तू डाल-डाल, हम पात-पात
झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास की रातों की नींद उड़ा दी हैं, झारखण्ड भाजपा के दो वरिष्ठ नेताओं ने, ये हैं – राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा और दूसरे खाद्य आपूर्ति व संसदीय मंत्रालय संभाल रहे सरयू राय। फिलहाल ये दोनों राज्य की वर्तमान राजनीतिक स्थिति, भाजपा कार्यकर्ताओं के मन में उपज रहे अंसतोष, बढ़ती नौकरशाही, बढ़ता भ्रष्टाचार और जनता में रघुवर दास के प्रति बढ़ रही नफरत को लेकर चिंतित है, हालांकि ये दोनों नेता झारखण्ड में भाजपा की लोकप्रियता में निरंतर हो रही गिरावट को संभालने में लगे हैं, इसके लिये वे मु्ख्यमंत्री रघुवर दास को समय-समय पर अपना विचार देते रहे हैं, पर क्या मजाल मुख्यमंत्री रघुवर दास इन दोनों की बात मान लें, वे इनसे ज्यादा अपने कनफूंकवों पर विश्वास करते हैं, रघुवर दास की माने तो कनफूंकवें ही राज्य के विकास के असली सूत्रधार हैं। वे कनफूंकवे की ही बात सुनते और मानते हैं।
इधर सूत्रों की माने तो केन्द्र भी रघुवर सरकार द्वारा हाल ही में लिये गये कुछ निर्णयों से संतुष्ट नहीं हैं, इसलिए झारखण्ड पर उसकी विशेष नजर हैं। झारखण्ड में भाजपा कार्यकर्ताओं की सरकार के प्रति नाराजगी का संदेश केन्द्र को मिल चुका है, यहीं नहीं संघ के आलाधिकारियों की टीम भी अपने मुख्यालय को रघुवर सरकार के खिलाफ अपनी रिपोर्ट दे चुकी है, साथ ही यह भी बता चुकी हैं कि सरकार के कुछ निर्णयों से भाजपा और संघ के कुछ आनुषांगिक संगठन बहुत ही नाराज हैं, कुछ निर्णय तो ऐसे है, जिससे सरकार की सोच और उसकी कार्यप्रणाली पर ही प्रश्नचिह्न लगा रहे हैं।
इधर राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास इस नाराजगी को पाटने के लिए नई दिल्ली की यात्रा शुरु कर दी है, स्थिति यह हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तो इन्हें समय ही नहीं दे रहे, हार थक कर बेचारे वेंकैया नायडू के पास जाकर अपनी पीड़ा रख पा रहे हैं, इधर वेकैंया नायडू भी रघुवर दास की रक्षा करने में किंकर्तव्यविमूढ़ हैं, क्योंकि नाराजगी इतनी बढ़ गई हैं, कि वे भी कुछ करने की स्थिति में नहीं हैं। इधर सरयू राय और अर्जुन मुंडा ने भी राज्य की सही तस्वीर वेकैंया नायडू के समक्ष रख दी है, और बता दिया है कि राज्य किस स्थिति से गुजर रहा हैं, अगर इस संकट से राज्य को नहीं उबारा गया तो आगामी लोकसभा में झारखण्ड से एक सीट भी निकाल पाना मुश्किल होगा।
सरयू राय ने तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को भी राज्य की वस्तुस्थिति से परिचय करा दिया है, उन्होंने तो अपने फेसबुक में भी अपनी बाते रख दी। उन्होंने अपने फेसबुक में स्वयं ही लिखा कि राष्ट्रीय अध्यक्ष से मुलाक़ात के बाद मन के कई बोझ उतर गये। सतत संवाद का कोई विकल्प नही। मूल मंत्र-गुणों की चर्चा सर्वत्र, दोषों की उचित जगह पर। उन्होंने यह भी लिखा है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष की कार्यप्रणाली को प्रत्यक्ष देखा, समझा, अद्भुत है इस भाव का शतांश भी झारखंड मे उतर जाय तो जनता जुड़ जायेगी। क्या यह संभव है? सरयू राय के ये सवाल सचमुच बहुत ही गंभीर है, पर क्या रघुवर दास और उनके कनफूंकवें समझ पायेंगे।
अगर ऱघुवर दास अब भी नहीं समझे तो ऐसे भी केन्द्र ने राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की बात एक तरह से स्वीकार कर ली है, ऐसे में नया नेता कौन होगा, हमें लगता है कि केन्द्र इसकी भी तैयारी में जुट चुका हैं और जल्द ही राज्य में एक नई सरकार के गठन की औपचारिकता भी पूरी हो जायेगी।
वेलफेयर स्टेट की अवधारणा के अनुरूप न तो केन्द्र सरकार के मुखिया श्री मोदी और न झारखण्ड सरकार के मुखिया श्री रघुवर दास खरे उतरते नजर आते हैं।फासिज्म को परिभाषित करते हुए 14 सूत्रों को मुसोलिनी ने कभी व्यक्त किया था।
हाँ, यदि उसके अनुसार विचार करें तो निश्चय ही ये खरे उतरते दिखाई देते हैं।पूर्व मुख्यमन्त्री श्री अर्जुन मुण्डा और वर्तमान कैबिनेट मन्त्री श्री सरयू राय जी निश्चय ही मुख्यमन्त्री श्री दास की नीतियों का विरोध करते नजर आते हैं,किन्तु इनमे यह साहस नजर नही आता कि ये श्री रघुवर दास के पृष्टपोषक श्री अमित शाह जी के विरुद्ध खड़े हो सकें।सारांश में ,हर शाख पे …….अंजामे झारखण्ड क्या होगा ,प्रश्न मुँह बाएं खड़ा है।लोकतंत्र में तन्त्र हावी है और लोक गौण हो गया है।सिर्फ झारखण्ड ही नहीं यत्र तत्र सर्वत्र देश का प्रजातन्त्र पार्टी तन्त्र की गिरफ्त में कैद नजर आता है।
वेलफेयर स्टेट की क्रिया प्रणाली से सर्वथा भिन्न,जन विरोधी सोच और गतिविधियों में लिप्त प्रान्तीय तथा केन्द्रीय सरकार के विरुद्ध कुछ कह पाना आसान नही है,तथापि मैं कहना चाहूँगा कि झारखण्ड के मुखिया माननीय रघुवर दास हों या भारत के प्रधानमन्त्री श्री मोदी,सब को जितनी चिन्ता बिना काम कियेअपनी लोकप्रिय छवि के प्रसारण की है,उतनी जन सामान्य के विकास की नही।
कभी मुसोलिनी ने फासिज्म के 14 लक्षण बताया था,आज की सरकार में ये 14 लक्षण प्राप्त हैं।
यह सत्य है कि झारखण्ड के पूर्व मुख्यमन्त्री श्री अर्जुन मुण्डा, वर्तमान में,झारखण्ड के कैबिनेट मन्त्री श्री सरयू राय प्रदेश के मुख्यमन्त्री की नीतियों का परोक्ष विरोध करते देखे जाते हैं।किन्तु वास्तविकता के धरातल पर इनमे यह साहस नही है कि ये वर्तमान सरकार के पृष्ठपोषक अपने दल के राष्ट्रीय नेतृत्व के विरुद्ध कदम उठा सकें,क्योंकि वर्तमान पार्टी तान्त्रिक व्यवस्था में सभी राजनैतिक दलों के जनप्रतिधियों की स्थिति कमोवेश एक ही जैसी है।जब प्रजातन्त्र पार्टीतन्त्र के अधीन हो तब इससे अधिक क्या कहा जा सकता है कि—जाहि विधि राखें साहिब,ताहि विधि रहिये।