महागठबंधन से घबराई BJP अन्नपूर्णा के शरण में, भूपेन्द्र की रणनीति भविष्य में पड़ सकती है BJP के लिए भारी
महागठबंधन ने भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं की नींद उड़ा दी है, हड़बड़ाहट में उनके द्वारा लिये जा रहे निर्णय बता रहे हैं कि वे कितने अंदर से घबराए हुए हैं। स्वयं को चारित्रिक रुप से पुष्ट बतानेवाली भाजपा अब राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष अन्नपूर्णा देवी के शरण में चली गई तथा उनसे कोडरमा लोकसभा चुनाव भाजपा के टिकट पर लड़ने का अनुरोध किया, सूचना है बार–बार भाजपा के बड़े–बड़े नेताओं द्वारा किये जा रहे इस अनुनय–विनय पर अन्नपूर्णा देवी ने अपनी सहमति दे दी है, संभव है वो कल भाजपा ज्वाइन करें और उधर कोडरमा से भाजपा का टिकट भी उन्हें प्राप्त हो जाये।
बताया जाता है कि महागठबंधन से मिल रही चुनौती को ध्यान में रखते हुए भाजपा के भूपेन्द्र यादव ने अन्नपूर्णा देवी को भाजपा की ओर से चुनाव लड़ाने का प्रबंध करने का काम शुरु किया था। भाजपा के राज्यस्तरीय नेताओं ने केन्द्र के नेताओं को सूचना दी थी कि इस बार रवीन्द्र राय कोडरमा से शायद नहीं जीत पाये, इसलिए वहां परिवर्तन जरुरी है, और चूंकि भाजपा में कार्यकर्ताओं व नेताओं का टोटा हो चला है, इसलिए एकमात्र विकल्प है कि राजद के प्रदेश अध्यक्ष अन्नपूर्णा देवी को भाजपा से टिकट दे दिया जाये।
आज इस रणनीति का उस वक्त पटाक्षेप हो गया, जब अन्नपूर्णा देवी, मुख्यमंत्री आवास पहुंच गई और उस वक्त भूपेन्द्र यादव भी वहां उपस्थित थे। हालांकि अन्नपूर्णा देवी के भाजपा ज्वाइन करने से तथा कोडरमा से लोकसभा का चुनाव लड़ने से न तो राजद का नुकसान होने जा रहा हैं और न ही महागठबंधन का, क्योंकि राजद को जो वोट देनेवाला समाज है, वह अपना नेता लालू प्रसाद को ही मानता है, और जिधर लालू प्रसाद होंगे, उस समाज का वोट उधर ही जायेगा, चाहे भाजपा जितना भी उछल–कूद मचा लें।
ऐसे में अन्नपूर्णा देवी अपने समाज का कितना वोट भाजपा में शिफ्ट करा पायेंगी, उनको खुद पता है, हां इस प्रकरण से इतना जरुर हुआ कि भाजपा का जो अपना वोट बैंक था, उस वोट बैंक के खिसकने का खतरा जरुर बन गया। संभव है, यह वोट महागठबंधन के नेता बाबू लाल मरांडी को शिफ्ट करेगा, इसमें अब कोई दो राय नहीं है, रही बात भाकपा माले की तो उसका वोट बैंक अपना हैं, उसमें किसी की ताकत नहीं कि कोई उनके वोट बैंक को प्रभावित कर दें।
भाजपा नेताओं के इस निर्णय पर, राज्य के कई शीर्षस्थ पुराने नेताओं ने गंभीर चिन्ता दिखाई है। कई नेताओं ने अपना नाम नहीं छापने के वचन देने पर बताया कि दरअसल जब ढिबरी बुझता हैं तो उसके पूर्व भभकता है, ये वहीं स्थिति हैं भाजपा के लिए। क्या भाजपा के पास सचमुच कैंडिडेट नहीं है, जिस कारण वो दूसरे पार्टियों से नेताओं को आयात कर रही है? क्या सचमुच भाजपा का कार्यकर्ता भाजपा का झंडा ढोने के लिए बना है?
क्या अब भाजपा में यहीं होगा, कि वर्षों जो लोग भाजपा के लिए झोला ढोयेंगे, जब चुनाव की बारी आयेगी तो बाहरियों को टिकट थमा दिया जायेगा और भाजपा कार्यकर्ताओं को कहा जायेगा कि आपको इनके लिए वोट मांगना है, यानी भाजपा कार्यकर्ता, भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं का गुलाम हो गया? क्या भाजपा मानती है कि झारखण्ड में भाजपा का जनाधार खत्म हो गया, जिसके कारण उसे दूसरे दलों से नेताओं को मंगवाना पड़ रहा हैं, वह भी चुनाव लड़ने के लिए? क्या मोदी लहर खत्म हो गई?
अन्नपूर्णा देवी प्रकरण तो यही बता रहा कि मोदी लहर खत्म हो गई है और भाजपा के लोग येन–केन–प्रकारेन ने लोकसभा की सीटों को जीतने की कोशिश कर रही हैं। ऐसे में महागठबंधन तो भाजपा पर वैचारिक रुप से बढ़त बना चुका है, जो लोग ये समझ रहे है कि इससे महागठबंधन कमजोर होगा, वे मूर्ख है? इस प्रकरण से महागठबंधन और मजबूत हो गया? अब वे ताल ठोककर कहेंगे कि भाजपा के पास नेता व कार्यकर्ताओं का टोटा हो गया हैं, वे चुनाव लड़ने–लड़ाने के लिए भी उनकी ओर देख रहे हैं, ऐसे में राज्य की जनता जो भाजपा के प्रति प्रेम रखा करती थी, अब शायद ही वह भाजपा को अपना वोट देने के लिए आगे कदम बढ़ायेगी।
राजनीतिक पंडितों की माने तो वे साफ कहते है कि जिस भूपेन्द्र यादव ने राजस्थान और बिहार को कबाड़ा बना दिया, वहीं भूपेन्द्र यादव झारखण्ड में भी भाजपा का कबाड़ा बना देगा, क्योंकि उसे झारखण्ड व बिहार की राजनीति का ज्ञान ही नहीं हैं, वे सोच रहे है कि ऐसा करके वे भाजपा में लालू यादव की तरह प्रतिस्थापित हो जायेंगे तो वे समझ लें कि लालू, लालू हैं और वर्तमान में दुसरा लालू संभव नहीं, वो अकेले जेल में रहकर भी भाजपा–भाजपा समर्थकों के लिए सरदर्द बने हुए है, बने रहेंगे, क्योंकि राजद का एक अपना अलग वोट बैंक है, जो लालू यादव को ही अपना सब कुछ मानता है।
अन्नपूर्णा देवी के भाजपा में जाने से महागठबंधन कोडरमा में ज्यादा मजबूत हो गया, ये भाजपा को अच्छी तरह मालूम होना चाहिए, संभव है कि महागठबंधन की सीधी लड़ाई भाजपा से न होकर भाकपा–माले के साथ न हो जाये, क्योंकि कोडरमा में भाजपा इस घटना के बाद ज्यादा कमजोर हो गई, क्योंकि भाजपा कार्यकर्ता जिसके खिलाफ हमेशा से संघर्ष करता रहा, आज उनके लिए काम कैसे कर पायेगा? हालांकि भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं ने अपनी ओर से इस प्रकरण पर कुछ बोला नहीं है, पर सीएम आवास तक अन्नपूर्णा के पहुंचने से अब सब कुछ क्लियर हो गया कि आगे क्या होनेवाला है?