दैनिक भास्कर और अन्य अखबारें बताएं कि भारत के किस प्रान्त की जनता ने उनसे प्रमाणिकता के प्रमाण पत्र मांगे?
दिनांक 8 अप्रैल 2019, चैत्र शुक्लपक्ष -3, 2076, रांची से प्रकाशित समाचार पत्र ‘दैनिक भास्कर’ ने अपने मुख्य पृष्ठ पर संभवतः एक विज्ञापन प्रकाशित किये हैं, जो प्रमाण पत्र के शक्ल में जनता के बीच विद्यमान है, जो यहां पिछले कई दिनों से चर्चा का विषय बना हुआ है। अखबार ने अपने मुख्य पृष्ठ पर क्या लिखा है, जरा उस पर ध्यान दीजिये, अखबार ने लिखा है –
“अगर हमारे पास प्रमाण नहीं, तो समझिये खबर छपेगी ही नहीं।
बड़ी सीधी सी बात है। हम किसी सूचना को खबर तब मानते हैं
जब वो सौ फीसदी सच हो।
सोशल मीडिया के लिए खबर शुरु होती है सनसनी से।
उनकी खबर सच्ची न हो तो वो उसे डिलीट कर देते हैं।
हम ऐसा नहीं कर सकते। जब लाखों हाथों में हमारा अखबार पहुंच चुका हो
तब उसका एक शब्द भी बदला या वापस नहीं लिया जा सकता।
इसलिए कुछ गलत होने की हम गुंजाइश ही नहीं छोड़ते।
किसी सूचना को खबर कहने से पहले उसकी जांच में पूरा वक्त लगाते हैं।
क्योंकि हमारे लिए खबर वहीं जो सही तथ्यों और सूचनाओं पर आधारित हो।
अखबार ही प्रमाणिक है।”
नीचे भारत के विभिन्न राज्यों में छपनेवाले अखबारों जैसे हिन्दुस्तान, हिन्दुस्तान टाइम्स, द हिन्दू, द टाइम्स ऑफ इंडिया, दैनिक भास्कर के ही अन्य अखबारें, नवभारत टाइम्स, मुंबई मिरर आदि के नाम भी दिये गये हैं।
अब सवाल उठता है कि इन अखबारों को यह कहने की जरुरत क्यों पड़ गई कि “अखबार ही प्रमाणिक है।” इसका अर्थ ही है कि इनलोगों ने अपना सम्मान जनता की नजरों में खो दिया है, जिसे पुनः प्रतिष्ठित करने का ये असफल प्रयास कर रहे हैं, जो अब संभव नहीं है। दरअसल सोशल मीडिया ने इनके द्वारा प्रकाशित खबरों की धज्जियां उड़ा दी हैं। दरअसल जनता जान चुकी है कि भारत में प्रकाशित जितने भी अखबार या चैनल हैं, वे किसी न किसी पूंजीपतियों से जुड़े हैं, जो किसी न किसी दल के प्रति समर्पण का भाव रखते हैं, और उसके एवज में वे फायदे उठाते है, जैसे कोई राज्यसभा चला जाता है, कोई अपनी कंपनियों के लिए फायदें उठाता हैं, तो कोई पेड न्यूज चलाकर अपना आर्थिक संवर्धन करता है।
आप किसी भी जनता के बीच जाइये, वो अखबार को छूते ही बता देगा कि ये कांग्रेसी अखबार है, ये भाजपाई अखबार है, ये वामपंथी अखबार है, ये फलां नेता का अखबार है, ये फलां कंपनी का अखबार है, ऐसे में इनके उपर जो फलां नेता, फलां कंपनी का जो ठप्पा लगा है, उस ठप्पे से उनकी नींव हिल गई है और वे चाहते है कि ये नींव फिर से मजबूत हो, लेकिन कहा जाता है कि मुर्दें पानी नहीं पीते, ठीक उसी प्रकार जब आप एक बार जनता की नजरों में विश्वास खो देते हैं, तो फिर उस विश्वास को प्राप्त करने में बरसों गुजार देते हैं, फिर भी इसकी गारंटी नहीं होती कि आपको जनता का विश्वास प्राप्त हो ही जायेगा।
जनता से यह कहना कि सोशल मीडिया के लिए खबर शुरु होती है, सनसनी से। उनकी खबर सच्ची न हो, तो वो उसे डिलीट कर देते हैं, हमारे पास ऐसे कई प्रमाण है कि खुद रांची में ही दैनिक भास्कर और अन्य अखबारों ने अपने समाचारों के माध्यम से सनसनी फैलाने की कोशिश की, ये कहते है कि उनकी खबर सच्ची न हो तो वो उसे डिलीट कर देते हैं, अरे भाई अगर आपके पास भी डिलीट का ऑप्शन होता तो आप डिलीट कर देते, लेकिन आपके पास उस डिलीट का ऑप्शन “भूल सुधार” होता है, जिसका आप जब चाहे, तब इस्तेमाल करते हैं, पर उस “भूल सुधार” से उस व्यक्ति का तब तक इतना नुकसान हो चुका होता है कि फिर वह ठीक से खड़ा नहीं हो सकता।
जरा आप ही बताइये कि किसी व्यक्ति को आपने किसी मामले में दोषी ठहरा दिया और बाद में दूसरे दिन पता चला कि वह व्यक्ति दोषी था ही नहीं, और आप ने “भूल सुधार” भी निकाल दिया, तो क्या जिस व्यक्ति ने पहले दिन का अखबार लिया हैं और उसे पढ़कर, उस व्यक्ति के बारे में अपने जेहन में विचार स्थापित कर लिया, क्या वह दूसरे दिन की अखबार भी पढ़ा होगा, उसकी गारंटी आप दे सकते हैं। उत्तर है – नहीं, तो फिर सोशल मीडिया पर आप किस हैसियत से सवाल उठा रहे हैं? भाई ये तो वही बात हो गई, कि चलनी दूसे सूप के, जिन्हें बहत्तर छेद।
आखिर चुनाव आयोग को पेड न्यूज के नाम पर किस पर नकेल कसने की जरुरत पड़ गई, क्या जनता नहीं जानती? अच्छा रहेगा कि आप अपना आचरण सुधारें, नहीं तो जनता खुद ही सुधार देगी। आज भी बहुत सारे अखबार जो आज गंदगियों के ढेर पर बैठे हैं, उनके पूर्व में क्या हालात थे? और आज क्या हालात है? आप खुद रांची में ही देख लीजिये, इसलिए आप अपना प्रमाण पत्र खुद न बनाकर, जनता को यह प्रमाण पत्र देने दें, अपना दिमाग सिर्फ इस पर लगाये कि आप अपने में कितना सुधार ला सकते हैं?
जिस दिन यह सुधार ले आइयेगा। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि उसका प्रभाव आपको स्वयं देखने को मिलेगा, आपको खुद के लिए, यूनियन बनाकर प्रमाण पत्र लेने की आवश्यकता नहीं पड़ेंगी और जनता खुद ही आपको आगे आकर गोद उठा लेगी, और कहेगी, अरे यार पढ़ना है तो यह अखबार पढ़ों, क्या फालतू के यह अखबार पढ़ रहे हो। यहां तो मैं देख रहा हूं कि जापानी तेल, लिंगवर्द्क यंत्र का प्रचार-प्रसार करनेवाले अखबारों के नाम भी प्रमाण पत्र वाले विज्ञापन में दिखाई पड़ रहे हैं और “अखबार ही प्रमाणिक है” कि दावा भी कर रहे हैं।
यथार्थ..सत्य