डूबते को तिनके का सहारा के तर्ज पर झारखण्ड में नीतीश ने सालखन तो सालखन ने नीतीश को पकड़ा
सच्चाई है, झारखण्ड में जदयू पूरी तरह समाप्त है। जदयू को फिर से झारखण्ड में खड़ा करने के लिए तथा अपना फिर से इस राज्य में चेहरा चमकाने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुब हाथ–पांव मार रहे हैं। उन्हें सबसे ज्यादा सदमा पहुंचाया हैं, उन्हीं की जाति से आनेवाले तथा राज्य में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद को सुशोभित करनेवाले जलेश्वर महतो ने, जिन्होंने हाल ही में कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर लिया।
जलेश्वर का कांग्रेस ज्वाइन करना कोई अचानक नहीं हुआ है, चूंकि जलेश्वर महतो अच्छी तरह जान चुके थे कि अब जदयू का झारखण्ड में कोई अस्तित्व ही नहीं हैं, जो यहां का कुर्मी समाज नीतीश कुमार को अपना नेता मानता था, अब वो उन्हें अपना नेता मानता ही नहीं और इस समाज का वोटर कही भाजपा में, तो कही झामुमो, तो कही आजसू में बंट चुका है, ऐसे में जदयू का बेकार का झोला ढोने से कोई फायदा नहीं।
इधर नीतीश कुमार चाहते है कि झारखण्ड में फिर से उनकी पार्टी खड़ी हो, इसके लिए वे खूब पापड़ बेल रहे हैं, इसके लिए वे, जिन नेताओं का झारखण्ड में अस्तित्व नहीं हैं, वैसे उनके जाति के नेता, जैसे ही उनके पटना स्थित आवास पर पहुंचते हैं, नीतीश कुमार एक फिल्म अभिनेता की तरह बनावटी हंसी चेहरे पर बिखरेते हुए मिलते हैं, जैसे लगता है कि वे कितना उस व्यक्ति पर प्रेम लूटा रहे हैं, और जो मिलने जाता है वह भी जानता है कि वह नीतीश कुमार जैसे महाधूर्त व्यक्ति से मिलने जा रहा है, इसलिए वह भी धूमल, महमूद और असरानी की तरह, उनसे दोगुने बनावटी हंसी के चेहरे उनके सामने बना देता है।
जरा देखिये न, कल की ही बात झारखण्ड में एक नेता है –सालखन मुर्मू, पहले वह भाजपा में रहा, भाजपा से दो बार सांसद बना, फिर उसने भाजपा में ही रहकर भाजपा को खूब गरियाया, उसके बाद उसने अपनी पार्टी बना ली, पार्टी का नाम रखा – झारखण्ड दिशोम पार्टी, और इस पार्टी के माध्यम से सारे झारखण्ड नामधारी पार्टियों को गरियाया, फिर उसे जब सफलता नही मिली।
तब वह फिर भाजपा में अपनी पार्टी का विलय करा दिया और जब यहां उसकी फिर दाल नहीं गली तो वह ढूंढने निकला, ऐसे मुल्ले को पकड़ने, जो उसे नीतीश से मिला दे, धनबाद में वह मुल्ला भी मिल गया, वो उसे लेकर चला आया, नीतीश के पास और नीतीश तथा वह मुल्ला खुब दोनों एक दूसरे को देखकर बनावटी हंसी में निमग्न हो गये और फिर सालखन मुर्मू को नीतीश की पार्टी में शामिल करा लिया गया।
जल्द ही जदयू कार्यालय में एक प्रेस कांफ्रेस रखा गया, वशिष्ठ नारायण सिंह ने सालखन मुर्मू को इस तरह पेश किया, जैसे लगता है कि सालखन झारखण्ड का वो चेहरा है, जो जदयू को झारखण्ड में स्थापित कर देगा, पर जो झारखण्ड की राजनीति के बारे में जानते है, उन्हें पता है सालखन की राजनीतिक औकात क्या है?, संवाददाताओं को सालखन ने नीतीश पचासा सुनाया, कि वह नीतीश से बहुत प्रभावित है, वह झारखण्ड में नीतीश मॉडल लायेगा, जबकि सच्चाई यह है कि नीतीश का मॉडल भाजपा या लालू की पार्टी से अलग होते ही दांत निपोड़ने लगता है।
ऐसे भी जो आचरण व चरित्र नीतीश कुमार का है, यानी सुबह में राजद और रात में भाजपा वाली बात, यही काम सालखन मुर्मू का है, आज वह नीतीश की पार्टी में शामिल हुआ, कल यहीं फिर कहां जाकर, कौन सी पार्टी में जाकर संवाददाता सम्मेलन करने लगेगा, उसे खुद ही पता नहीं। अब सवाल उठता है कि जहां नीतीश कुमार और सालखन मुर्मू जैसे लोग होंगे, उस पार्टी और उसके द्वारा देश व समाज की क्या हालत होगी? आप समझने की कोशिश कीजिये।
मैं तो कहता हूं कि नीतीश जिस हरिवंश को राज्यसभा में भेजा, वो हरिवंश तो अपना जिंदगी ही झारखण्ड में खपा दिया, जरा उसे ही जदयू की बागडोर संभालने को कहें न, और ये कहें कि वो झारखण्ड में जदयू को मजबूत करें, पता लग जायेगा, हरिवंश और नीतीश की कितनी लोकप्रियता है झारखण्ड में।
रही बात सालखन की, तो इसे कौन पूछता है, ये तो आयाराम और गयाराम हैं, फिलहाल इन दोनों नाम में से, किस नाम का प्रयोग कर कल जदयू में शामिल हुआ, उसे खुद पता नहीं होगा, ऐसे में नीतीश हो या सालखन, कुछ भी करें, झारखण्ड की जनता को इससे क्या मतलब? झारखण्ड में तो जदयू कब का समाप्त हो गया, अब तो उसके सिर्फ पिंजर बच गये हैं, अब उस पिंजर को क्या करना है, नीतीश इस पर ज्यादा दिमाग लगाये तो बेहतर होगा।