इधर बच्चे लापरवाही के कारण मर रहे हैं और उधर जनाब को अपनी ब्रांडिंग की पड़ी हैं
जिस राज्य में एक रुपये की दवा तक सरकार उपलब्ध कराने में सक्षम नहीं, जहां बच्चे एक रुपये की दवा के अभाव में दम तोड़ देते है। जहां राजधानी में मात्र पचास रुपये के लिए सिटी स्कैन नहीं हो पाता और बच्चा समुचित इलाज के अभाव में दम तोड़ देता है। जहां शव ले जाने की एंबुलेस की भी सुविधा नहीं और परिवार अपने बच्चे के शव को कंधे पर ले जाने के लिए विवश हैं, उस राज्य का नाम हैं झारखण्ड, पर जब मुख्यमंत्री और उनके कनफूंकवो की ब्रांडिंग की बात हो, तो करोड़ों रुपये पानी की तरह बहा दिये जाते है।
विज्ञापन नियमावली को ठेंगा दिखाते हुए, अवैध तरीके से एक ऐसे अखबार को विज्ञापन धड़ल्ले से उपलब्ध कराया जा रहा है, जो कहीं से भी फिट नहीं हैं, पर चूंकि मुख्यमंत्री और उनके कनफूंकवो को सब पसंद हैं, तो पसंद हैं, कोई बोल कर भी क्या कर लेगा?
शायद यहीं कारण रहा की रांची व गुमला जिले के दो मासूमों की पैसे व इलाज के अभाव में हुई असामयिक व दुखद मृत्यु पर राष्ट्र निर्माण नामक संस्था ने अलबर्ट एक्का चौक पर बाल मुंडन कर अपनी शोक संवेदना व्यक्त की। इसके अध्यक्ष अमृतेश पाठक का कहना था कि उन्हें इस बात का दुख हैं कि झारखण्ड में किसी विभाग में अब मानवीय संवेदना रही ही नहीं, ये मानवीय संवेदना पूरी तरह मर चुकी है। मंत्री, अधिकारी, कर्मचारी से लेकर समाज की जवाबदेही व संवेदनशीलता की हो रही मौत पर, वे शोक प्रकट करते हैं।
ज्ञातव्य है कि विगत दिनों गुमला के सदर अस्पताल व रांची के रिम्स में दो गरीब परिवार केवल पैसे के अभाव में अपने बच्चों का इलाज नहीं करा पाये, वह भी सिर्फ मानवीय संवेदना पूरी तरह समाप्त हो जाने के कारण। गुमला में जो बच्चा मरा, उसके पिता के पास दवा के पैसे नहीं थे, और रिम्स में जो बच्चा मरा, उसके पास सिटी स्कैन तक के पचास रुपये कम पड़ रहे थे, जबकि सरकारी अस्पतालों में इनके इलाज की हर चीजें उपलब्ध हैं।
आखिर ये बच्चे क्यूं मरें, सिर्फ और सिर्फ भ्रष्टाचार, मानवीय संवेदनाओं का अभाव, कामचोरी, गैरजिम्मेदारी, लापरवाही और असंवेदनशीलता के कारण। क्या सरकार फिर भी चेतेगी, व्यवस्था को ठीक करेगी, या अपनी ब्रांडिंग में ही मस्त रहेगी? सवाल फिलहाल यहीं झारखण्ड के सभी के जुबानों पर हैं।