पहले BJP को खूब गरियाएं, फिर उस में शामिल हो, संघ-भाजपा नेताओं के पांव छूकर टिकट ले, चुनाव जीते
अब भाजपा नीति व सिद्धांत की सिर्फ बात करती है, उस पर चलती नहीं। एक समय था जब भाजपा नीति व सिद्धांतों के लिए ही जानी जाती थी, उसके विरोधी भी इस बात के कायल रहते थे, भाजपा कार्यकर्ताओं की भाजपा में पूछ भी हुआ करती थी, बड़े भाजपा नेता अगर किसी शहर में जाते तो वे बड़े होटलों में ठहरने की अपेक्षा भाजपा कार्यकर्ता के घर पर समय गुजारना ज्यादा पसन्द करते।
इससे उनका दो काम हो जाता है, पार्टी की बैठक व कार्यकर्ताओं के साथ मधुर संबंध गहराते जाते तथा पार्टी भी मजबूत होती, लेकिन समय बदला, अब पार्टी विद् डिफरेंस कहलानेवाली भाजपा में आमूल–चूल–परिवर्तन हो गये। न तो पार्टी ही पहले जैसी रही और न उनके नेता और न ही कार्यकर्ता।
जरा देखिये, चुनाव आयोग ने सात चरणों में चुनाव की घोषणा कर दी। झारखण्ड की 14 सीटों में दस सीटों पर भाजपा ने उम्मीदवार तय कर दिये। इस बार खूंटी से करिया मुंडा की विदाई कर दी गई, और वहां से पार्टी के दिग्गज नेता अर्जुन मुंडा को टिकट थमा दिया गया और बाकी जगहों पर वहीं पुराने उम्मीदवार नजर आ रहे हैं। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में काफी अंतर देखा जा रहा है। 2014 में मोदी लहर था, जिसमें आप किसी को भी टिकट दे देते, उसका जीत सुनिश्चित था, पर 2019 में ऐसा है नहीं।
इधर रांची की लोकसभा सीट को भाजपा ने खुद ही प्रतिष्ठा की सीट बना दी है। रांची के निर्वतमान सांसद राम टहल चौधरी चाहते है कि उन्हें फिर से टिकट मिले और वे चुनाव लड़े पर भाजपा में ही रह रहा एक बहुत बड़ा वर्ग उनके खिलाफ है, इन भाजपा कार्यकर्ताओं का कहना है कि रामटहल चौधरी को कई बार मौका भाजपा ने दिया, अब उन्हें आराम करने का मौका दिया जाना चाहिए, तथा दूसरे नये भाजपा कार्यकर्ताओं को मौका मिलना चाहिए, पर राम टहल चौधरी मानने को तैयार नहीं हैं, इधर भाजपा के बड़े शीर्षस्थ राष्ट्रीय नेता राम टहल चौधरी को इस बार टिकट देने के पक्ष में नहीं है, वे चाहते है कि उनकी जगह पर कोई नया उम्मीदवार हो।
सूत्रों की मानें तो भाजपा के शीर्षस्थ नेता चाहते है कि यहां से भाजपा के टिकट पर अमिताभ चौधरी चुनाव लड़े, सारी तैयारियां भी पूरी कर ली गई, पर वे ये भी नहीं चाहते कि निवर्तमान सांसद रामटहल चौधरी नाराज हो, इसलिए उन्हें हर प्रकार से मनाने की तैयारी की जा रही है, पर वे मानेंगे ऐसा दीख नहीं रहा। ऐसे भी राम टहल चौधरी को टिकट नहीं मिलने पर, इतना जरुर तय है कि उनके समाज का वोट अमिताभ चौधरी की ओर शिफ्ट होगा, ऐसा संभव नहीं है। ऐसे में राम टहल चौधरी जिस वर्ग से आते है, उनका वोट महागठबंधन की ओर शिफ्ट होना तय है, जिसकी तैयारी महागठबंधन ने पूरी कर ली है।
अमिताभ चौधरी को भाजपा से टिकट दे दिये जाने के बाद ऐसा भी नहीं कि भाजपा के सभी कार्यकर्ता अमिताभ चौधरी को जीताने के लिए निकल पड़ेंगे, क्योंकि अमिताभ चौधरी से भाजपा के ज्यादातर कार्यकर्ता नाराज है, एक भाजपा कार्यकर्ता ने विद्रोही24.कॉम से बातचीत में कहा कि वे तो भाजपा के कार्यकर्ता है, चाहे राम टहल चौधरी को टिकट मिले या अमिताभ चौधरी को, वे वोट सिर्फ अपने पीएम मोदी को सामने देखकर देंगे और दिलवायेंगे।
जबकि कई भाजपा कार्यकर्ता ऐसे भी मिले, जिनका कहना था कि वे अपने पार्टी के बंधुआ मजदूर नहीं है, वे चाहते है कि पार्टी इस बार राम टहल चौधरी की जगह किसी अन्य को प्रत्याशी बनायें, पर अमिताभ चौधरी ही रांची से उम्मीदवार हो, इसे बर्दाश्त नहीं कर पायेंगे, ऐसे में वे चुनाव के दौरान सक्रियता न दिखाकर, निष्क्रिय होने की कोशिश करेंगे।
कुल मिलाकर देखें तो रांची संसदीय सीट पर भाजपा का हमेशा पलड़ा भारी रहा है, लेकिन वर्तमान में जो स्थिति है, उससे साफ लगता है कि भाजपा में सब कुछ ठीक–ठाक नहीं चल रहा, अगर भाजपा ने अमिताभ चौधरी को रांची से टिकट देने की घोषणा की, तो इसकी गारंटी तो भाजपा के बड़े नेता भी नहीं दे पायेंगे कि अमिताभ चौधरी यहां से जीत ही जायेंगे, क्योंकि तब स्थितियां बदल चुकी होगी।
एक भाजपा के बहुत बडे नेता ने विद्रोही24.कॉम को कहा कि इस बार भाजपा के एक बहुत बड़े नेता को रांची से टिकट मिलने जा रहा है, जब विद्रोही24.कॉम ने कहा कि क्या वो बड़ा नेता अमिताभ चौधरी है, तब उनका कहना था कि – हां। तब विद्रोही 24.कॉम ने पूछा कि आप मानते है कि भाजपा में अमिताभ चौधरी बहुत बड़े नेता हैं। उक्त नेता का कहना था कि हमारे मानने या न मानने से क्या होता है? भाजपा के सभी बड़े लोगों ने मान लिया है।
कमाल है, भाजपा में एक नये प्रकार का सिस्टम स्थापित हो गया है, अगर आप किसी अन्य दल से चुनाव लड़ लिये हैं, और उस चुनाव के दौरान आपने खुब भाजपा को गरियाया ही क्यों न हैं, और एक सर्टेन समय के बाद भाजपा में आ जाते हैं तथा संघ के कार्यक्रमों में न चाहते हुए भी रुचि लेने लगते हैं, उनके कार्यक्रमों को सफल बनाने के लिए धन जुटाने शुरु कर देते हैं, संघ के पदाधिकारियों की सेवा में हृदय से जुट जाते हैं, तो यहीं संघ के पदाधिकारी आपको उपर तक ऐसे स्थापित कर देंगे, जैसे लगता है कि आपके बाद, कोई दुसरा नेता भाजपा में हुआ ही नहीं।
ऐसे कई लोग है, जिन्होंने एक समय भाजपा के बड़े–बड़े नेता, दिग्गजों को जमकर गरियाया और आज वे भाजपा के शीर्षस्थ नेता बन चुके हैं, केन्द्र में मंत्री पद संभाल चुके हैं, उदाहरण तो कई है, पर तीन उदाहरण आप देख लीजिये। पहले हैं मनोज तिवारी जो आजकल दिल्ली भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बन चुके है, दूसरे है रामकृपाल यादव जो केन्द्र में मंत्री भी है और पाटलिपुत्र से चुनाव लड़ने जा रहे हैं और तीसरे बनने जा रहे हैं अमिताभ चौधरी, जो कभी बाबूलाल मरांडी की पार्टी में उन्हें देशसेवा दिखाई पड़ता था।
आजकल भाजपा में स्वयं को खपा रहे हैं, और वो दिन दूर नहीं कि ये रांची की संसदीय सीट पर अपनी किस्मत भी संघ और भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं की कृपा से आजमा लें और रही बात भाजपा कार्यकर्ता की तो ये झोले ढोने के लिए बने ही हैं, अब तो भाजपा के शीर्षस्थ नेता भी कहने लगे है कि भाजपा कार्यकर्ता कोई समर्पित भाव से थोड़े ही काम करते हैं, वे भी तो अपने काम के बदले पार्टी के शीर्षस्थ नेताओं से उपकृत होते हैं, ऐसे में ले–दे संस्कृति के अनुसार सब काम चलता है तो इसमें गलत ही क्या है?
aapne jo example bjp ko gariyane walon ka diya hai….sabse bada udaharan ravindra rai hain….jvm gaye,bjp ko gariyaye aur phir jharkhand bjp ke president bhi bane aur sansad bhi.amitabh ne jsca ka member nonbhajpaienyo ko hee khoj khojkar banaya thha,mera isiliye reject kiya thha unhone………..