क्या नेताजी, IAS/IPS अधिकारियों, जनता ने काले कपड़े, काले जूते-मोजे पहनने अब बंद कर दिये क्या?
भाई हम सवाल तो पूछेंगे ही, क्या नेताजी, क्या IAS/IPS अधिकारियों, जनता ने काले कपड़े, काले जूते-मोजे पहनने अब बंद कर दिये क्या? जनता तो आज भी काले कपड़े, काले जूते-काले मोजे खुब प्रयोग कर रही हैं, पर जब चुनाव के तिथियों की घोषणा नहीं हुई थी, तो आप इन काले कपड़ों, काले जूते-काले मोजे तक का ख्याल रखते थे कि कोई जनता, काले रंग का कोई सामान लेकर सभा स्थल तक नहीं पहुंचे, पर ये क्या चुनाव की तिथियों के घोषणा हो जाने के बाद, काले रंग का करिश्मा ही समाप्त हो गया, क्यों भाई?
क्या काले रंग के कपड़े, काले रंग के जूते-मोजे, काले रंग के पर्स चुनाव के समय अपना असर नहीं दिखाते? आजकल मैं देख रहा हूं कि बड़ी संख्या में भाजपा नेताओं के विभिन्न स्थलों पर सभाएं व रोड शो हो रहे हैं, पर कही पर ये काले रंग वाले सामानों का प्रतिबंध दिखाई नहीं पड़ रहा, और न ही कोई सुरक्षाकर्मी ही इस पर ध्यान दे रहा हैं, शायद उसे ब्रह्मज्ञान हो गया है और नेताजी को भी पता है कि चुनाव के समय जैसे ही काले रंग वाला प्रकरण चालू होगा, तो जो थोड़ी भीड़ उनकी चुनावी सभा में दिखाई पड़ रही हैं, या रोड शो में दिखाई पड़ रही हैं, वह भी साफ हो जायेगी, क्योंकि जनता तो अभी इनसे इतनी नाराज है कि इनके टिकट पर चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों तक के हाथ-पांव फूल गये हैं।
हम ये काले रंग के जूते-मोजे या काले रंगे के कपड़े का मामला इसलिए उठा रहे हैं, क्योंकि ज्यादा दिनों की बात नहीं हैं, इसी साल पांच जनवरी को जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी डालटनगंज आनेवाले थे, तभी उस संबंध में 29 दिसम्बर 2018 को पलामू के पुलिस अधीक्षक ने एक सर्कुलर जारी किया था, जिसमें लोगों को काले जूते तक पहनने पर रोक लगा दी थी, जिसको लेकर काफी बावेला मचा, तब जाकर वह आदेश वापस लिया गया।
अब सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तो आज भी झारखण्ड आ रहे हैं, रांची में रोड शो कर रहे हैं तो क्या इस बार उन्हें कोई काले कपड़े या काले जूते-मोजे से खतरा नहीं हैं, मैं देख रहा हूं कि इस बार कोई दिशा-निर्देश भी जारी नहीं है, ये चुनाव आयोग का भय हैं या नेताजी द्वारा जनता का कही नाराज नहीं हो जाने का खतरा या ऐसा कर देने से कही भीड़ ही न खत्म हो जाये, इसका खतरा मंडराने लगा है।
भाई, अगर संकट काले रंग के कपड़े या काले रंग के जूते-मोजे से कल था, तो आज भी होना चाहिए, और अगर आज नहीं हैं, तो कल भी वो खतरा नहीं होना चाहिए था, दरअसल ये जो नेता होते हैं, या ये आइएएस-आइपीएस अधिकारी होते हैं न, ये अपने ढंग से देश की जनता को नचाते हैं, क्योंकि इनके नजरों में जनता कीड़े-मकोड़ों से अधिक कुछ नहीं होती, नहीं तो जनता और नेता के बीच की दूरी के लिए काले रंग को लाया ही नहीं जाता।
जरा देखिये, वोट के लालच और भय ने काले रंग के भय को समाप्त कर दिया, और जैसे ही वोट का लालच और भय खत्म हुआ, फिर देखिये काले रंग का जूता-मोजा और काले रंग का कपड़ा का भय प्रारम्भ और जनता इन काले रंगों में पिसती, गर्मियों में धूल-धक्कड़ खाती, इधर से उधर भटकती नजर आयेगी।
राजनीतिक पंडित बताते है कि जिस दिन जनता काले रंग और काले जूते-मोजे के प्रकरण को याद रखना शुरु कर देगी, समझ लीजिये नेता और आइएएस-आइपीएस अधिकारी भी अपने औकात में आ जायेंगे, पर जनता तो भोली होती है, उसका आप जितना भी मांस नोचिये, उसे दर्द नहीं होता, क्योंकि वह अपने शारीरिक मांस नोचवाने के लिए ही पैदा होती हैं और नेता व आइएएस-आइपीएस पैदा ही होते हैं, जनता की मांस को नोच-नोच कर खाने के लिए, तभी तो एक-दो साल भी जिन्हें सांसद या विधायक बने नहीं होता, या जिन्हें एक या दो साल भी आइएएस-आइपीएस बने नहीं होता, उनके जीने का ढंग ही बदल जाता हैं, वे करोड़ों-अरबों में खेलने लगते हैं।