जो भीड़ नेता प्रतिपक्ष हेमन्त की सभा में होती हैं, वहीं भीड़ CM रघुवर की सभा में क्यों नहीं दिखती?
इन दिनों एनडीए व महागठबंधन में लोकसभा चुनाव को लेकर महायुद्ध जारी है। दोनों ओर के नेता अपने-अपने कमान से तीर निकालकर एक दूसरे पर प्रहार कर रहे हैं, पर एक दूसरे के तीरों से कौन घायल होगा और कौन विजयी होगा? इसकी घोषणा तो 23 मई को होगी, पर जो राज्य के दो प्रमुख नेताओं की सभा में भीड़ आ रही हैं, वो बताने के लिए काफी है कि आनेवाले समय में झारखण्ड में लोकसभा का चुनाव परिणाम क्या होगा?
राज्य के सीएम रघुवर दास, अपने दल के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं, उनके कार्यकर्ता सीएम रघुवर दास के आगमन का समाचार सुनकर उनकी सभा में लोगों को लाने के लिए जी-तोड़ प्रयास भी कर रहे हैं, पर उनकी सभा में वो भीड़ नहीं दिख रही, जो भीड़ एक सीएम की सभा में होने चाहिए? कारण पूछने पर राजनैतिक पंडित साफ कहते है कि राज्य में भाजपा की स्थिति ठीक नहीं है, जनता का मूड ऑफ है, ऐसे में भीड़ कहां से आयेगी, ले-देकर कुछ लोग मोदी के नाम पर जुटते हैं, नहीं तो वो भी साफ है।
राजनैतिक पंडित साफ कहते है कि भाजपा से जनता का मूड ऑफ होने का मूल कारण राज्य में मूलभुत सुविधाओं का घोर अभाव है, पूरे राज्य में बिजली का ऐसा संकट उत्पन्न हो गया है कि आज तक कभी ऐसा नहीं था, राजधानी रांची ही नहीं बल्कि जमशेदपुर, पलामू, धनबाद, बोकारो, दुमका सभी प्रमुख नगरों व गांवों में बिजली का घोर अभाव है, सारे उदयोग-धंधे चौपट है, सिचाई ठप है, जलापूर्ति व्यवस्था ठप है, ऐसे में इनके भाषण सुनने कौन जायेगा?
इधर आइएएस व आइपीएस अधिकारियों का समूह भी नक्कारा बना हुआ है, राज्य सरकार के इमेज का बंटाधार करने में लगा है, और रही सही कसर सीएम रघुवर दास के आगे-पीछे करनेवाले कनफूंकवों ने निकाल दी है, जिसने मुख्यमंत्री रघुवर दास तक राज्य और जनता की सही तस्वीर नहीं पेश की, स्वयं मुख्यमंत्री रघुवर दास को भी ठकुरसोहाती बहुत पसन्द है, जिसके कारण राज्य की हालत बहुत खराब है, और इधर जनता इस बार सारी कसर निकालने को तैयार है, यहीं कारण है कि रांची में पीएम मोदी का रोड शो हो या लोहरदगा में उनकी सभा, इनकी सभा वैसी नहीं रही, जिन सभाओं व रोड शो के लिए मोदी जाने जाते हैं।
इधर सीएम रघुवर दास की सभा से जनता की दूरी और उधर हेमन्त सोरेन की सभा में लगातार बढ़ रही भीड़ पर राजनैतिक पंडित साफ कहते हैं कि नेता प्रतिपक्ष हेमन्त सोरेन की सभा में पहुंच रही जनता को लग रहा है कि यह व्यक्ति कुछ करेगा, ऐसे भी जनता के बीच हेमन्त सोरेन की छवि साफ-सुथरी है, साथ ही वे स्थानीय मूलवासी है, लोगों को लगता है कि यह नेता, सिर्फ और सिर्फ उनके लिए ही बना है, लोग जुट रहे हैं, यानी हेमन्त ने अपना विश्वास बनाया और रघुवर ने विश्वास खो दिया।
राजनैतिक पंडितों की माने तो वे कहते है कि सीएनटी-एसपीटी मामला हो, राज्य में रोजगार का खात्मा हो, विकास कार्य का ठप होना हो, स्कूल का बंद होना हो, राज्य सरकार द्वारा गली-गली शराब की दुकान खुलवाना हो, डोभा निर्माण घोटाला हो, हाथी उड़ाने की योजना हो, मोमेंटम झारखण्ड के नाम पर राज्य को लूटने की बात हो, स्वास्थ्य सेवा का घोर अभाव हो, भूख से हो रही मौत हो, किसानों द्वारा पिछले साल हुई बड़े पैमाने पर की गई आत्महत्या हो, ऐसी बहुत सारी चीजें हैं, जिससे भाजपा का चेहरा लोगों के सामने बेनकाब हुआ है, इसलिए लोगो को लगता है कि हेमन्त आयेंगे तो कुछ करेंगे, ऐसे भी राज्य में दो बड़ी पार्टियां अगर हैं तो पहली भाजपा और दूसरा झारखण्ड मुक्ति मोर्चा है, जिसने अपने कार्यों से जनता के बीच पैठ बनाई है।
राजनैतिक पंडित ये भी कहते है कि एक समय था, कि झामुमो पूर्व में संथाल-परगना तक सीमित थी, पर आज ऐसा है नहीं, आज वह पूरे झारखण्ड में हैं, उसके नेता हेमन्त सोरेन को लोगो ने पूरे राज्य में स्वीकार किया है, निःसंदेह वे राज्य के अगले मुख्यमंत्री के रुप में स्वयं को पेश कर चुके हैं, लोगों ने आशीर्वाद देना भी प्रारम्भ कर दिया है, ऐसे में जैसे-जैसे समय बीतेगा, रघुवर दास हेमन्त सोरेन के आगे-पीछे क्या, दूर-दूर तक नजर नहीं आयेंगे।
ऐसे भी इस राज्य में कांग्रेस पार्टी में कोई ऐसा नेता नहीं हैं, जो राज्य की जनता को अपनी ओर खींच सकें, ज्यादातर आउटडेटेड और राहुल गांधी के करिश्मे से जीतने का आमदा रखनेवाले लोग हैं, उनकी अपनी कोई ताकत नहीं। यहीं हाल राष्ट्रीय जनता दल और वामदलों का हैं, जबकि झाविमो में एकमात्र बाबू लाल मरांडी है, जो भीड़ को अपनी ओर खींचने का आमदा रखते हैं, पर जो कूबत झामुमो के हेमन्त सोरेन में इन दिनों दिख रही हैं, वो कूबत किसी में नहीं।