा या वर्तमान राजनीतिक दलों में किसकी हिम्मत है कि स्वयं को लालकृष्ण आडवाणी के सामने खड़ा होने का दुस्साहस भी कर सकें। मैं देख रहा हूं कि विभिन्न सोसल साइटों, चिरकूट टाइप पोर्टलों, विभिन्न अखबारों व चैनलों में जिनको पत्रकारिता का एबीसीडी का ज्ञान नहीं, जो प्रतिदिन स्वयं को दो पैसों के लिए बेच देते हैं, वे लालकृष्ण आडवाणी पर प्रवचन कर रहे हैं।
इस बार गुजरात के गांधी नगर से लोकसभा की टिकट उन्हें न मिलने पर नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को अपशब्दों से नवाज रहे हैं, तथा भाजपा को कटघरे में खड़े कर रहे हैं, कुछ तो यह भी कहने से बाज नहीं आ रहे कि ये तो भाजपा का संस्कार है। दरअसल ये बोलनेवाले, वे लोग हैं, जो न तो लालकृष्ण आडवाणी को जानते हैं और न ही भाजपा को। वे वर्तमान राजनीतिक हालातों को देखकर बयान दर्ज करा दे रहे हैं।
इधर लालकृष्ण आडवाणी के प्रति उनका भी प्रेम जग गया है, जो कभी उन्हें भाजपा का उग्र नेता कहने या उनके लिए अपशब्दों का कभी प्रयोग करने से भी गुरेज नहीं करते थे, पर पता नहीं उनकी नजरों में कब और कैसे लालकृष्ण आडवाणी उदार छवि के हो गये, अच्छे और महान नेता हो गये पता ही नहीं चला। वे आंसू बहा रहे हैं, कह रहे है कि भाजपा के मोदी और अमित शाह ने आडवाणी के साथ जो किया, वो ठीक नहीं किया।
कमाल है, ये हृदय परिवर्तन है या मौकापरस्ती। हमें नहीं भूलना चाहिए कि श्रीराममंदिर निर्माण के लिए लालकृष्ण आडवाणी की निकली सोमनाथ से अयोध्या की रथयात्रा का क्या हश्र बिहार के समस्तीपुर में हुआ? और हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जब बिहार के समस्तीपुर में आडवाणी की रथयात्रा रुकी तो उसका पूरे देश के राजनीतिक परिस्थितियों पर क्या प्रभाव पड़ा?
खुद लाल कृष्ण आडवाणी ने इस बात का जिक्र पटना के गांधी मैदान में एक जनसभा के दौरान कहा था कि लालू प्रसाद यादव ने उनके रामरथ को रोका, और उन्हें मसानजोर भेजा तथा अपने सारे नेताओं को श्मशान भेज दिया। कहने का मतलब है कि रामरथ के रोके जाने से पूरे देश में जो भाजपा की पहुंच हुई और भाजपा के नेताओं का कद बढ़ा, वो आज तक बढ़ता चला गया और आज स्थिति ऐसी है कि भाजपा अकेले केन्द्र की सत्ता में हैं, बहुमत में हैं।
आश्चर्य हैं लोग सोशल साइट पर लालकृष्ण आडवाणी के लिए आंसू बहाये जा रहे हैं, मोदी–शाह को कोसे जा रहे हैं, उन्हें भला–बुरा कहे जा रहे हैं, जैसे लगता है कि लालकृष्ण आडवाणी ने एक प्रेस कांफ्रेस आयोजित कर, यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे नेताओं की तरह मोदी–शाह या भाजपा के खिलाफ विषवमन कर दिया हो। हम लालकृष्ण आडवाणी को अच्छी तरह से जानते है, कि वे किस मिट्टी के बने हैं, वे कभी भाजपा या संघ के खिलाफ नहीं जा सकते, चाहे उनके खिलाफ भाजपा या संघ कोई भी बड़ा एक्शन क्यों न ले लें। वो कभी नहीं चाहेंगे कि उनका जो चरित्ररुपी पूंजी हैं, त्याग की पूंजी हैं, वो पल भर में समाप्त हो जाये।
जो व्यक्ति हवाला के छींटे लगने पर, ये संकल्प ले ले कि जब तक वे हवाला कांड से मुक्त नहीं हो जाते, वे चुनाव नहीं लड़ेंगे, और वह इस संकल्प को पूरा होने के बाद ही चुनावी समर में उतरता है। जिस व्यक्ति के कारण पार्टी दो से 86 और 86 से बढ़ता हुआ, निरन्तर प्रगति की ओर बढ़ता जाता है, और उसके बावजूद यह कहता हो कि बहुमत आने पर वे नहीं, बल्कि अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बनेंगे।
जो व्यक्ति राजनीति में शुचिता एवं शुद्धता पर विश्वास करता हो, वह व्यक्ति घटियास्तर की सोच नहीं रख सकता। लाल कृष्ण आडवाणी ने दिखा दिया कि उन्हें कोई पद अथवा प्रतिष्ठा हिला नहीं सकता, वे जहां थे, आजीवन वहीं रहेंगे, चाहे कुछ भी हो जाये। वर्तमान में राजनीतिक शुचिता की वो लकीर लाल कृष्ण आडवाणी ने बना दी, कि मैं तो यहीं कहूंगा कि भारतीय राजनीतिज्ञों को थोड़ा बहुत आडवाणी जी से जरुर सीखना चाहिए।
लालकृष्ण आडवाणी भारत के सूचना प्रसारण मंत्री रहे, वे गृह मंत्री रहे, भारत के उप–प्रधानमंत्री पद को सुशोभित किया, पर किसी की हिम्मत नहीं कि उन पर भ्रष्टाचार का एक भी आरोप सिद्ध कर दें, एक बार भाजपा ने उन्हें पीएम के रुप में प्रोजेक्ट किया था, दुर्भाग्य रहा उनके लिए, पार्टी उतनी सीट नहीं ला सकी, फिर भी उनका भारत के प्रति प्रेम और उनकी सेवा को कैसे नजरदांज किया जा सकता है।
मैंने लालकृष्ण आडवाणी की कई सभाओं का न्यूज कवरेज किया तथा एक दो बार प्रेस कांफ्रेस में भी शामिल होने का मौका मिला, मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि वे सचमुच लाल कृष्ण आडवाणी है, उनके जीवन को संपूर्णता में देखने की जरुरत हैं। वाजपेयी के प्रति त्याग, पार्टी के प्रति निष्ठा, राजनीति में शुचिता की जब भी बात आयेगी, भाजपा में आडवाणी का कद कभी कम नहीं होगा।